ऐसा क्यों होता है अक्सर – प्रेम ठक्कर

  • Post author:Manisha Tyagi

ऐसा क्यों होता है अक्सर

ऐसा क्यों होता है अक्सर,
कि सबसे ज़्यादा जिसे चाहो,
वही सबसे दूर चला जाता है?
जिसे देख कर दिल सुकून पाए,
वही नज़रों से ओझल हो जाता है।

क्यों हर ख़ुशी अधूरी सी लगती है?
जब तक उसका चेहरा सामने न हो।
और जब मिल जाए कुछ पल के लिए भी,
तो वक्त जैसे पंख लगाकर उड़ने लगता है।

दिकु…
तेरे बिना ये लम्हे बेजान से हैं,
हर सांस में तेरा नाम है,
हर खामोशी में तेरा एहसास है।

मैं ‘प्रेम’ अधूरा हूं…
पर तुझमें ही मैं पूरा हूं,
तेरे साथ ही मेरा होना है।

तेरे लौटने की आस में
हर शाम तुझसे बातें करता हूं,
तेरी हँसी की कल्पना में
हर रात मुस्काया करता हूं।

ऐसा क्यों होता है अक्सर,
कि जो रूह से जुड़ जाए,
उसे दुनिया की जंजीरों से जकड़ लिया जाए।
आखिर तुम भी तो वही महसूस करती हो
जो मैं हर रोज़ तुम्हारे नाम करता हूं।

दिकुप्रेम का ये प्रेम
ना कोई सवाल करता है,
ना शिकायत, ना उम्मीद…
बस तुझमें खो जाने को जीता है,

तुझ से मिलन की राह में जितने भी
कांटे अश्रुरूपी निकलते है,
उसको यह प्रेम हंस हंसकर पीता है।

— प्रेम ठक्कर ‘दिकुप्रेमी’
सूरत, गुजरात

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