मुर्दे – निज़ाम फतेहपुरी

  • Post author:Manisha Tyagi

वज़्न- 221 2121 1221 212
अरकान- मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन

ग़ज़ल-
मुर्दों की बस्ती में यहाॅं ज़िंदा कोई नहीं।
आवाज़ हक़ की डर से उठता कोई नहीं।।

हद पार हो गई है ज़ुल्मों सितम की अब।
किस पर करें भरोसा की अपना कोई नहीं।।

अपने भी अपने अब यहाॅं अपने रहे कहाॅं।
नफ़रत की ऑंधी चल रही अच्छा कोई नहीं।।

मरना है सबको पैदा यहाॅं पर हुआ है जो।
ज़िंदा रहा जहाॅं में हमेशा कोई नहीं।।

ऑंखों में पट्टी बाॅंध के बे-अक़्ल जीते हैं।
ये चार दिन की ज़िंदगी समझा कोई नहीं।।

किसका शिकार हो रहा किसका विकास है।
सब दिख रहा है मुल्क में अंधा कोई नहीं।।

बेख़ौफ़ है दरिंदे ये कैसा निज़ाम है।
इस बे-लगाम भीड़ में इंसाॅं कोई नहीं।।

निज़ाम फतेहपुरी
ग्राम व पोस्ट मदोकीपुर
ज़िला- फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत

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