संसार – Girendra Singh Badhouriya

  • Post author:Manisha Tyagi

महाशृंगार छन्द में
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तुम्हारा अद्भुत है संसार
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कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार।
कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं पर कायर है सरदार।।

कहीं पर बूँद न पड़ी फुहार, कहीं पर धार मूसलाधार।
कहीं पर बरसे खुशी अपार, कहीं पर दुख के जलद हजार।।

कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार।
कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।।

बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार।
कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।1।।

किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार।
किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।।

किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग – अंग बीमार।
किसी का चोला तक लाचार, किसी का जीवन ही धिक्कार।।

किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार।
किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रहा सार।।

किसी को दिए दाँत दमदार, किसी की चोंच हुई चमकार।
किसी को पाँव नहीं दो चार, किसी को पाँवों की भरमार।।

किसी को मिले नहीं अधिकार, किसी की होती जय जयकार।
स्वयं तुम निराकार साकार ! तुम्हारा अद्भुत है संसार।।2।।

हुआ विज्ञान चाँद के पार, तिरंगा लहराया इस बार।
देश का स्वप्न हुआ साकार, जमाया भारत ने अधिकार।।

तोड़ अब नफरत की दीवार, बढ़ेगा पथ पर पानीदार।
भुला कर स्वार्थ और अपकार, करेगा जीवों का उपकार।।

बढ़ाकर प्रेम और सत्कार, मान कर ईश्वर का आभार।
कहेगा तुम हो जगदाधार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।3।।

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण”
“वृत्तायन” 957, स्कीम नं. 51
इन्दौर पिन – 452006 (म.प्र.)
मो

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