लहरों की बांसुरी (कहानी) भाग 3 | सूरज प्रकाश

  • Post author:Udaan Hindi

उपरोक्त कहानी सूरज प्रकाश जी द्वारा रचित है। प्रकाश जी लेखन के क्षेत्र में देर से उतरे लेकिन उनका कहना है कि वे अब तक इतना काम कर चुके है कि अब देरी से लिखने का मलाल नहीं सालता। उन्होने अब तक लगभग चालीस कहानियां लिखी है और पांच कहानी संग्रह हैं। इसके अलावा उनके दो उपन्यास, दो व्यंग्य संग्रह और एक कहानी संग्रह गुजराती में भी है साचासर नामे जो 1996 में छपा था। मूल लेखन के अलावा आपने गुजराती और अंग्रेज़ी से बहुत अनुवाद किये हैं।

पेश है कहानी का तीसरा भाग

-माँ बाप ने तो अपना फर्ज पूरा कर दिया था। उन पर दोबारा बोझ डालने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। सास सामने पड़ती तो उसकी गालियाँ सुनती और पति के सामने पड़ती तो उनकी गालियाँ हिस्से में आतीं। मेरी जेठानी बेशक मेरी तरफदारी करती थी। वह अपनी बच्ची की तरह प्यार करती। मैं हर तरफ से बिल्कुल अकेली हो गयी थी। कोई भी तो नहीं था पास मेरे जिससे अपने मन की बात कह पाती। एक दो बार मन में आया जान ही दे दूं। क्या रखा था जीने में। 18 बरस की उमर में ही सारे दुःख और सुख देख लिये थे।

-घर के पिछवाड़े जामुन का एक पेड़ था। उसके तले बैठ कर रोना मुझे बहुत राहत देता था। एक दिन मैंने देखा कि पीछे के घर से हमारे आँगन में खुलने वाली खिड़की में एक युवक मुझे देख रहा है। मैं घबरा कर अंदर आ गयी थी।उसके बाद कई बार ऐसा हुआ। जब भी आंगन में जाती, वही युवक हाथ में कोई किताब लिए अपनी खिड़की में नजरआता। मैं उसे देखते ही सहम जाती और असहज हो जाती। डर भी लगता कि अगर मेरे घर के किसी सदस्य ने इस तरह उसे मुझे देखते हुए देख लिया तो ग़ज़ब हो जायेगा।

-एक दो बार ऐसा भी हुआ कि उसने मुझे देखते ही नमस्कार किया। मैंने कोई जवाब नहीं दिया, बस एक अहसास ज़रूर हुआ कि वह कुछ कहना, कुछ सुनना चाहता है।

-एक दिन मेरा मूड बहुत खराब था। सुबह सुबह सास ने डांटा था। पति ने उस दिन मुझ पर हाथ उठाया था और बिना नाश्ता किए घर से चले गए थे। मेरा कोई कसूर नहीं था लेकिन इस घर में सारी खामियों के लिए मुझे ही कसूरवार ठहराया जाता था। ये सबके लिए आसान भी था और सबको इसमें सुभता भी रहता था। कसूरवार ठहराया जाना तो खैर रोज़ का काम था लेकिन पति का मुझ पर बिना वज़ह हाथ उठाना मुझे बुरी तरह से तोड़ गया था। उस दिन सचमुच मेरी इच्छा  मर जाने की हुई लेकिन मरा कैसे जाये। ज़हर खाना ही आसान लगा। लेकिन ज़हर किससे मंगवाती।

-तभी मुझे याद आया कि खिड़की वाले लड़़के से कहकर जहर मंगवाया जा सकता है। मुझे नहीं पता था कि आत्महत्या करने के लिए कौन सा ज़हर खाया जाता है, कहां से और कितने में मिलता है। मेरे पास 50 रुपए रखे थे। मैंने वही लिए और एक काग़ज़ पर लिखा-मुझे मरने के लिए ज़हर चाहिये। ला दीजिये। मैंने अपना नाम नहीं लिखा था। ज्यों ही वह लड़का मुझे खिड़की पर दिखाई दिया, मैंने उसे रुकने का इशारा किया और मौका देख कर वह काग़ज़ और पचास का नोट उसे थमा दिया।

अंजलि रुकी हैं। एक लम्बा घूँट भरा है और सामने देख रही हैं। हवा में खुनकी बढ़ गयी है और लहरें हमारे पैरों तक आने लगी हैं।

वे आगे बता रही हैं- काग़ज़ लेने के बाद उसने खिड़की बंद कर दी थी। मैं बार बार आकर देखती लेकिन फिर खिड़की नहीं खुली थी। दो घंटे बाद हमारे घर का दरवाज़ा खुला था और उस लड़के की माँ किसी बहाने से हमारे घर आयी थी। कुछ देर तक मेरी सास और जेठानी से बात करने के बाद वह बहाने से मुझे अपने साथ अपने घर ले गयी थी।

-इतने दिनों में ये पहली बार हो रहा था कि मैं अपने घर से निकली थी। उनके घर गयी थी। उस भली औरत ने मेरे सिर पर हाथ फेरा था, मुझे नाश्ता कराया था और फिर धीरे-धीरे सारी बातें मुझसे उगलवा ही ली थीं। मुझे युवक पर गुस्सा भी आ रहा था कि छोटी-सी बात को पचा नहीं पाया और जाकर माँ को बता दिया था। अच्छा भी लगा था। मां की बातें सुन कर अब तक मरने का उत्साह भी कम हो चला था। उसकी माँ मेरी माँ जैसी थी और उन्हों ने मुझे बहुत प्यार से समझाया था और बताया था कि मर जाना लड़ना नहीं होता। अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती है और लड़ने के लिए जीना ज़रूरी होता है। इस सारे समय के दौरान युवक कहीं नहीं था। मुझे उसका नाम भी पता नहीं था।

