मन्नू महाराज

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गाड़ी हरिद्वार स्टेशन पर रुकी तो मन्नू उतरा. सामान के नाम पे एक झोला था जिसमें दो जोड़ी कपड़े और टूथ ब्रश वगैरा था। जेब में टिकट तो था नहीं इसलिए प्लेटफार्म की तरफ ना उतर कर दूसरी ओर उतरा। गाड़ी के साथ साथ उलटी दिशा में चल दिया। स्टेशन की हद से बाहर निकल आया तो पटरी फाँद कर सड़क पर आ गया। एक हैंडपंप मिल गया जहाँ हाथ मुंह धोया, पैर धोये तो कुछ ताजगी महसूस हुई। चाय का खोखा देख कर मन्नू बेंच पर बिराजमान हो गए। चाय का गिलास आया तो झोले में हाथ डाल कर मुड़ा तुड़ा पैकेट निकाला जिसमें ढाई बिस्किट और कुछ चूरा निकला। चूरा फाँका, बिस्किट खाए और चाय की चुस्की लेते लेते सोच में डूब गया।

जहाँ तक हरिद्वार का सवाल है वो ऐसा शहर है जहाँ मन्नू जैसे काफी लोगों को समेट लेता है। हरिद्वार में सैकड़ों धर्मशालाएं हैं जैसे कि – खत्री समाज धर्मशाला, गौड़ीय ब्राह्मण धर्मशाला, भराड़ा धर्मशाला, सिन्धी पंचायत धर्मशाला, बहवालपुरी धर्मशाला वगैरा। और इसी तरह से सैकड़ों आश्रम हैं जैसे कि – थानाराम आश्रम, अजरधाम, कमल दास कुटिया, अवधूत जगत राम उदासीन आश्रम, नित्यानंद ब्रह्मचारी आश्रम वगैरा। इनमें कुछ बुज़ुर्ग मिलेंगे जो अपनी मर्ज़ी से यहाँ आये हैं। कुछ मिलेंगे जिन्हें उनके बच्चे छोड़ गए और फिर दुबारा सुध नहीं ली। कुछ नौजवान हैं यहाँ जो शांति की खोज में लगे हैं पर मिल नहीं रही है। बहुत से फिरंगी मिलेंगे जिन्होनें सिर मुंडा कर चोटी रक्खी हुई है पर भटकन उनकी भी जारी है।

मन्नू भी ऐसे ही बेज़ार लोगों में से है। उम्र तो अभी 30 / 32 की ही है पर सूरत पर निराशा छाए रहने के कारण 40 / 45 की लगती है। पिचके हुए गाल, मैले कपड़े और बेतरतीब बिखरे बाल देखकर कोई भी भलामानस दुबारा नहीं देखेगा मन्नू को। पर मन्नू ने अच्छे दिन भी देखे थे। परिवार में तीन बड़ी बहनें भी हैं जिनकी शादीयां हुए ज़माना गुजर गया। पिताजी खंडवा जिले के एक गाँव में पंडिताई करते थे और अच्छा घर चला गए। उनका स्वर्गवास हुए भी समय हो गया।

मन्नू को गाँव छोड़े भी साल भर हो चूका है। इसी गाँव में दसवीं पास करने के बाद शहर में किसी तरह से बी ए कर लिया। पंडिताई करने की जरा भी इच्छा नहीं थी इसलिए कई जगह नौकरी तलाशी पर नहीं मिली। कंप्यूटर भी सीखा पर कोई लाभ ना हुआ। आखिर बैंक से लोन लेकर घर के आगे बरामदे में दूकान खोली पर चली नहीं। माँ ही किसी तरह दूकान चलाती थी और कभी कभी पंडताईन का काम भी कर लेती थी। ताने सुन सुन कर, खीझ और छटपटाहट में मन्नू ने घर छोड़ दिया। बम्बई, जयपुर और ना जाने कौन कौन से शहरों में भटकता रहा। फिर एक दिन यूँ ही हरिद्वार की ट्रेन पकड़ कर यहाँ आ पहुंचा। चाय ख़तम करके चाय वाले से बतियाने लगा।

