गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों में आज काफी उत्साह था, उनकी बारह वर्षों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और अब वो अपने घरों को लौट सकते थे। गुरु जी भी अपने शिष्यों की शिक्षा-दीक्षा से प्रसन्न थे और गुरुकुल की परंपरा के अनुसार शिष्यों को आखिरी उपदेश देने की तैयारी कर रहे थे।
उन्होंने ऊँची आवाज़ में कहा, ‘आप सभी एक जगह एकत्रित हो जाएं, मुझे आपको आखिरी उपदेश देना है।’
गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए सभी शिष्य एक जगह एकत्रित हो गए।
गुरु जी ने अपने हाथ में कुछ लकड़ी के खिलौने पकडे हुए थे, उन्होंने शिष्यों को खिलौने दिखाते हुए कहा, ‘आप को इन तीनो खिलौनों में अंतर ढूँढने हैं।’
सभी शिष्य ध्यानपूर्वक खिलौनों को देखने लगे, तीनो लकड़ी से बने बिलकुल एक समान दिखने वाले गुड्डे थे। सभी चकित थे कि भला इनमे क्या अंतर हो सकता है?
तभी किसी ने कहा, ‘अरे, ये देखो इस गुड्डे में एक छेद है।’
यह संकेत काफी था, जल्द ही शिष्यों ने पता लगा लिया और गुरु जी से बोले, ‘गुरु जी इन गुड्डों में बस इतना ही अंतर है कि एक के दोनों कान में छेद है दूसरे के एक कान और एक मुंह में छेद है और तीसरे के सिर्फ एक कान में छेद है।’
गुरु जी बोले, ‘बिलकुल सही और उन्होंने धातु का एक पतला तार देते हुए उसे कान के छेद में डालने के लिए कहा।’
शिष्यों ने वैसा ही किया। तार पहले गुड्डे के एक कान से होता हुआ दूसरे कान से निकल गया, दूसरे गुड्डे के कान से होते हुए मुंह से निकल गया और तीसरे के कान में घुसा पर कहीं से निकल नहीं पाया।
तब गुरु जी ने शिष्यों से गुड्डे अपने हाथ में लेते हुए कहा, ‘प्रिय शिष्यों, इन तीन गुड्डों की तरह ही आपके जीवन में तीन तरह के व्यक्ति आयेंगे।’
पहला गुड्डा ऐसे व्यक्तियों को दर्शाता है जो आपकी बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देंगे, आप ऐसे लोगों से कभी अपनी समस्या साझा ना करें। दूसरा गुड्डा ऐसे लोगों को दर्शाता है जो आपकी बात सुनते हैं और उसे दूसरों के सामने जा कर बोलते हैं, इनसे बचें और कभी अपनी महत्त्वपूर्ण बातें इन्हें ना बताएं और तीसरा गुड्डा ऐसे लोगों का प्रतीक है जिनपर आप भरोसा कर सकते हैं और उनसे किसी भी तरह का विचार–विमर्श कर सकते हैं, सलाह ले सकते हैं, यही वो लोग हैं जो आपकी ताकत है और इन्हें आपको कभी नहीं खोना चाहिए।
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