प्रायः मानव जीवन परिस्थितियों के श्रृंगों एवं गर्त्यों से भरा होता है ये उतार-चढ़ाव आते-जाते रहते हैं। जिनमे कुछ क्षणिक तो कुछ दीर्घ कालिक होते हैं। इसमें सुखदायी एवं आनन्द के क्षण तो कब व्यतीत हो जाते हैं पता ही नही चलता है। वहीं दुख की कुछ घड़ियाँ भी हमारे लिए पहाड़ बन जाती हैं।
इस दुःख के पहाड़ का भारी बोझ हर किसी को उठाना ही पड़ता है और इसी स्थिति में हमारा हृदय जीवन में छिपी भावी आशाओं को तलाशने लग जाता है जिसकी खोज के प्रयास मात्र से ही हमारे मन के दुःख का बोझ कुछ कम प्रतीत होने लगता है। आशा जीवन रथ के पहियों में छोड़ा जाने वाला वह तरल स्नेहक है जिससे पहिये द्वारा सामना किये जाने वाले विरोधों, अवरोधों एवं उतार- चढ़ावों के चलते उसमें उत्पन्न संघर्षों के अतिशय को कम किया जा सकता है। जिससे बार-बार बाधित होने वाले जीवन रथ को सुचारू तरीके से चलायमान रखा जा सकता है।
आशा मानव जीवन के परम उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण साथी की भूमिका निभाती है। विषम एवं जटिल परिस्थितियों से उत्पन्न होने वाली हताशा एवं नैराश्य की मनः स्थिति को आशा की ज्योति से प्रकाशित कर उत्साह, उमंग एवं ऊर्जा से पोषित किया जा सकता है। आशा की छोटी सी एक ही किरण दुःख, विपदा एवं विषमता के अनन्त अँधकार का भी समूल नाश करने में समर्थ है। मनुष्य का व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन उसके आशान्वित होने पर ही सफल, सार्थक एवं सुखद हो सकता है। आशा, निराशा से हारे हुए व्यक्ति और समाज दोनों के ही लिए संजीवनी का कार्य करती है।
आशारूपी संजीवनी की मदद से मनुष्य अपनी जीवन की धारा को सही दिशा में मोड़ता है। इतना ही नहीं इस संजीवनी का आश्रय लेकर जीर्ण-शीर्ण सामाजिक व्यवस्थाओं को पुनः तरुणावस्था में लाया जा सकता है। हमें यह समझने का प्रयास करना चाहिए कि संसार में जितनी भी महान उपलब्धियाँ हासिल की जा सकी हैं उन सब का आधार स्त्रोत व्यक्ति का आशान्वित होना रहा है।
आज, वर्तमान में हमारे सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन में विफलताओं, विषमताओं एवं विपदाओं की भरमार देखने को मिलती है किन्तु यदि व्यक्ति एवं समाज अनेकानेक विषमताओं एवं विफलताओं से निराश व कुंठित हो जायेगा तो उसका एवं समाज का उन्नयन अवरुद्ध होना निश्चित है जो किसी भी राष्ट्र एवं उसके जन के लिए कल्याणकारी नहीं है। इसलिए हमे चाहिए कि हम आशान्वित रहें।
आशा का दामन थामकर ही हम बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना सरलता से कर सकते हैं और न केवल सामना कर सकते है बल्कि उन गंभीर चुनौतियों को परास्त कर उन पर विजय भी प्राप्त कर सकते हैं।
–मोहित त्रिपाठी
(लेखक, शिक्षक एवं समाजसेवी)
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