परवश
विवेक एक ऐसा लडका जिसमें बहुत सारी खूबियाँ थीं और सबसे बड़ी विशेषता उसकी बुद्धिमत्ता थी ।
वैसे तो विवेक बचपन से ही मेहनतकश था मगर आईएएस प्री क्रेक करने के बाद तो उसने जी तोड मेहनत की ।
आज मेन्स का पेपर था। परीक्षा सुबह सात बजे थी और परीक्षा केंद्र भी घर से पचास किलोमीटर दूर था ।
यहाँ दो समस्याएँ थीं । पहली ये कि लगभग पूरा रास्ता जंगल से होकर जाता था और दूसरी ये कि विवेक बाइक चलाना नहीं जानता था ।
अच्छी बात ये थी कि मोटर साइकिल घर पर मौजूद थी और उसका दोस्त विनोद उसे पेपर दिलवाने के लिए तैयार था ।
विनोद उसका गहरा दोस्त था मगर हर कार्य विलंब से करता था ।
हालांकि विवेक ने उसे जल्दी आने के लिए बोल दिया था ।
मगर आदत इतनी जल्दी नहीं बदलती ।
सुबह विनोद इतना लेट आया कि दस मिनट भी खराब करना सहन नहीं हो सकता ।
विवेक विनोद के साथ निकल पड़ा पेपर देने ।
सुबह का मौसम जंगली रास्ता जिस पर वाहन भी बहुत कम चल रहे थे इसलिए तेजी से आगे बढते जा रहे थे ।
करीब पच्चीस किलोमीटर चलने के बाद विनोद के पेट में दर्द उत्पन्न हो गया और दर्द इतना तेज था कि बाइक चलाना तो दूर की बात थी वो लेट भी नहीं पा रहा था ।
विनोद को लगा कि मेरे कारण विवेक लेट हो रहा है तो उसने चाबी हाथ में देते हुए कहा कि वो अपनी व्यवस्था बना ले वो बाइक नहीं चला पा रहा है ।या तो किसी को बुला ले या स्वयं प्रयास करे ।
लेकिन विवेक से बाइक चलाते नहीं बनती ।
बड़ी मुसीबत थी
बाइक थी मगर चलाने वाला नहीं और किसी को बुलाता भी तो समय से नहीं पहुंच पाता ।
आज विवेक ने परवश होकर अपना भविष्य दांव पर लगा दिया ।
और वो इसके सिवाय कुछ नही कर सकता ।
आज उसे अहसास हुआ कि कुछ जरूरी काम व्यक्ति को सीख लेने चाहिए क्योंकि दूसरों पर निर्भर रहना दुखदायी तो होता ही है कभी कभी बड़ा नुकसान भी झेलना पडता है ।
आत्मनिर्भर होना परम आवश्यक है ।
लक्ष्मण सिंह त्यागी रीतेश