मनमानी
गाँव में प्रवेश करता उससे पहले मुझे शमशान से उठती हुई आग लपटें दिखीं मेरे कदम ना चाहते हुए भी मुझे वहीं ले गए ।
जाकर मृतात्मा को नमन किया और पता किया तो ज्ञात हुआ कि सुरेंद्र हमें छोड़कर चला गया।
साथ में लोगों ने बताया कि आत्महत्या कर बैठा ।
मेरे मुंह से हठात् ही निकल पड़ा कि बच गया । ये सुन लोग मुझे घूरने लगे ।
यहाँ एक चीज स्पष्ट कर दूं कि आत्महत्या के मैं सख्त खिलाफ हूं मगर सुरेंद्र मेरा ना केवल पड़ौसी था बल्कि कभी कभार वो मुझे अपने सुख-दुख भी बता दिया करता था ।
आत्महत्या की वजह उसकी बीबी थी ।
सुरेंद्र की शादी जरा विलंब से हुई थी । उसने अपनी पत्नी को हर एक सुख देने का पूरा प्रयास किया मगर कहते हैं ना कि घर की मुर्गी दाल बराबर ।
यही हाल था सुरेंद्र का । शादी के बाद भी उसकी पत्नी के चाल चलन ठीक नहीं थे जिनका पता सुरेंद्र को लग चुका था मगर वो खून का घूंट पीकर रह गया उसने अपनी बीबी से एक शब्द तक नहीं बोला इसके बावजूद उसकी पत्नी हमेशा उसी से झगड़ा करती रहती थी । उस पर इतनी बंदिशें कि वो उसकी बिना रजामंदी के घर से बाहर तक नहीं निकल पाता था ।
सुरेंद्र से लोन निकलवा कर अपने मायके में पैसा देना । सुरेंद्र पर पैसे की कमी के बावजूद अपने शौक मौज में हजारों रुपये उडाना ।
ऐसी बहुत सी बातें थीं जिनसे तंग आकर सुरेंद्र ने ये कदम उठाया था।
इसलिए मैंने कहा कि वो मरकर भी बच गया और ये कोई आत्महत्या नहीं बल्कि मर्डर था ।
अपनी पत्नी के कारण सुरेंद्र किश्तों में मर रहा था मगर आज उसने एकमुश्त मौत को गले लगा लिया ।
हालांकि सुरेंद्र अच्छा लडका था ।
लक्ष्मण सिंह त्यागी रीतेश