-नितिन की मां से मिल कर जब मैं अपने घर लौटी थी तो मेरी हिम्मत बढ़ी थी। मुझे नितिन की माँ में अपनी मां मिल गयी थी। अब मेरा उनके घर आना-जाना हो गया था। नितिन से मेरी नाराज़गी भी दूर हो गयी थी। अब हम अच्छे दोस्त बन गए थे। अपनी मां के कहने पर उसने मेरे लिए पहला काम ये किया था कि मेरे लिए प्राइवेट इंटर करने के लिए फार्म ला कर दिया था और अपनी पुरानी किताबें और सारे नोट्स मुझे दे दिये थे। उसी से पता चला था कि वह बीए कर रहा था। अपना जेब खर्च पूरा करने के लिए दिन भर ट्यूशंस पढ़ाता था।

-अब मुझे एक बेहतरीन दोस्त मिल गया था। मैं उससे अपने मन की बात कह सकती थी। मैं अब रोती नहीं थी। नितिन ने मेरी आंखों में आंसुओं की जगह खूबसूरत सपने भर दिये थे। प्यार भरी ज़िंदगी का सपना, अपने पैरों पर खड़े होने का सपना, पढ़ने का सपना। ये सपना और वो सपना। अब किताबों की संगत में मेरा समय अच्छी तरह गुजर जाता। उसने मेरी हिम्मत बढ़ायी थी उसने और घर वालों की जली कटी सुनने और उनका मुकाबला करने का हौसला दिया था। मैं अब घर वालों की परवाह नहीं करती थी। मुझे नितिन ने ही बताया था कि आपसबकी परवाह करके किसी को भी खुश नहीं कर सकते। सबसे बड़ी खुशी अपनी होती है। अगर खुद को खुश करना सीख लें तो आप दुनिया को फतह कर सकती हैं। कितना सयाना था और कितना बुद्धू भी नितिन।

-अब मेरा सारा ध्यान पढ़ाई की तरफ था। ठान लिया था कि कुछ करना है। सत्रह और अठारह बरस की उम्र में जो  खोया था, बेशक उसे वापिस नहीं पा सकी थी लेकिन ये तो कर ही सकती थी कि चाहे कुछ भी हो जाये,और नहीं खोना है। नितिन और उसकी मां मुझे बिल्कुल कमज़ोर न पड़ने देते।

-मैंने बारहवीं का एक्जाम दिया था और अब पूरी तरह से खाली थी फिर भी नितिन की कोशिश रहती कि मैं बिलकुल भी वक्त बरबाद न करूं। कुछ न कुछ पढ़ती रहूं। उसी की मदद से एक अच्छी लाइब्रेरी की मेम्बंरशिप मिल गयी थी और इस बहाने मुझे घर से बाहर निकलने का मौका मिल गया था। देसराज और सास कुढ़ते रहते। ताने मारते और मेरे चरित्र पर उंगलियां उठाते लेकिन अब मैं इस सबसे बहुत दूर आ चुकी थी। अब मैं और नितिन बाहर ही मिलते और एक बार तो मैंने हिम्मत करके उसके साथ एक फिल्म भी देख डाली थी। अभी तक न तो नितिन ने और न ही मैंने ही ये कहा था कि हम दोनों के बीच कौन-सा नाता है। मुझे नहीं पता था,मैं पूछ भी नहीं सकती थी कि वह ये सब मेरे लिए क्यूँ करता है।

-मैं घर वालों के विरोध के बावजूद नितिन की और सिर्फ नितिन की बात मानती थी। तब मैं कहां जानती थी कि प्यार क्या होता है। देसराज मुझसे चौदह बरस बड़ा था। उसे भी कहां पता था कि प्यार क्या होता है। पता होता तो मुझे ज़हर मंगाने के लिए नितिन की मदद क्यों लेनी पड़ती और क्यों मेरी ज़िंदगी ही बदल जाती। मैं उसे अपना बेहतरीन दोस्त मानती थी। वह मेरे लिए फ्रेंड, फिलास्फर और गाइड था। वह हर वक्त मेरी मदद के लिए एक पैर पर खड़ा रहता। उसे पता था कि उसे मेरे घर वाले बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। एक जवान पड़ोसी का इस तरह से जवान और किस्मत से खूबसूरत बहू से मिलना कौन बर्दाश्त कर सकता था इसलिए हमने बाहर मिलना शुरू कर दिया था। उसकी मदद के बिना मैं एकदम अधूरी थी।

-एक दिन उसने मुझे एक रेस्तरा में चाय पीने के लिए बुलाया था। ये पहला मौका था कि हम इस तरह से चाय पर मिल रहे थे। उसने मेरे सामने एक पैंफलेट रखा था।
पूछा था मैंने-क्या। है ये।

-खुद ही पढ़ लो। उसने कहा था। एक बड़ी कंपनी अपने प्रोडक्ट की डायरेक्ट मार्केटिंग के लिए शहर में डायरेक्ट सेलिंग नेटवर्क बनाना चाहती थी। उन्हें  ऐसे एजेंट चाहिये थे जो पार्टटाइम या फुल टाइम काम कर सकें। ये हमारे शहर के लिए बिल्कुल नयी बात होती। पहले एक हजार रुपये देकर सामान खरीदकर उनका एजेंट बनना था।

