
बस यूं ही आहत मन से भारत धर्मी समाज के प्रमुख डॉ. नंद लाल मेहता वागीश जी से मन की व्यथा कही थी।”” ‘पूजा’ को प्रतिबंधित करतीं कोलकाता में दीदी जी ,चप्पल धोती दीदी जी।”” ताकि मोहर्रम का जुलूस शांति से निकल जाए फिर चाहे जो हो सो हो ….और बस वागीश जी ने पूरा इतिहास उड़ेल दिया ,राष्ट्रीय उद्बोधन के संग -संग कर्तव्यबोध से च्युत दिखती दीदी जी को उनका कर्तव्य भी याद करवा दिया बंगला गौरव भी उनका दुर्गेश रूप भी। इस कविता के माध्यम से जो हुंकार बन के उठी है और करुणा से संसिक्त हो प्रार्थना के स्वरों में ढ़ल गई है :
धोती चप्पल दीदी जी |
ऐसा कर्म नसीबी जी ||
(१)
झांसी झपटी अंग्रेज़न पर ,
टूट पड़ी तुम कमरेडन पर |
कमर तोड़ दी उनकी ऐसी ,
अब तक करते सी सी सी ||
मत भूलो कोलकाता है ,
भारत गर्व सुहाता है ,
माँ गौरी और माँ काली ,
इन के बिन क्या बंगला री |
इनकी आस -निरास करोगी ,
तुष्टि हेतु घास चरोगी |
काम न आएं चाँद सितारे ,
सूरज का उपहास करोगी |
राजनीति यह छिछली जी ,
कुछ तो सोच करो सीधी |
धोती चप्पल दीदी जी ||
(२)
कोलकाता का अपना मानक ,
अपना वेष और अपना बानक |
मिल -फोटो में जल्दी क्या थी ,
माया -जीव देख लिपटी -सी |
ईस्ट इंडिया भारत आई ,
मॉम इठलिया साथ जमाई |
पर के सपने, सपने हैं ,
अपने तो फिर अपने हैं।
राम, रवींद्र, नरेन काली ,
भाषा कितनी मधुराली |
करो न ऐसा, रूठे काली ,
आज की कुर्सी कल खाली |
फिर क्या बैठ करीसी जी,
इतनी समझ करीबी जी |
धोती चप्पल दीदी जी ||
(३)
वोट बड़ा या देश बड़ा !
मन का प्रश्न कहीं गहरा |
देश बचा तो प्यार मिलेगा ,
ज्यों वर्षा -जल -भीगी जी |
धोती चप्पल दीदी जी | |
प्रस्तुति : वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ), पूर्व -व्याख्याता भौतिकी, यूनिवर्सिटी कॉलिज, रोहतक एवं प्राचार्य राजकीय स्नाक्तोत्तर कॉलिज, बादली (झज्जर ), हरियाणा।