प्यार का मसाला
कभी कभी ऐसा भी समय आता है कि मन बहुत कुछ लिखना चाहता है मगर जब तक भाव या विचार ना आए तो कुछ नहीं हो सकता ।
आज ऐसा ही मेरे साथ हुआ –
मुझे एक लघुकथा लिखनी थी लेकिन कुछ सूझ नहीं रहा था ।
मैं कमरे से निकल कर बाहर छत पर बैठ गया जहां एक ओर एक घर बन रहा था । नयी नयी दीवार बनी हुई थी मैंने सोचा चलो इसी से बात की जाए ।
मैंने कहा ईंटों से कि तुम सब ईंटों में बड़ी एकता है एक साथ हो लीं तो दीवार बना डाली , यार कैसे कर लेती हो ये सब गिरती भी नहीं हो ?
उनमें से एक ईंट का मूड अच्छा था तो उसने जबाव दिया कि –
हमसे तुम मनुष्य कुछ सीख लिया करो। जब हम ईंट एक होकर दीवार बना देतीं हैं तो मनुष्य कुछ भी कर सकता है बशर्ते वो एक हो जाए ।
दूसरी बात तुमने कहा कि दीवार बनकर भी हम गिरते नहीं ये सच है मगर हमें गिरने से रोकता है मसाला ।
मसाला ; केवल सीमेंट नहीं बल्कि रेत सीमेंट पानी और वो भी समानुपात में ।
मनुष्य भी ना गिरे अगर उसे प्यार का मसाला मिल जाए ।
केवल प्यार नहीं बल्कि समानुपात में लडना झगडना रूठना मनाना प्यार और तकरार सब मिलकर ।
प्यार का मसाला रिश्तों की दरार को भर देता है ।
मुझे आज ईंटों ने बहुत कुछ सिखा दिया ।
लक्ष्मण सिंह त्यागी रीतेश