बीस साल की खोज और एक उपन्यास ‘अकबर’
![]() |
‘अकबर’ उपन्यास का विमोचन करते राजकमल प्रकाशन के एमडी अशोक माहेश्वरी, लेखक शाज़ी ज़माँ और इतिहासकार सुप्रसिद्ध मुकुल केशवन। |
बुधवार को राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास का विमोचन किया गया। ‘20 सालों तक ‘अकबर’ उपन्यास को लिखने की तैयारी करने वाले लेखक शाज़ी ज़माँ ने इस दौरान भावुक होते हुए कहा कि उपन्यास की पहली आहट से जैसी प्रतिक्रिया मिलनी शुरू हुई उस से ज़ाहिर हुआ कि बादशाह अकबर की याद चार सौ बरस बाद भी हिंदुस्तान के दिल में ज़िंदा है, और दीन और दुनिया को समझने और समझाने की जद्दोजहद अकबर के बाद भी हर दौर में प्रासंगिक है।
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध इतिहासकार मुकुल केशवन उपन्यास के बारे में कहा कि ध्यान रहे कि पिछले कुछ हफ़्तों से इस उपन्यास की अमेज़न पर प्री-बुकिंग चल रही थी और सोशल मीडिया और व्यापक पाठक समाज में इसकी जबर्दस्त चर्चा रही। उपन्यास अब बाजार में उपलब्ध हो चुका है। शाज़ी ज़माँ ने इसे बाजार से लेकर दरबार तक के ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर रचा है। उन्होंने कोलकाता के इंडियन म्यूज़ियम से लेकर लंदन के विक्टोरिया एल्बर्ट तक के बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनाई गई तस्वीरों को जाना-समझा है। बादशाह और उनके क़रीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया है और ‘अकबरनामा से लेकर मुन्तख़बुत्तवारीख़, बाबरनामा, हुमायूंनामा और तज़्किरातुल वाक़यात जैसी किताबों का और जैन और वैष्णव संतों और ईसाई पादरियों की लेखनी का भी अध्ययन किया है। उन्होने कहा कि दरअसल यह उपन्यास न केवल इतिहास से जुड़े कई तरह के भ्रांतियों को तोड़ता है, बल्कि नई जानकारियों को प्रमाण के साथ सामने ला रहा है। उपन्यास के कई आकर्षणों में से एक अकबर के जीवन की वो दुर्लभ रंगीन तस्वीरें हैं जिन्हें किताब में शामिल किया गया है।
कार्यक्रम के सूत्रधार एवं देशबंधु कॉलेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी के सह- प्राध्यापक संजीव कुमार ने कहा कि ये बहुत अधिक तैयारी के साथ लिखा हुआ और संभवतः हिंदी में इतनी तैयारी के साथ लिखा पहला उपन्यास है l ये उपन्यास को पढ़ते हुए महसूस होता हैl इस लिहाज़ से ये बहुत ही महत्वपूर्ण उपन्यास है l अकबर के समय के भारत और अकबर के साम्राज्य का नक्शा जानेमाने नक्शानवीस ‘फैज़ हबीब’ ने खास तौर पर इसी उपन्यास के लिए तैयार किया है। मुग़ल वंश वृक्ष के साथ ही कई अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां है भी किताब के अंत में पाठकों के साथ साझा की गईं हैं।
‘अकबर’ अपने कवर डिज़ाइन को लेकर पहले ही सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसका कारण कवर पर इस्तेमाल किया गया ‘अकबर की ढाल का असल चित्र’ है जो ‘छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, मुंबई में मौजूद है। इस ढाल से बादशाह अकबर की शख़्सियत के कई पहलू ज़ाहिर होते हैं। दरअसल, ढाल के बीचों-बीच सूर्य की छवि है। बादशाह अकबर सूर्य के उपासक थे और हर रोज़ सुबह उठ कर सूर्य के एक हज़ार नाम (सूर्यसहस्रनाम) का जाप किया करते थे । इसके साथ ही ढाल में चारों तरफ़ राशियाँ अंकित हैं। इतिहासकारों का मानना है कि बादशाह अकबर का ज्योतिष में गहरा यक़ीन था। ढाल पर फ़ारसी में लिखा है-‘बुलंद इक़बाल शहंशाह अकबर’ यानि वो बादशाह जिनकी तक़दीर बुलंद है।
कार्यक्रम के दुसरे भाग में राजस्थानी कलाकार आबिद अली खान ने मांड गायन कियाl उनकी पहली प्रस्तुति जल्ला, “जला सैण म्हें तो राज रा डेरा निरखण आई रे…” उपन्यास के एक महत्वपूर्ण प्रसंग में शामिल है l उपन्यास का आवरण पूजा आहूजा ने तैयार किया है और टाइटल की कैलिग्राफी राजीव प्रकाश खरे ने की है।
शाज़ी ज़माँ भारत के इलेक्ट्रोनिक मीडिया के बड़े पत्रकार हैं और फिलहाल एबीपी न्यूज़ नेटवर्क के ग्रुप एडिटर हैं। इन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रतिष्ठित सेंट स्टीफन कॉलेज से पढ़ाई की। उन्होंने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस, स्टार न्यूज़, आजतक, ज़ी न्यूज और दूरदर्शन में काम किया है। इससे पहले उनके दो उपन्यास ‘प्रेम गली अति सांकरी’ और ‘जिस्म जिस्म के लोग’ राजकमल प्रकाशन से छप चुके हैं।
राजकमल प्रकाशन 60 सालों से अधिक समय से विश्वसनीयता बनाये हुए राजकमल प्रकाशन समुह भारत का बड़ा प्रकाशक है। और यह भारत में साहित्यिक ऊंचाई सहित इसकी विविधता और इसके मुल्यों का पर्यायवाची रहा है। राजकमल प्रकाशन का 65 वर्षों का प्रकाशन का इतिहास रहा है और यह लगभग भारत के सभी बड़े हिन्दीभाषी लेखकों के साहित्य बढ़ावा दिया है। इसके अलावा दूसरी भाषाओं की किताबों का भी हिन्दी अनुवाद करके उसे पाठकों तक पहुंचाया है।