हिंदी
रग रग में हिंदी , नस नस में हिंदी ।
चाहे हो हिंदू , चाहे हो सिंधी ।।
बचपन से बोला , हर शब्द तौला ।
हर राज़ खोला , हर गाली दी गंदी ।।
रग रग
है देवों की बानी , हम सबकी जुबानी ।
नानी की कहानी , ना मंहगी है मंदी ।।
रग रग
इसे है बढाना , है सबको पढाना ।
शिखर पर चढ़ाना , जैसे मां की बिंदी ।।
रग रग
लक्ष्मण सिंह त्यागी रीतेश