उठो छोड़ दो विनती करना,
बात समझ में डालो तुम।
कृष्ण नहीं आने वाले हैं,
कर में शस्त्र उठा लो तुम।।
यहाँ देह के सब भूखे हैं,
कब मर्यादा ये जानें।
औरत का मन दुखता होगा,
पीर भला कब पहचानें?
शक्ति स्वरूपा तुम हो नारी,
खुद को आज बचा लो तुम।
कृष्ण नहीं आने वाले हैं,
कर में शस्त्र उठा लो तुम।।
बढ़े हाथ जो आँचल तक तो,
काट हाथ तुम वह देना।
नहीं सौंपना तन पापी को,
साहस थोड़ा कर लेना।
नदी अश्रु की क्यों कर बहती,
खुद को तनिक संभालो तुम ।
कृष्ण नहीं आने वाले हैं ,
कर में शस्त्र उठा लो तुम ।।
दोषी घूम रहे हैं पुलिकत,
तुम कमरे में रोती हो।
आखिर क्यों मंदिर से तन में,
पाप किसी का ढोती हो।।
नहीं शौर्य में तुम हो कमतर,
खुद को देखो-भालो तुम ।
कृष्ण नहीं आने वाले हैं ,
कर में शस्त्र उठा लो तुम।।
नहीं फूल सी कोमल बनना,
चट्टानों सी बनो प्रखर।
घुट-घुट कर तुम क्यों जीती हो,
हो जाओ अब तनिक मुखर।।
तजकर भय से रिश्ता अपना,
साहस गले लगा लो तुम।
कृष्ण नहीं आने वाले हैं,
कर में शस्त्र उठा लो तुम।।
सबल तुम्हें बनना ही होगा।
अबला बन क्यों जीती हो।
क्यों समाज के तानों का विष,
तुम चुप रहकर पीती हो।।
सीखो गुर अपनी रक्षा के,
सोई शक्ति जगा लो तुम।
कृष्ण नहीं आने वाले हैं ,
कर में शस्त्र उठा लो तुम।।
रचनाकार – प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’
जनपद बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश
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