मैंने नितिन से कहा था न तो मेरे पास एक हजार रुपए हैं और न ही इस तरह का काम करने का अनुभव ही है। घर वालों से तो मैं किसी तरह से निपट ही लेती। नितिन बोला था -सब हो जाता है। पहला कदम मुश्किल होता है। उसके बाद के कदम आसान हो जाते हैं। मेरे लिए हजार रुपए भी नितिन ने जुटाये थे। एक तरह से जबरदस्ती ही उसने मुझे ये एजेंसी दिलायी थी। वही मेरे लिए सामान लेकर आया था। मैं समझ नहीं पा रही थी कि इस देवदूत का कैसे आभार कैसे मानूं। वह कोई नौकरी नहीं करता था। मेहनत से कमाया अपना पूरा जेबखर्च उसने मेरे लिए एकनई ज़िंदगी की शुरुआत करने के लिए खर्च कर डाला था। घर में मेरा विरोध हुआ था लेकिन मैंने भी तय कर लिया था कि पढ़ना भी है और अपने पैरों पर खड़ा भी होना है।

मुझे अपना सामान बेचने के लिए शुरुआती ग्राहक ढूंढने में बहुत दिक्कत होती थी। मेरठ जैसे शहर में विदेशी मेक अप और दूसरा सामान बेचना आसान काम नहीं था। बरसों पुरानी आदतें बदलना आसान नहीं होता।

-काम के लिए रोजाना दस बीस लोगों से मिलना पड़ता। सामान का बैग उठाये उठाये घर-घर भटकना पड़ता। हर तरह की बातें सुननी पड़ती। फलां घर की बहू घर-घर जा कर अपनी इज्जत नीलाम कर रही है। नितिन मेरा हौसला बढ़ाये रहता। कुछ ग्राहक भी दिलवा देता। लेकिन पहले दो तीन महीने मेरा काम संतोषजनक नहीं रहा था। मैं थक चुकी थी। बेशक मेरा लड़की होना, सुंदर होना मेरे काम को आसान करते थे लेकिन ये तरीका मुझे मंजूर नहीं था। नंगी और भेदती निगाहों का सामना कर ना पड़ता। एक बार नितिन के कहने पर उसके एक दोस्त की बहन के घर गयी थी कुछ सामान बेचने। दोस्तो की बहन तो नहीं मिली थी लेकिन उसके ससुर घर पर अकेले थे। पानी पिलाने और सामान देखने के बहाने उस बुड्ढे ने मुझे एक तरह से नोंच खसोट ही लिया था। शाम को घर आकर दो बार नहाने के बावजूद मैं अपने बदन से चिपकी उसकी गंदी निगाहें नहीं हटा पायी थी। ऐसा अक्सर होता।

-तभी तीन अच्छे काम हुए थे और घर में मेरी इज्जत बढ़ गयी थी। मैं इंटर में पास हो गयी थी। मैं दोबारा मां बनने वाली थी और कंपनी ने एक नयी स्कीम निकाली थी कि आप अपने बल पर जितने एजेंट बनायेंगी, उनकी बिक्री का लाभ भी आपको मिलेगा।

-मुझे ये तरीका पसंद आ गया था। मैं इसी मुहिम में जी जान से जुट गयी थी। मेरी किस्मत अच्छी थी कि इस मिशन में मैं कामयाब होने लगी थी। मैंने किसी को भी नहीं छोड़ा। सारे रिश्तेदारों को, परिचित लोगों को और मोहल्ले में सबको फुल टाइम या पार्ट टाइम एजेंट बनाना शुरू कर दिया था। अब मैं घर पर ही नये और इच्छुक एजेंटों को बुला सकती थी। मैं अखबारों में पैंफलेट डालती, और लोगों को जोड़ती। मेरा आत्म विश्वास बढ़ने लगा था।

तभी अंजलि ने मेरी तरफ देखा है और पूछा है-तुम्हें  बोर तो नहीं कर रही। अब चौदह बरस की फिल्म देखने में कुछ वक्त तो लगेगा।

– नहीं कहती चलो। सुन रहा हूं मैं।

-बाकी बात बहुत ब्रीफ में बता रही हूं। मैंने काम करते हुए बीए किया, एमए किया, डिस्टैंहट लनिंग से मार्केटिंग में एमबीए किया। बेटा अब तेरह बरस का है जिसे मेरी जेठानी ही पालती है। मेरे पास इस समय 2000 एजेंट हैं जो लोकल भी हैं और दूसरे शहरों में भी। यानी मेरे ज़रिये लगभग इतने परिवार पल रहे हैं। एक एनजीओ की सर्वेसर्वा हूं। ईवा नाम का ये एनजीओ बच्चों और गरीब लड़कियों के लिए काम करता है। मैं हर बरस बारहवीं क्लास की पाँच ऐसी लड़कियां चुनती हूं जिनकी पढ़ाई किसी न किसी वजह से छूट गयी है और वे पढ़ना चाहती हैं। उनकी पूरी पढ़ाई का खर्च मेरे जिम्मे।

-मैं इस समय अपनी कंपनी में काफी महत्वपूर्ण कड़ी हूं। हैड क्वार्टर में और बड़ी जिम्मेवारियों के लिए बार-बार बुलाया जाता है लेकिन मेरे कुछ उसूल हैं। नहीं जाती। अब मुझे खुद इतना काम नहीं करना पड़ता। मेरा डेडिकेटेड स्टाफ है जो अपना काम बखूबी करता है। हर महीने दो लाख रुपये के करीब मेरे खाते में जमा हो जाते हैं। अच्छी  खासी सेविंग कर ली है। कंपनी बीच बीच में ईनाम देती रहती है और घुमाती फिराती रहती है। अपनी पसंद का खूबसूरत घर बनाया है और मैं अपनी ही दुनिया में मस्त हूं। इस दुनिया में हर कोई नहीं झांक सकता।

पूछता हूं मैं – इस पूरे सफर में नितिन कहां रह गया?

