काँटे भरे हैं राह में
फिर भी वो खिलती है
मन मुग्ध कर दे
वो महक सी महकती है
कभी किसी का सम्मान है उससे
कभी वो अपमानित की जाती है
कभी भँवरो से छलि जाती है
कभी माली द्वारा
तोड़ ली जाती है
कभी गले का हार
कभी फूलों की राह बन जाती है
हर रंग में ढ़लती है
पूरी शिद्दत के साथ
अपनाती है अपना हर फर्ज
सुख या दुःख की परवाह नहीं है उसे
वो कर्तव्यनिष्ठ है ,निःस्वार्थ है
हर रोज खिलती है
हर रोज महकती है
क्योंकि गुलाब के फूल सी
होती हैं स्त्रियाँ
इसलिए तो गुलाबी सी रंगत लिए
मुस्कुराती है सदा..
रीना मौर्य मुस्कान
लेखिका मुंबई महाराष्ट्र से है और आप एक शिक्षिका, ब्लॉगर एवं युवा कवि है। आपकी रचनाएं आजतक कई पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। आपके अब तक मां की पुकार, सहोदरी सोपान, कविता अनवरत-3, कविता अनवरत-4 सांझा काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके है। लेखिका से ई-मेल mauryareena72@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है आपके ब्लॉग को http://mauryareena.blogspot.com पर पढ़ सकते है।
© उपरोक्त रचना के सर्वाधिकार लेखक एवं अक्षय गौरव पत्रिका पत्रिका के पास सुरक्षित है।