किस करवट बैठेलो ऊंट… (कविता)
देखें अबकी बार भायला
किस करवट बैठेलो ऊंट।।
पहले खूब पसीनो आयो
टिकट बांटवा सभी दलां ने
जैसे तैसे बांट चुका फिर
वागी कूद पड्या मैंदां ने
भूल गया सब रीति नीति
भूल गया सब खूंट ।
देखें अबकी बार भायला
किस करवट बैठेलो ऊंट ।।
हर जाति जाति सूं उठ रह्या
कर रह्या प्रदर्शन भारी
कोई किसी सूं कम ना माने
सब तेग अहं की धारी
लड़े काका-ताऊ आपस में
कैसी मच रही फूट ।
देखे अबकी बार भायला
किस करवट बैठेलो ऊंट।
सभी दल असमंजस में थे
कुण सी उक्ति आजमावां
देऊं पटकणी ओर न कूं
और विजयी हो जावां
रात दिन सोचे प्रत्याशी
पिलादे कोई ऐसी घूंट ।
देखे अबकी बार भायला
किस करवट बैठेलो ऊंट ।।
वादों के अंवार लगे खूब
कसम की बारिश बरसी
झूठ का परिवार बढ़ा था
सच लावारिश तरसी
मौज उड़ी छुटभैयन की
दे रखी थी जिनकूं छूट ।
देखे अबकी बार भायला
किस करवट बैठेलो ऊंट ।।
सुबह किसी का दोपहर कोई
बदल सांझ संग जावे
वोटर भी अजीब म्हारा भाई
झूठी कसमें खावे
दिये सबन कूं आश्वासन
जावे ना कोई रूठ ।
देखे अबकी बार भायला
किस करवट बैठेलो ऊंट ।।
प्रजातंत्र के महापर्व को
सबने मन से खूब मनाया
भारी कर मतदान बूथ पर
अपना कर्तव्य निभाया
ना मचवा दी प्रशासन ने
लोभ प्रलोभन री लूट ।
देखें अबकी बार भायला
किस करवट बैठेलो ऊंट ।।
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– व्यग्र पाण्डे