-नितिन ने भी एमबीए किया था। वह एमए तक तो मेरठ में ही रहा। फिर एमबीए करने अहमदाबाद चला गया था। उसकी बहुत याद आती। हम फोन पर ही बात कर पाते। जब एमबीए करने जा रहा था तो बहुत उदास था। उसने मुझे दावत दी थी और तब इतने बरसों में पहली बार उसने मेरा हाथ थामा था और प्रोपोज किया था- छोड़छाड़ दो ये सब। हम अपनी दुनिया बसायेंगे। तब तक मुझमें कुछ समझ तो आ ही चुकी थी। बेशक मैं उससे बेइंतहां प्यार करती थी लेकिन भाग कर शादी करने के बारे में सोच नहीं सकती थी।

-अहमदाबाद जाने के बाद वह चाहत और गरमी कुछ दिन तो रहे फिर धीरे धीरे कम होने लगे थे। मेरी ज़िंदगी का वह अकेला प्यार था और रहेगा, बेशक उसकी ज़िंदगी में औरों ने दस्तक दी ही होगी। जो होता है अच्छा ही होता है। आजकल यूएसए में है। मैं अपने पहले और इकलौते प्यार को कभी नहीं भूल पायी। आइ मिस हिम ए लाट। आइ स्टिल लव हिम।

-यही होना होता है जीवन में अंजलि। जो हमारा जीवन संवारते हैं,हमें उन्हीं का साथ नहीं मिल पाता।

-मैंने बहुत तकलीफें भोगी हैं समीर। वहां से यहां तक की पन्द्रह बरस की दौड़ बहुत मुश्किल रही है। कई बार यकीन नहीं होता कि ये सफर मैंने अकेले तय किया है।

-कहती चलो। मैं अंजलि को दिलासा देता हूं।

-घबराओ नहीं, मेरी बात लगभग पूरी हो चुकी है। बस दी एंड करना है। इस कहानी में आखिरी चैप्टर देसराज का है। परेश का बाप बनने के बाद उसे एक नयी दुनिया मिल गयी। उसे इस बात की कोई परवाह नहीं रही कि मैं क्या करती हूं कहां जाती हूं और हूं भी सही या नहीं। उसका पीना और बढ़ गया है।

-तीन बरस पहले मैंने उसे अपनी ही कंपनी के प्रोडक्ट की एंजेसी दिला दी है। मेरे एजेंट जितना सामान बुक करते हैं उतना ही वह बेचता है। मुझसे ज्यादा ही कमा लेता है। हंसी आती है – वह सबको यही बताता है कि उसकी एजेंसी के बल पर ही मेरा काम चल रहा है। कई बार भ्रम भी कितने खूबसूरत होते हैं ना।

अंजलि बताती जा रही है -वह अपनी दुनिया में मस्त है, मैं अपनी दुनिया में। कहने को हम पति पत्नी  हैं लेकिन इस रिश्ते की रस्में निभाये अरसा बीत गया है। मैं अभी बत्तीस की हूं और देसराज छियालिस का। बेशक उससे मेरे वे संबंध नहीं रहे हैं लेकिन फिर भी मैंने कभी उससे बेईमानी नहीं की है। खुद को पूरी तरह काम में खपाये रखती हूं। एक मिनट के लिए भी खाली नहीं बैठती। हर वक्त कुछ न कुछ करती ही रहती हूं। ध्यान, योगा, जिम, सोशल कमिटमेंट्स, एनजीओ, बच्चे और प्रकृति। सच समीर, इस सेल्फ एक्चु आलाइजेशन ने तो मेरी ज़िंदगी ही बदल दी है। मेरे सारे काम इसी से कंट्रोल होते हैं।

– मैं समझ रहा हूं अंजलि। मैं उसका कंधा थपथपाता हूं। मैं अंधेरे में अंजलि का चेहरा नहीं देख पा रहा लेकिन उसकी आवाज का दर्द बता रहा है कि वह कितनी तनहा है। दोस्त चला गया, पति न अपना था, न अपना रहा। ऐसे में उस जैसी खुद्दार लड़की खुद को कैसे संभालती होगी।

-कुछ और बताना पूछना बाकी है समीर, वह अंधेरे में मेरी तरफ देखती है।

-नहीं अंजलि, सब कुछ तो तुमने बता दिया है। सच में यकीन नहीं हो रहा कि जो अंजलि मेरे पास बैठी है, जो मुझसे पहली बार मिली है और जिसे मैं दो दिन से लगातार न सिर्फ देख रहा हूं,बल्कि पूरी शिद्दत से जिसे महसूस कर रहा हूं, यहां तक पहुंचने की तुम्हारी तकलीफ की बातें सुन कर दहल गया हूं। तुम्हें सलाम है दोस्त।

अंजलि ने मेरा हाथ दबाया है – वो सब तो ठीक है लेकिन तुमने ये नहीं पूछा कि इस गिलास से मेरी दोस्ती कब और कैसे हो गयी। वह मेज पर रखे गिलास की तरफ इशारा करती है।

मैं हंसता हूं – नहीं, मैं समझ रहा हूं। दोस्त चला गया हो, जीवन साथी कभी अपना न रहा हो और अपनी मेहनत के बलबूते पर सफलता मिलने लगी हो तो सेलिब्रेट करने के लिए कोई तो साथी चाहिये ही। तब भरा हुआ गिलास सबसे अच्छा दोस्ती होता है। चाहे उसे कितनी बार खाली करो, चाहे किस भी ड्रिंक से भर दो, कोई शिकायत नहीं करता।

-सही कह रहे हो समीर। अब ये गिलास ही मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। देसराज वैसे तो आम दुकानदार किस्म का आदमी है लेकिन एक बात उसकी बहुत अच्छी है। वह बहुत सलीके से पीता है। घर पर ही उसने एक बढ़िया-सा बार बना रखा है। उसके पास बेहतरीन कटलरी है और हर तरह की शराबों का शानदार कलेक्शन है उसके पास।
मैं हंसा हूं – तो घर का माल घर पर ही …।

