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सहनशीलता
आत्मविश्वास
गर मैं अप्पू होती!
अब तक भिन्न नहीं…
यथावत, शब्दों की गरिमा रखो
ओ मन मेरे, भटको नहीं व्यर्थ
लिखने बैठा हूं होकर तत्पर….
आज-कल कुछ तो है हांसिए पर…..
अरे ओ, मन मेरे अब तक…
हृदय वेधने को तत्पर
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