किरायेदार

  • Post author:Web Editor

जून की तपती गर्मी का समय था। हम किराए के मकान के लिए पूरे दिन भटकने के बाद हारे हुए योद्वा की तरह घर जा रहे थे। तभी हमें गली के नुक्कड़ पर घर के बाहर खड़े सज्जन से दिखने वाले एक व्यक्ति मिले। जिन्हे देखकर मन हुआ कि एक अंतिम प्रयास कर लिया जाये।

मैंने उनके पास जाकर पूछा- भाईसाहब! आपके यहां भी किराये पर मकान मिल जाएगा।

इतना ही पूछा था कि सज्जन से दिखने वाले व्यक्ति ने पहले तो हमें ऊपर से नीचे तक घूरा और फिर सोचते हुए बोले- हाँ! है किसके लिए चाहिए।

इतना सुनना था कि मैदान में अपने बाउंड्री पर कैच लपकने वाले खिलाड़ी की तरह चौकन्ना रहते हुए तपाक से हमने भी जवाब दिया- हमें खुद के लिए ही चाहिए।

सज्जन व्यक्ति अब तो पुलिसिया अंदाज में बोले- क्या तुम अकेले रहोगे या परिवार के साथ। परिवार के साथ रहोगे तो परिवार में कौन-कौन है?

पिछले कुछ समय में शहर में किरायेदारों को लेकर खराब खबरें चल रही थी। किरायेदारों की बढ़ती हुई मनमानी और कुकृत्यों को समझते हुए हुए हम बोले- भाई साहब, हम परिवार सहित रहेंगें और हमारे परिवार में हमारी माता जी, धर्मपत्नी और एक छोटी सी बिटिया है।

सज्जन व्यक्ति जो कि स्वयं मकान मालिक थे, बोले- ठीक है, आपको हम अपना मकान दे सकते है।

हम अपने समय की नजाकता को देखते हुए बोले- चलिए, फिर आप मकान दिखा दिजिए।

लेकिन मकान मालिक महोदय तो ऐसे आराम से बैठे हुए थे कि जैसे मकान किराये पर न देकर बेचने के लिए बात कर रहा हो और उसका सौदा करके ही उठेगा।

हमें घूरकर नाक भोंह सिकोड़ते हुए बोला- अरे भईया तनिक रूको! थोड़ा नियम और कायदे भी तो सुन लो। जिससे तुम्हे भी परेशानी न हो और हमें भी।

तभी मकान मालिक की धर्मपत्नी भी मुंह टेढ़ा करते हुए बोली- इन्हे नियम कायदे बता दिये है ना? किराया भी बताया कि नही?

मकान मालिक छोटी सांस लेकर बाेला- अरे! भागवान तुम्ही बता दो, क्योंकि घर पर तों तुम्हें ही रहना है।

मकान मालिक की धर्मपत्नी भूखे शेर की तरह शिकार पर पूरी पकड़ बनाते हुए बोली- देखिए, किराया तो मात्र 3000 रूपया है, इसके अलावा मोटर का पानी अलग है और बिजली का मीटर तो सब पोर्शन में अलग-अलग लगा हुआ है। हमारी कालोनी में 8 रूपये यूनिट चल रही है। आपको भी वही देनी होगी और मोटर के पानी के लिए 200 रूपये अलग से देने होंगे।

उनका जवाब सुनकर तो हम सकपका ही गये क्योंकि सरकारी रेट तो 5 रूपये चल रहा है। लेकिन इस बात पर अपनी आवाज उठाने की कोशिश की..

देखिये सरकारी रेट तो कम है तो फिर आप कैसे हमसे इतने ज्यादा ले सकती है?

मकान मालिक तपाक से बोली- देखिये! भाईसाहब एक किरायेदार के चक्कर में हम पूरी कालोनी का रेट थोड़ी ही खराब करेंगे।

यह तो हमें पता था कि कोई किरायेदार के लिए रेट क्यों खराब करेगा, इसलिए एक अवसर की तलाश में कहा- चलिए, कोई बात नही लेकिन मकान के किराये में तो कम से कम थोड़ी छूट दीजिए ना।

मकान मालिक मुर्गा फंसता देखकर जीत हासिल करके लौटते हुए योद्वा की तरह एक लंबी सांस लेते हुए बोला- अच्छा ठीक है, आप दौ सौ रूपया कम दे दीजिए।

चलिए ठीक है भाई साहब- इतना कहकर हम कुछ सोच ही रहे थे कि तभी मकान मालिक बोल पड़ा।

-भाईसाहब, नियम तो आपने पूछे ही नही।

अच्छा! हाँ, वो तो हम भूल ही गये। वो भी बता दीजिए (हम मन ही मन कुढ़ते हुए बोले)

हर साल आपका किराया 200 रूपये बढ़ेगा। अगर आपके पास कोई टू व्हीलर है तो उसे अपनी जिम्मेदारी पर बाहर ही खड़ा करें। सुबह जल्दी उठकर अपना पूरा पोर्शन ठीक से साफ करें। घर में मेहमान नही आने चाहिए….. ये नही होना चाहिए….वो नही होना चाहिए……..। इसके अलावा किराया बिल्कुल टाईम पर चाहिए वरना 12 प्रतिशत की दर से ब्याज देना होगा और…….

इतना सुनकर हमे चक्कर आने लगे। उसके बाद क्या हुआ हमें कुछ पता नही था। लेकिन हमारे कानों में आवाज गूंज रही थी कि अरे….. उठो जी! कब तक सोते रहोगे। सुबह हो गई है।

लेखक : राजेन्द्र सिंह बिष्ट

(लेखक कई वर्षों तक पत्रकारिता में रहने के बाद अब प्रकाशन व्यवसाय में हैं)

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