– पहली बार मैंने उसके बार में से ही चुरा कर पी थी। उस दिन जब नितिन के दोस्त की बहन के ससुर ने मुझ पर हाथ डाला था। मुझे तब पता ही नहीं था कि कौन सी बॉटल में क्या  है और उसे कैसे पीते हैं। बस गिलास में डाली थी और हलक से नीचे उतार ली थी। फिर तो सिलसिला बनता चला गया। अब तो तय करना ही मुश्किल है कि देसराज ज्यादा पीता है या मैं ज्यादा पीती हूं।

-अब चलें समीर। ये पानी तो अब कुर्सी पर चढ़ कर सिर तक आने को बेताब हो रहा है।

मैं सहारा दे कर अंजलि को कमरे तक लाता हूं। कल अंजलि मुझे सहारा देकर लायी थी। आज मैं..।

अंजलि वाशरूम में गयी हैं तो मैं पहले कमरे में ही पसर गया हूं लेकिन बाहर आते ही उन्होंनेमुझे उठा दिया है – ये बेईमानी नहीं चलेगी। तुम जाओ अपने कमरे में। और मेरा हाथ थाम कर बेड रूम में ले आयी हैं।

अभी मेरी आँख लगी ही है कि झटके से मेरी नींद खुली है। अंजलि मेरे कंधे पर झुकी मुझसे पूछ रही हैं-क्याे मैं थोड़ी देर के लिए तुम्हारे पास सो सकती हूं?

मैं उठ बैठा हूं- ओह, श्योर श्योर कम। मैंने उनके लिए तकिया ठीक किया है लेकिन वे दुबक कर छोटी सी मासूम बच्ची की तरह मेरे सीने से लग कर सो गयी हैं। मैं उनके कंधे थपथपा रहा हूं और उनके बालों में उँगली फिर रहा हूं। इस समय एक जवान और खूबसूरत औरत का मेरी बांहों में होना भी मुझमें किसी तरह की सैक्सुअल फीलिंग नहीं जगा रहा। नशे में होने के बावजूद एक अजीब सा ख्याल मेरे मन में आता है -औरत ही हर बार कई भूमिकाएं अदा करती है। बहन, बेटी, पत्नी, मां। मेरे सीने से बच्ची की तरह लग कर सोयी अंजलि के लिए मैं आज पिता या भाई की भूमिका निभा रहा हूं।

नींद मेरी आंखों से कोसों दूर चली गयी है। पता नहीं क्या-क्या  दिमाग में आ रहा है। दो दिन में कितने तो रूप दिखा दिये इस मायावी अंजलि ने। कल सुबह का चलती कार में उनका वह रूप और अब मेरे सीने से लगी अबो बच्ची सी सो रही अंजलि का ये रूप। कितने रूप एक साथ जी रही है ये अकेली औरत।

मैं उनके चेहरे की तरफ देखता हूं। गहरी नींद में हैं। मेरा नशा अभी बाकी है। लेकिन इतना होश भी बाकी है कि पूरी रात इस तरह बिताना मेरे लिए कितना मुश्किल होगा। कुछ भी अनहोनी हो सकती है। मैं कमज़ोर पडूं, इससे पहले ही अंजलि को आराम से सुलाता हूं, उनका सिर तकिये पर टिकाता हूं और हौले से उठ कर बाहर वाले कमरे में आता हूं। दस कदम चलने से ही मेरी सांस फूल गयी है जैसे मीलों लम्बा सफर करके आया हूं।

अचानक झटके से मेरी नींद खुली है। पेट में कुछ गड़बड़ लग रही है। तेजी से बाथरूम की तरफ लपकता हूं। उफ..। ये क्या मुसीबत है। वापिस आया ही हूं कि फिर..फिर..। अभी तो बाथरूम की टंकी ही नहीं भरी होती। क्या  करूं..। अंजलि को जगाऊं..। नहीं वे भी क्या करेंगी। बेचारी बच्ची की नींद सो रही हैं। लेकिन बार बार फ्लश की आवाज सुन कर उनकी नींद खुल ही गयी है। पूछती हैं- क्या हुआ समीर। और मैं यहां कैसे आ गयी। मैं तो बाहर सोयी थी समीर।

मैं निढाल सा सोफे पर पसरा बैठा हूं। बताता हूं-पेट गड़बड़ा गया है। बीस बार तो हो आया। बाहर के कमरे तक जाने और बार बार बाथरूम तक आने की ताकत ही नहीं बची है।

अंजलि उठ कर मेरे पास आ गयी हैं। मेरे माथे पर हाथ फिरा कर देखती हैं, बुखार तो नहीं है। मैं इशारे से बताता हूं –बुखार नहीं है। वे बताती हैं- रुको, मेरे पास गोली है। वे लपक कर गयी हैं और अपने बैग में से गोली ले कर आयी हैं। पानी के साथ गोली ली है मैंने। अंजलि कहती हैं- लेट जाओ, लेकिन मैं ही मना कर देता हूं। उठ कर बैठने और बाथरूम भागने में दिक्कत होगी। अंजलि चिंता में पड़ गयी हैं- कितनी बार हो आये?

