बेटियां – प्रो0 डा0 शरद नारायण खरे

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(1)

हर घड़ी मां-बाप का अरमान बेटियां
कम नही किसी से भी बलवान बेटियां।

इनको सदा ही, लाड-प्यार नह से रखो,
उड़ जाएंगी पलो में है, मेहमान बेटियां।

बेटी नही तो, हर जगह ही अंधकार है,
उनसे है घर की शान, है उत्थान बेटियां।

बेटियों से संस्कार, हर घड़ी पलें,
धर्म, नीति, मूल्य का, गुणगान बेटियां।

नम्रता और धैर्य, सब्र सब भरा हुआ,
वो है सरल-सहज, सदा आसान बेटियां।

इस जहान में ‘शरद’, रौनक खिले सदा,
वो ईश का है रूप, है वरदान बेटियां।

(2)

पाप और न बढ़ाएं,  अब तो गंगा नहाए।
बेटो की फसले छोड़े,  अब तो बेटियां उगाए।

बेटे शान है,  तो बेटियां गान है।
बेटे अगर वंश है  तो बेटियां जहान है।

बेटियां मुस्कराहट है,  खुशियों की आहट है।
बेटे अगर पीपल है,  तो बेटियां वृक्ष वट है।

बेटियां हर्ष है,  बेटियां संघर्ष है।
बेटे है दिवस-मास,  तो बेटियां वर्ष है।

बेटियां मर्म है,  बेटियां कर्म है।
बेटे है संस्कार,  तो बेटियां धर्म है।

रचनाकार – प्रो0 डा0 शरद नारायण खरे
लेखक शासकीय महिला महाविद्यालय, मण्डला (म0प्र0) में विभागाध्यक्ष इतिहास के पद पर कार्यरत है।

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