मैं ज्यादा सुंदर हूं

  • Post author:Udaan Hindi

इस शैक्षिक लघु कथा के द्वारा शिक्षक जान पाएंगे कि नामांकन के दौरान भी सेल्फी की मदद से आप बच्चों के साथ आत्मीय सम्बन्ध विकसित कर सकते हैं | यह निजी अनुभव है मेरा।

….आयुष अपने पिता के साथ पहली कक्षा में नामांकन के लिए आया था। बड़े बड़े बाल और खूबसूरत नैन-नक्श के साथ उसकी धीर गंभीर मुद्रा बार बार मुझे उसके बारे में अधिक जानकारी लेने के लिए उत्सुक कर रही थी…..

खैर नामांकन की औपचारिकताएं पूरी होते ही उसे मैंने अपने पास आने के लिए इशारा किया पर वो अपनी गंभीर मुद्रा में बिना कोई परिवर्तन किए वहीं का‌ वहीं खड़ा रहा। फिर मैं ही हार मानते हुए उसके हाथों को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और उससे पूछा कि अब तो तुम्हारा नाम लिखा गया है स्कूल के रजिस्टर में, इसलिए रोज स्कूल आना होगा… तुम रोज स्कूल आओगे ना???

उसने कहा कि ‘ ह ‘ आऊंगा। फिर मैंने उसे कहा कि जब भी आपसे बड़े कोई कुछ पुछे तो ‘ह’ के बदले ‘जी’ बोलेंगे तो उसने कहा कि ठीक है।

फिर उसे सहज करने के लिए उसके भाई बहनों के संबंध मे बातचीत करने की कोशिश की । पर परिणाम ज्यादा संतोषजनक नही मिला |वह अभी भी उसी गंभीरता के साथ था |

फिर मैंने उसे बताया कि कोरोना महामारी के कारण अभी तो बच्चों के लिए स्कूल बंद है, इसलिए तुम स्कूल तो नहीं आ सकते हो,पर हां जब स्कूल खुलेगा तो मैं तुम्हें फोन कर दूंगी । क्या तुम मुझसे फोन पर बात करोगे ??? उसने सीधे तौर पर मना कर दिया ,बोला- नहीं मैं नहीं बात करूंगा…….

पुनः वह अपनी गंभीर मुद्रा में खड़ा रहा।पर अभी तक मुझे उसके चेहरे पर वो नहीं दिखाई दिया था जिसे मैं ढूंढ रही थी….उसकी प्यारी सी मुस्कान….जो एक बार भी उसके चेहरे पर नहीं दिखी थी मुझे।

अंततः उसके जाने से पहले मैंने एक अंतिम कोशिश के रूप में सबसे आधुनिकतम अस्त्र/तकनीक का इस्तेमाल किया…जी हां सेल्फी तकनीक का । उसे अपने नजदीक खींच कर कैमरे में देख मुस्कुराने के लिए कहा, बहुत कोशिश के बाद थोड़ा सा चेहरे के भाव को सामान्य किया और मैं पुरी मुस्कान के साथ वो सेल्फी क्लिक की। फिर उसके बाद मैंने उससे पूछा कि यह फोटो कैसी है तो वह‌ कुछ नहीं बोला।

फिर मैंने अपने सवाल को बदलते हुए कहा कि अच्छा ये बताओ कि इस फोटो में हम दोनों में सबसे अच्छा कौन दिख रहा है…… उसने धीरे से कहा कि “मैं ज्यादा सुंदर लग रहा हूं” ! अब तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था कि बच्चे ने सच में कितनी सहजता से सच्चाई बयां की हैं। पर मैं भी एक फोटो से कहां मानने वाली थी, मैंने भी झुठ-मूठ का नखरा दिखाते हुए कहा कि अब देखना इस बार की फोटो में मैं ज्यादा सुंदर दिखूंगी….. और इस तरह से विभिन्न मुद्राओं में हमने साथ में मुस्कुराते हुए की सेल्फी ली। मैंने उसके पिता से उसका मोबाइल नंबर लिया और उससे पूछा कि अब मुझसे बात करोगे या नहीं, तो मुस्कुरा के बोला बात करूंगा और एबीसीडी भी सुनाऊंगा……..

आयुष अब अपनी धीर गंभीर मुद्रा से काफी दूर निकल चुका था…..अब वो अपने पिता के साथ मुस्कुराते हुए घर जा रहा था …….❤️

लेखक परिचय –
प्रियंका कुमारी, शिक्षिका
मध्य विद्यालय मलहाटोल, परिहार, सीतामढ़ी, बिहार
साहित्यिक नाम – प्रियंका प्रियदर्शिनी

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