मैं इशारे से बताता हूं -कई बार। गिनती याद नहीं। वे सीरियस हो गयी हैं-डॉक्टर को बुलाने की ज़रूरत है क्या? वे घड़ी देखती हैं- तीन बज कर चालीस मिनट।

मैं मना कर देता हूं – जितना जाना था जा चुका। अब भीतर बचा ही क्या है।

अंजलि अफसोस के साथ कहती हैं- गलती मेरी है। मैं समझ गयी थी कि तुम्हारी इतनी लिमिट नहीं है। लेकिन बार-बार और हर तरह के ड्रिंक्स पिलाती रही। छी: मैं भी क्या कर बैठी। तुम्हेंं कुछ हो गया तो…। वे अपने आपको कोसे जा रही हैं।

मैं इस हालत में भी उन्हें समझाता हूं- ऐसा कुछ नहीं हुआ है। मैंने शायद ढंग से खाना नहीं खाया था और ज्यादा ले ली थी। अब गोली से आराम आ रहा है।

वे फिर उठी हैं और मेरे लिए जग भर के पानी में नमक, चीनी का घोल बनाया है। उसमें उन्होंने संतरे का जूस और नींबू का रस मिलाया है। वे हर पाँच मिनट बाद गिलास भर कर मुझे ये घोल पिला रही हैं ताकि डीहाइड्रेशन न हो जाये। थोड़ी देर पहले मेरे सीने से बच्ची की तरह लग कर सो रही अंजलि अब दादी मां बन कर मेरा इलाज कर रही हैं। यह पता चलने पर कि मैंने खाया ढंग से नहीं खाया था, वे मेरे लिए फ्रूट बॉस्केट में से केले ले आयी हैं और मुझे जबरदस्ती खिलाये हैं। मैं अब बेहतर महसूस कर रहा हूं लेकिन अंजलि कोई रिस्क नहीं लेना चाहतीं। उनकी नींद पूरी तरह से उड़ गयी है।

उन्हें फ्रिज में रखी हुई योगर्ट मिल गयी है। वे अब मेरे सामने बैठी अपने हाथों से चम्मच से मुझे योगर्ट खिला रही हैं। मैं उनका सिर सहलाते हुए कहता हूं -बस कर दादी मां, अब बस भी कर लेकिन वे नहीं मानतीं। घंटे भर में उन्हों ने अपना बनाया एक लीटर घोल मुझे पिला दिया है।

सुबह के छ: बजने को आये हैं। अब मैं बेहतर महसूस कर रहा हूं।

पिछले एक घंटे में सिर्फ दो बार गया हूं। अंजलि ने मुझे लिटा दिया है और मेरे पास बैठी हुई हैं। मैं उन्हें सो जाने के लिए कहता हूं लेकिन वे मना कर देती हैं। मेरी हालत के लिए वे अभी भी खुद को कसूरवार मान रही हैं। इस बीच वे दो बार मेरे लिए ब्लैेक टी विद शुगर बना चुकी हैं। एक बार तो कंपनी देने के लिए खुद भी मेरे साथ ब्लैक टी पी है।
पता नहीं कब मेरी आँख लग गयी होगी। देखता हूं अंजलि खिड़की के पास वाले सोफे पर बैठी पेपर पढ़ रही हैं। आठ बज रहे हैं। मुझे जागा देख कर वे मेरे पास आयी हैं और प्याेर से मेरा माथा चूम कर बोली हैं- गुड मार्निंग दोस्त। थैंक गॉड। तुम अब ठीक हो, वरना मैं अपने आप को कभी माफ न कर पाती।

देखता हूं – अंजलि नहा कर तैयार भी हो चुकी हैं। कॉलर वाली यलो टी शर्ट और ब्लैाक ट्राउजर। ग्रेट कम्बीनेशन।

कह रही हैं-एक काम करते हैं। अब हम यहां और नहीं रुकेंगे। बेशक शाम 6 बजे की फ्लाइट है मेरी लेकिन हम मुंबई ही चलते हैं। कुछ हो गया तुम्हें तो यहां ढंग से मेडिकल एड भी नहीं मिलेगी। मैं ब्रेकफास्ट यहीं मंगवा रही हूं। तब तक तुम नहा लो। कपड़े निकाल देती हूं तुम्हारे। और मेरे मना करने के बावजूद अंजलि ने मेरे बैग में से मेरे लिए पकड़े निकाल दिये हैं।

देखता हूं – येलो स्ट्राइप वाली टीशर्ट और ब्लैेक पैंट। मैं कलर कम्बीनेशन देख कर हंसता हूं। वे समझ जाती हैं कि मैं क्यों  हंस रहा हूं।

मुझे चीयर अप करने के लिए बताती हैं- मेरे स्टाफ में आठ लोग हैं। तीन जेंट्स और पाँच लड़कियां। सैटरडे हम किसी न किसी बहाने पार्टी करते ही हैं। एक पार्टी होती है कलर कम्बीनेशन की। अगर किसी मेल मेम्बर के कपड़ों के रंग जरा साभी किसी फीमेल स्टाफ के कपड़ों के रंग से मैच कर जायें तो दोनों को पार्टी देनी होती है। कई बार मजा आता है कि कई लोगों के रंग आपस में मैच कर जाते हैं। अब हमारे स्टाफ मेम्बर अपने लिए कपड़े खरीदते समय ख्याल रखते हैं कि किस किस के पास इस रंग के कपड़े हैं। शनिवार को तो सबकी हालत खराब होती है। यह बताते हुए अंजलि अब एक खूबसूरत स्मांर्ट एक्सक्यूटिव में बदल गयी हैं।

जब तक ब्रेकफास्ट आये और मैं नहा कर आऊं, अंजलि ने सारा सामान पैक कर दिया है और रिसेप्शन को बिल तैयार करने के लिए कह दिया है।

मेरे लिए अंजलि ने केले, सादी इडली, योगर्ट और गाजर का जूस मंगाये हैं। रास्ते  के लिए उन्होंने दो बॉटल डीहाइड्रेशन वाला घोल बना कर रख लिया है।

मेरे बहुत जिद करने पर भी होटल का बिल अंजलि ने दिया है और मुझे वेटरों को टिप तक नहीं देने दी है। हंसी आ रही है कि अंजलि नर्स की तरह मेरी केयर कर रही हैं। मेरा हाथ थाम कर नीचे लायी है, और छोटे बच्चे की तरह कार में बिठाया है। सीट बेल्ट  भी उसी ने लगायी है। इतना और किया कि लिफ्ट में ही मेरे गाल पर एक चुंबन जड़ दिया था।
मैं अंजलि से कहना चाहता हूं कि तुम रात भर सोयी नहीं हो, कार मुझे चलाने दो लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी है।

