सुनो दिकु……
बहुत कोशिश की पर दिल नही समझ रहा है
बार बार यह तुम्हें ही देखने की जिद्द कर रहा है
क्यों चली गयी छोड़कर
आज भी वह फरियाद करता है
हाथ जोड़ता है, गिड़गिड़ाता है, हरपल रोता है
जब कुछ नही होता फिर ऊपरवाले से लड़ता है
अब तो आजाओ एकबार
यह ज़िंदा शरीर तुम्हारे लिए दिकु
एक दिन में न जाने कितनी बार मरता है
प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए
रचनाकर – प्रेम ठक्कर
लेखक सूरत, गुजरात से हैं और अमेजन में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं।
व्हॉटसएप पर जुड़ें : उड़ान हिन्दी पर प्रकाशित नई पोस्ट की सूचना प्राप्त करने के लिए हमारे ऑफिशियल व्हाट्सएप चैनल की नि:शुल्क सदस्यता लें। व्हॉटसएप चैनल - उड़ान हिन्दी के सदस्य बनें
कॉपीराइट सूचना © उपरोक्त रचना / आलेख से संबंधित सर्वाधिकार रचनाकार / मूल स्रोत के पास सुरक्षित है। उड़ान हिन्दी पर प्रकाशित किसी भी सामग्री को पूर्ण या आंशिक रूप से रचनाकार या उड़ान हिन्दी की लिखित अनुमति के बिना सोशल मीडिया या पत्र-पत्रिका या समाचार वेबसाइट या ब्लॉग में पुनर्प्रकाशित करना वर्जित है।