मुझे नहीं आता छुपाना
अपना गुस्सा
अपना जज़्बात
अपनी भावनाएं !
तुम देखो
महसूस करो
समझो
मेरे हालातों को !
मुझे सबकुछ साझा करना है तुमसे
मुझे नहीं बनना त्याग और सहनशीलता की मूर्ति
मुझे नहीं चाहिए तारीफें
कि मैं स्वार्थी नहीं!
मुझे नहीं चाहिए यह झूठ
कि बहुत ख्याल रखती हूं तुम्हारी हर खुशी का!
हां, मैं पागलों की तरह डूबी हूं प्रेम में तुम्हारे
या फिर बीमार हो गई हूं प्रेम में
मुझे नहीं समझ आ रहा अंतर करना!
मुझे बस संभाल लो
थाम लो बाहों में
बहुत अकेला महसूस कर रही !
मेरे बहते आंसूओं को बस पोंछ दो
मुझे बस अपने पास रख लो
हर गम से दूर कर दो मुझे!
कोई नहीं है
तुम्हारे सिवा
बस तुम हो हर जगह
बस तुम हो
और मैं सिर्फ तुम तक।
—
प्रियंका प्रियदर्शिनी
सीतामढ़ी, बिहार
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