वे बता रही हैं कि वे अगर गोवा गयी होती तो कितने खूबसूरत दिन मिस करती। वहां सब इन्फािर्मल होते ही भी फार्मल ही होता और अकेले वक्त बिताने के लिए सबकी नाराजगी मोल लेनी पड़ती।

तभी मैंने पूछा है -अंजलि एक बात बताओ।

-पूछो मेरे लाल। वे सुबह से पहली बार खुल कर हंसी हैं। मुझे अच्छा  लगा है कि अंजलि अब अपने उसी मूड में लौट आयी हैं जिसमें वह परसों आते समय थीं।

-हम परसों सुबह से एक साथ हैं। इस बीच बीसियों बार मेरा मोबाइल बजा है। मैंने कभी एटैंड किया है और कई बार नहीं भी किया है। लेकिन इस सारे अरसे में तुम्हारा मोबाइल एक बार भी नहीं बजा है।

-भली पूछी दोस्त जी। निगाहें सड़क पर जमाये अंजलि कह रही हैं- सही कहा। मेरे पास दो मोबाइल हैं। एक ऑफिस का और एक पर्सनल। दोनों में शायद ही कोई नम्बर हो जो दोनों में हो। देसराज के नम्बर के अलावा। संयोग से वह हमारा डीलर भी है और रिश्ते में पति भी लगता है। तुमसे बात करने के लिए और होटल बुक करने के लिए ही मैंने अपना मोबाइल ऑन किया था। तब से दोनों मोबाइल बंद ही हैं। ये तीन दिन सिर्फ मेरे थे और मैंने अपने तरीके से जीये। मैं अपने वक्तो में किसी का दखल नहीं चाहती। किसे क्या करना है, मैंने सबको बता रखा है। कोई समस्या हो तो इंतज़ार कर सकती है। मेरा सबसे बड़ा सच मेरा सामने वाला पल है।

अचानक कार रुकने के कारण मेरी नींद खुली है। अरे, मैं कब सो गया पता ही नहीं चला। अंजलि की तरफ देखता हूं। वे मुस्कुरा रही हैं। उन्होंने कार साइड में रोकी है। बाहर देखता हूं – अरे, ये तो शिमला रिसार्ट है। मैं पहले भी दो एक बार यहां आ चुका हूं। इसका मतलब हम मुंबई के पास हैं।

घड़ी देखता हूं – बारह बजे हैं। अंजलि ने मेरी तरफ का दरवाजा खोला है। पता ही नहीं चला कि बात करते करते कब सो गया था।

-कैसा लग रहा है अब?

-बेहतर महसूस कर रहा हूं।

-श्रीमान जी, कितना भी बेहतर महसूस करें, आपको पीने के लिए और नहीं मिलने वाली और खाने के लिए दही चावल ही मिलेंगे।

-कोई बात नहीं सिस्टेर जी। आपकी केयर में हूं तो आप मेरा भला ही सोचेंगी। हम दोनों ही हंस दिये हैं।

रिसोर्ट में बायीं तरफ रेस्तरा हैं जहां फैमिली केबिन बने हुए हैं। बहुत कलात्मक। एक तरफ लम्बा सोफा जिस पर तीन आदमी आराम से बैठ सकें और मेज के दूसरी तरफ गाव तकियों से सजा एक तख्त।

मैं तख्त पर गाव तकियों के सहारे पसर गया हूं। अचानक अंजलि सोफे से उठी हैं और बाहर चली गयी हैं। मैंने आंखें बंद की ली हैं।

अंजलि वापिस आयी हैं तो उनके हाथ में आइपैड और डीहाइड्रेशन के घोल वाली बोतल है। बोतल मेरी तरफ बढ़ाते हुए पूछ रही हैं- बोतल से पीयेंगे या गिलास मंगवाऊं?
मैं छोटा बच्चा बन गया हूं – एक शर्त पर पीऊंगा।

-बता दीजिये।

-इसके बाद आपके साथ एक आखिरी बीयर तो बनती है।

-कमाल है। रात भर की तकलीफ काफी नहीं है। चलो ठीक है। सिर्फ एक गिलास मिलेगी। लो पहले इसे पीओ और उन्होंने बोतल खोल कर मेरे मुंह से लगा दी है।

अंजलि पूछ रही हैं- यहाँ से 6 बजे की फ्लाइट के लिए कितने बजे निकलना ठीक रहेगा?

-वैसे तो तीस चालीस मिनट का रास्ता है लेकिन हाइवे का मामला है। हम साढ़े तीन बजे निकलेंगे।

-तुम्हें  कोई तकलीफ तो नहीं है ना अब?

– नहीं, एकदम ठीक कर दिया तुम्हारे ड्रिंक ने।

अंजलि ने वेटर को पीने और खाने का ऑर्डर दिया है। मेरे लिए एक गिलास बीयर और कर्ड राइस पर सहमति हो गयी है।

अंजलि अपने आइपैड में तस्वीरें दिखा रही हैं। वे भी आराम से तख्त पर बैठ गयी हैं।

हर तस्वीर से जुड़ा कोई न कोई मजेदार किस्सा शेयर कर रही हैं। इस समय वे बहुत अच्छे मूड में हैं। मैं अधलेटा हूं और वे मेरे सिर की तरफ बैठी हैं। अचानक उन्होंने मेरा सिर अपनी गोद में रख दिया है। मैंने आंखें बंद कर ली हैं। वे मेरे चेहरे की तरफ झुकी हैं और मेरा माथा सहला रही हैं। उनके बालों ने मेरे चेहरे पर एक झीना जाल डाल दिया है।
अचानक एक गरम बूंद मेरे गाल पर गिरी है। वे नि:शब्द रो रही हैं। आंसुओं से उनका चेहरा तर है। मैं कुछ कह नहीं पाता कि क्या कहूं। वे रोये जा रही हैं। मैं हाथ बढ़ा कर उनके आंसू अपनी उँगली की कोर पर उतार लेता हूं। वे मेरी उँगली अपने मुंह में दबा लेती हैं।

कह रही हैं- मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया।

-नहीं तो?

