एक राही
सागरों में अनगिनत गोते लगाकर भी, मैं किनारा ही हूँ।
तुमसे वर्षों से दूर होकर भी,
आज भी मैं तुम्हारा ही हूँ।
स्वप्न भी अगर आता है जुदाई का,
उसमें भी तुम्हें खोने से डरता हूँ।
हर पल, हर घड़ी, बस तुम्हारा ही इंतज़ार करता हूँ।
जिंदगी की राहों में, मैं मुसाफिर बन कर चलने लगा।
तुम्हारी यादों की खुशबू के संग,
मैं जीवन प्रवाह में बहने लगा।
दिल में तुम्हारी तस्वीर और आँखों में तुम्हारे सपने सजाए हैं।
मैंने एक-दूजे से दूर रहकर भी हमें सम्पूर्ण बनाए हैं।
तुमसे दूरी का विरह होते हुए भी, नज़रों में सिर्फ तुम ही बसी हो।
हर मोड़ पे, हर सफर में, जैसे तुम्हारी ही खुशबू सजी हो।
हर कदम पे तुम्हारा नाम, हर साँस में तुम्हारा एहसास रहता है।
इस राही का सफर, बस तुम्हारे इंतज़ार से ही खास रहता है।
फासले चाहे हों हजारों, दिल की दूरी होने नहीं दूंगा।
एक राही की तरह, हर मोड़ पर तुम्हारी राह तकता रहूंगा।
तुम जहाँ भी हो, खुश रहना, यह दुआ हर रोज करता हूँ,
तुमसे दूर होकर भी, मैं हर पल तुम्हीं से जुड़ा रहता हूँ।
प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
Surat, Gujarat