मेरा सारा जीवन माँ तुम

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तुम मेरे जीवन के नौका की खेवनहार हो,
तुम ही मेरा रब हो और जीने का आधार हो,
तुम ही मेरा जग हो और तुम ही सच्चा प्यार हो,

माँ तुमने जब भी मुझको अपने सीने से लगाया है,
अद्भुत,अप्रतिम,वो पल मैनें आज भी नही भुलाया है,

उँगली पकड़ के मेरी तुमने मुझको चलना सिखाया था,
लोरी गा-गाकर के तूने मुझको रोज सुलाया था,

तेरी ममता के आँचल में बेफ़िक्री सो जाता था,
तू जब भी पुचकारे मैं झट से चुप हो जाता था,

मेरी दुनिया तुमसे तुम ही तो मेरा जहान हो,
मेरे जीवन का तुम उपहार तुम्हीं वरदान हो,

तुम हो तो मैं हूँ माँ तुमसे मेरी पहचान है,
तेरे खातिर मेरा ये सारा जीवन कुर्बान है,

क्या कितना मैं लिक्खू तुझ पर अब मेरी माई,
शब्दों का सैलाब लिखूँ या
तुझ पर रोज किताब लिखूँ,
तुझ पर मैं जितना भी लिक्खू वो कम है,
इस जग में न अपना कोई माँ तेरे सम है,

जीवन भर माई जो तेरा सर पर मेरे हाथ है,
अब न मैं कुछ चाहूँ जो हरदम मेरे तू साथ है,

कण-कण हर क्षण जीवन का अस्तित्व तुम्हीं से है,
माँ तुम बिन न जीवन सारे जीवन का सारत्व तुम्हीं से है,

जीवन को महकाती हो जग को तुम चमकाती हो,
तुम अद्वितीय आराध्य तुम्हीं जीना सबको सिखलाती हो,

माँ तेरा ऋण कोई सातों जन्म उतार न पायें,
प्रथम पूज्य भगवान सृष्टि सब महिमा तेरी गाये,

© शिवांकित तिवारी “शिवा”
युवा कवि एवं लेखक
सतना (म.प्र.)
सम्पर्क:-9340411563

This Post Has One Comment

  1. indiBooks

    माँ का स्थान दुनिया में कोई भी नहीं ले सकता है। शिवांकित जी बहुत ही सुन्दर रचना है।

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