-मैं अचानक आयी, तुम्हाहरा शेड्यूल अपसेट किया। कितनी उम्मीदें जगा दीं और सताया।

-नहीं तो?

-जानती हूं कि पास में युवा और खूबसूरत लड़की हो तो किसी का मन भी डोल सकता है। पता नहीं तुम खुद पर कैसे कंट्रोल कर पाये।

मैं उनके बाल सहलाते हुए हंसता हूं – बहुत आसान था।

वे हम्म करके इशारे से पूछती हैं- वो कैसे भला?

-कुछ तुम्हारी शर्तें, कुछ मेरी वैल्यूज, कुछ मेरे डर और कुछ तुम्हारी वैल्यूज।

अंजलि ने मेरे गाल पर चपत मारी है- और?

-एक और बात भी थी कि वह सब करने के लिए खुद को मनाना और तुम्हें तैयार करना बिलकुल भी मुश्किल नहीं था। पता तो था ही कि तुम नार्मल सेक्स लाइफ तो नहीं ही जी रही हो। ऐसे में मेरा काम आसान हो जाता लेकिन ऐसे बनाये गये संबंधों का एक ही नतीजा होता है।

-क्या?

-या तो वे हमेशा के लिए उसी तरफ मुड़ जाते हैं या बिल्कुल खत्म हो जाते हैं। और ये दोनों बातें ही मैं नहीं चाहता था।

-कहते चलो।

-ऐसे करने का मतलब होता एक अच्छी दोस्त को हमेशा के लिए खो देना जो कि बहुत बड़ा नुक्सान होता।

अंजलि झुकी हैं और पहली बार मेरे होंठों को क्षण भर के लिए अपने होठों से छू भर दिया है- शायद मैं इसी भरोसे पर यहाँ और तुम्हारे पास ही आयी थी कि मैं एक मैच्योर दोस्त से मिलने जा रही हूं। मेरे लिए भी तुम्हारी मस्त कर देने वाली मौजूदगी में अपने आपको नियंत्रण में रखना इतना आसान नहीं था। तुम्हें  शायद पता न हो, मैं दोनों रात एक पल के लिए भी नहीं सोयी हूं। पहली रात तुम कमज़ोर पड़े थे तो मैंने तुम्हें  सँभाला था। बेशक लहरों में बह जाना मेरे लिए भी सहज और आसान होता। दूसरी रात मैं कमज़ोर पड़ गयी थी और तुम्हारे पास चली आयी थी कि जो होना है हो जाये लेकिन कल रात तुमने मुझे कमज़ोर होने से बचा लिया और उठ कर दूसरे कमरे में चले गये थे। तब मैं नींद में नहीं थी। तुम्हारी नजदीकी का पूरा फायदा उठाना चाह रही थी लेकिन तुमने मौका ही नहीं दिया और भाग खड़े हुए ।

मैंने नकली गुस्सा दिखाया है- यू चीट।

– थैंक्स समीर।

– अब किस बात का थैंक्स भई?

– इस यात्रा में मेरे सेल्फ एक्चुअलाइज़ेशन के अनुभवों में एक और आयाम जुड़ गया है समीर।

मैं भोला बन गया हूं – वो क्या?

-मेरा ये अहसास और पुख्ता  हो गया है कि देह से परे भी दुनिया इतनी खूबसूरत हो सकती है। सही कह रहे हो समीर कि हमारी ये यात्रा अगर देहों से हो कर गुज़रती तो उन्हीं अंधी गलियों में भटक कर रह जाती और हम उससे कभी बाहर न आ पाते। थैंक यू माय दोस्त ,थैंक यू। हम दोनों ने ही आगे की मुलाकातों के रास्ते  बंद नहीं किये हैं। खुले रखे हैं। थैंक्सं अगेन।

मैं मुस्कुरा कर रह गया हूं। इस बात का क्या जवाब दूं। मैंने उनके बिखरे बाल समेट कर उनके कानों के पीछे कर दिये हैं। उनका चेहरा दमक रहा है।

एयरपोर्ट आते समय ड्राइविंग सीट मुझे वापिस मिल गयी है।

मैं चुहल करते हुए पूछता हूं – तो आपका रूफ टॉप गार्डन हमें कब देखने को मिलेगा?

– जल्दबाजी न करें श्रीमन। अभी तो हमें इस जादुई यात्रा के तिलिस्म से बाहर आने में ही समय लगेगा। और याद रखें कि यात्राएं और मुलाकातें हमेशा संयोग से ही होती हैं। अचानक ही। जैसे ये मुलाकात हुई। हम ज़रूर मिलेंगे लेकिन कहां मिलेंगे और कब मिलेंगे, इसकी कोई भविष्यवाणी सेल्फ  एक्चुरलाइज़ेशन नहीं करता। वे खिलखिला कर हंस दी हैं।

मैंने उन्हें ड्राप किया है। कार से उतर कर हम गले मिले हैं और फिर से मिलने का वादा करके बिछड़ गये हैं।

वापिस आने के लिए कार स्टार्ट करते समय मैं तय नहीं कर पा रहा कि मैं एकदम खाली हो गया हूं या किसी दैविक ताकत से भर गया हूं।

समाप्त।

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