ओ मन मेरे, भटको नहीं व्यर्थ

  • Post author:Udaan Hindi

ओ मन मेरे, भटको नहीं व्यर्थ।
जीवन के समतल पथ पर तो आओ।
सपनों के नहीं जालों को उलझाओ।
आगे भ्रमित हो जाओगे, संभल भी जाओ।
जीवन पूंजी खुटे नहीं, बातों-बातों में।
अँधियारा आने से पहले दीपक लो हाथों में।।

गुंजित है मधुर शब्द” जीवन जय का।
ताल नहीं बिगड़े पथ पर तेरे लय का।
किंचित भार नहीं बने तुम पर संशय का।
जीवन पथ है शुभ्र, यहां काम नहीं है भय का।
मत उलझाओ अपने वस्त्र बिखरे कांटों में।
अँधियारा आने से पहले दीपक लो हाथों में।।

आगे को बढ लो पहले, बातों को रहने दो।
आगे दुविधा होगा, दिग्भ्रमित नहीं हो जाओ।
किंचित का अवशेष बचे, नहीं इसका बोझ उठाओ।
आगे-आगे बढते रहने का पथ पर लाभ उठाओ।
आकांक्षा के अधिक दाव का भय इन हालातों में।
अँधियारा आने से पहले दीपक लो हाथों में।।

अनुचित-उचित का निर्णय अभी तो टालो।
मन मेरे भ्रम का मायाजाल पास बुलाए जो।
तुम उत्सुक मत होना, आकर गले लगाए जो।
तुम तटस्थ ही रहना, अपना कह कर ललचाए जो।
बात-बात में उलझोगे जो, फंसोगे खुद जज्बातों में।
अँधियारा आने से पहले दीपक लो हाथों में।।

ओ मन मेरे, आवश्यक तो नहीं बात बढा लो।
अभी समय बचा है बढने को, तुम बैठे सुस्ता लो।
पुछेंगे जो सही बात, तुम शंकित होकर टालो।
द्वंद्व अधिक बढाओ फिर अपने गाल बजा लो।
उर्मित उष्मा का तुम भाव न ढूंढो बातों-बातों में।
अँधियारा आने से पहले दीपक लो हाथों में।।

– मदन मोहन ‘मैत्रेय’

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