भाई यहाँ का कोई आश्रम बताओ जहाँ हफ्ता दस दिन रहने को मिल जाए कुछ खाने को मिल जाए। अपने पल्ले तो अब फूटी कौड़ी भी नहीं है। जो काम बताएंगे हम कर देंगे। जानकारी लेकर मन्नू ने आश्रम की ओर प्रस्थान किया. वहां प्रबंधक से बोला-

देखिये जी हम तो परमात्मा की खोज में निकले हैं। बी ए पास हैं, पूजा पाठ, कर्मकांड के श्लोक मन्त्र सब जानते हैं और कंप्यूटर भी चलाना जानते हैं। हम तो यहाँ सेवा भी कर देंगे और गुरु जी से ज्ञान भी प्राप्त करना चाहेंगे।

खोजते खोजते एक आश्रम में मन्नू को कमरा मिल गया और काम भी लाद दिया गया। दिनचर्या ही बदल गई। सुबह चार बजे उठना, नहाना धोना और पांच बजे तक हाल में गुरु जी के प्रवचन का इन्तजाम करना। दिन में कभी सफाई का तो कभी खाने का काम देखना। नए लोगों को संभालना वगैरा। फिर शाम के प्रवचन का इंतज़ाम। रात नौ कब बज जाते थे पता ही नहीं लगता था।

तीन महीनों में मन्नू की रंगत ही बदल गई। बदन और गाल भर गए बाल संवर गए. गुरु जी ने भी देखा की लड़का मन्त्र और श्लोक जानता है, फालतू बोलता नहीं है और मन लगा कर काम कर रहा है। छह महीनों में मन्नू गुरु जी के विश्वासपात्रों में शामिल हो गया। अब उससे राय भी ली जाने लगी, बैंक और कैश का काम भी दे दिया गया। मन्नू ने लगातार ईमेल वगैरा से फिरंगियों का आश्रम से संपर्क बढ़ा दिया और अब डॉलर भी ज्यादा आने लग गए। मन्नू ने गुरु जी से घर जाने की आज्ञा मांगी माँ के दर्शन करने हैं। गुरु जी ने यात्रा के लिए पैसे दिये और माँ के लिए अलग से कपड़ों और दक्षिणा की पोटली भी रखवा दी। फिर भी मन्नू ने फुटकर कैश में से बिना पूछे दस हज़ार निकाल लिए और गाँव चला गया।

पंद्रह दिन बाद पुन: वापिस आया तो ना उसने ना किसी और ने दस हज़ार रुपयों की बात की। वहां तो भव्य जन्माष्टमी मनाने की बातें हो रही थी। गुरु जी के विचार में यह कार्य एक सप्ताह पहले शुरू होना चाहिए, लगातार लंगर और प्रसाद, बढ़िया सजावट वगैरा होनी चाहिए। जो आज्ञा कह कर सबने तैयारी शुरू कर दी। बढ़िया इन्तेजाम हुआ, खूब जनता आई, खूब चढ़ावा चढ़ा और आश्रम का और गुरु जी का भी नाम हुआ। सभी कार्यकर्ताओं को गुरु जी ने आशीर्वाद के साथ उपहार और दक्षिणा दी. मन्नू ने इस बार कैश में से एक लाख रूपये पार कर दिए।

अगली जन्माष्टमी पर मन्नू की मन्नत पूरी हो गई। गाँव के पास एक हज़ार गज जमीन खरीद कर अपना आश्रम बना डाला। सुना है कि आजकल मन्नू आश्रम की अच्छी मान्यता है और वहां भक्त जनों की लम्बी लाइन लगती है।

बोलो मन्नू महाराज की जय!

लेखक : अज्ञात

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