भारववर्ष में माना जाता है कि ‘‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’’ अर्थात जहाँ नारियां पूज्नीय मानी जाती है ; सम्मानित की जाती है. वहाँ देवतओं व समृद्वि का वास होता है, इसलिए हमारे देश मे नारियो का सम्मान करना प्राचीन परम्परा है। हम माता का नाम पिता के नाम से भी पहले लेते है। माता को स्वर्ग से बढ़कर बताया गया है। भारतवर्ष के प्राचीन ग्रथ नारियों की महिमा गान से सुसज्जित है।
महिला का स्वरूप अति व्यापक है। सिक्के के एक पहलू पर वह अबला अर्थात शान्ति का प्रतीक है तो दूसरी ओर शक्ति अर्थात रौद्र रूप का प्रतीक है। केवल कथनी मात्रा ही नही अपितु यह बात पूरी तरह से व्यवहारिक है कि नारी की शक्ति के सामने बड़े-बड़े वीर भी नही टिक पाते है।
समाज में नारी के अनेक रूप है। वह माता है, बहन है, पत्नि है, पुत्री है। नारी अपने अनेक रूपों में पुरूष की सहायिका है। घर गृहस्थी के निमार्ण के लिए हो या राष्ट्र निमार्ण के लिए नारी पुरूष के साथ कंधे से कंधे मिलाकर चलती है। यदि कहा जाये कि नारी के बिना किसी भी राष्ट्र का निर्माण पूर्ण नही हो सकता है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नही होगी।
शास्त्रो मे भी कहा गया है ‘‘विद्या विहीन पशु’’ अर्थात शिक्षा विहीन मनुष्य पशु के समान है। प्रत्येक मानव जाति के लिए शिक्षा प्राप्त करना अनिवार्य है।
समाज के विकास का मापक यंत्रा शिक्षा ही है। महिला व पुरूष दोनो मिलकर समाज का निर्माण करते है। महिला के बिना पुरूष समाज अपूर्ण है। मात्रा पुरूष को शिक्षित कर महिला को पशुवत बनाना भयानक पशुता है, इसलिए किसी भी समाज के सर्वागीण विकास के लिए नारी शिक्षा अति आवश्यक है।
महिला ही प्रथम शिक्षिका है। प्रथम शिक्षिका को ही शिक्षा से वंचित रखना घोर पाप व पिछड़ेपन की निशानी है।
कई वर्षो तक पराधीन रहने के कारण विदेशी शासको ने भारत की शिक्षा और संस्कृति को हिलाकर रख दिया था। उसका प्रत्यक्ष प्रभाव नारी शिक्षा पर ही पड़ा। विदेशी शासको द्वारा नारियों का शोषण होने लगा। जिसके दुष्परिणाम स्वरूप बाल-विवाह का जन्म हुआ। लोग बालिकाओं को पढ़ाने की अपेक्षा जल्दी शादी करने में रूचि दिखाने लगे, जिससे नारी शिक्षा लगभग समाप्ति के द्वार पर पहुच गई।
आधुनिक युग की बात करें तो यह विकास व विज्ञान का युग है, फिर भी लोग नारी शिक्षा में पूरी रूचि नही ले रहे है। गाँवो में तो अधिकतर नारी समाज अशिक्षित है। बचपन से ही भारतीय परिवारों में लड़कियों से घर के काम-काज करवाये जाते है और लड़को को स्कूल भेजा जाता है। लड़कियो को पर्दे में रखना और अधिक लज्जालू बनाना भी नारी अशिक्षा ठेका बड़ा कारण है।आधुनिक युग में प्रत्येक लड़के या लड़की को समान समझना चाहिए। विकास की रोशनी में नहाना हो तो प्रत्येक भारतीय को मानसिक रूप से स्वंय को तैयार करना होगा। लड़की को बचपन से ही लड़को की तरह प्रत्येक कार्यो में प्रतिभाग करने का अवसर प्रदान करना होगा।
अक्सर देखा गया है कि प्राचीनकाल से चलती आ रही परम्पराऐं समाज के लिए अभिशाप बन जाती है। हमारे देश में दहेज जैसी परम्परा ने भी कुरीति का रूप ले लिया है। लड़की के जन्म के को एक दुर्भाग्य माना जाता है क्योकि मंहगाई के इस युग में माता-पिता उसके विवाह पर होने वाले व्यय से पहले ही डरने लगते है। आज दहेज के आतन्क ने लड़की वालो के दिलों में आंतक पफैला दिया है। लड़की पक्ष का अपनी शक्ति से अधिक व्यय करना सामाजिक मान्यता बन गया है।
जिस व्यक्ति के पास सामाजिक मान्यताओं को निभाने के लिए सामर्थ्य नही है, जो वर पक्ष की माँग की पूर्ति नही कर सकता है वह अपनी फूल सी कोमल कन्या को कुरूप, अयोग्य व्यक्ति को देने के लिए मजबूर हो जाता है। आज का युवक विक्रय की वस्तु बन चुका है। उसको कोई भी धनी व्यक्ति खरीद सकता है।
आधुनिक युग मे शिक्षित नवयुवती दहेज के दानव से भली-भाँति सुपरिचित है। आजकल पढ़ी-लिखी लड़कियां अनचाहे, बेमेल अयोग्य वर से शादी करने की बजाय आजीवन कुंवारी रहकर जीवन यापन पसंद करती है। वे नौकरी व रोजगार करके अपनी आजीविका चलाने में सक्षम है। आज की नारी संर्कीण विचारो वाले लोगो के लिए करारा जवाब है।
आप तले की खुरचन खावे।’’
अर्थात स्त्रियां परिवार के लोगो को भरपेट खिलाती है और स्वंय बचा-खुचा खाकर भी संतुष्ट रहती है। वास्तकिता में नारी सहनशीलता, ममता, दया, विनम्रता व त्याग का पर्यायवाची है।
एक समय था जब स्त्रिया सिर्फ चाहरदीवारी में ही कैद रहती थी। परदा करना ही उसके सुशील व पवित्र होने की गवाही थी। उसका काम सिर्फ घर का काम-काज करना ही था। लेकिन आज की नारी का मैनेजमेंट कमाल का है। विनम्रता व शालीनता के साथ वह घर व बाहर दोनो का कार्य सहजता से संभाल सकती है। विज्ञान, राजनीति, चिकित्सा, प्रशासन, खेलकूद, शिक्षण व रक्षा सम्बन्धी सभी कार्यो में नारियों का अतुल्नीय योगदान है।
आज की महिला बेहतरीन मैनेजर, सही ड्राईवर, आत्मविश्वास से परिपूर्ण, आत्मनिर्भर, निडर, स्मार्ट, बोल्ड, दहेज विरोधी, माता-पिता की सच्ची दोस्त, समझदार, एक समय में एक से अधिक कार्य करने में सक्षम, पाक कला में निपुण, सही मायनो में शिक्षित है।
उपरोक्त सभी खुबियों के साथ-साथ मितव्ययी, ममतामयी, कुशल, अहिंसक, सहयोगी, भावुक व त्याग की भावना से परिपूर्ण भी है। फिर क्यो ना गर्व करे कि हम महिला है।