लौटा दो मेरी धड़कन – प्रेम ठक्कर

  • Post author:Manisha Tyagi

लौटा दो मेरी धड़कन

चिरंजीवनी धरा पर, तन्हाइयों का बोझ लेकर,
बीते पलों की यादों में, मैं खोया रहता हूँ।
उस संग मिला दे ऐसी लकीरें,
कहाँ से ले आऊँ अपने हाथों में।

क्यों कर दिया उससे मुज़े दूर हे भगवान,
अब एकांत में सहम गया हूँ मैं उसकी यादों में।

धड़कनों की सुनी पड़ी,
सीने में छुपी है उसकी आहट।
जब से दूर गयी है वह,
बढ़ रही है पल-पल मेरे दिल की गभराहट।

आंसुओं से सजी, यादों की लहरें बहने लगी,
उसकी मुस्कान की किरणें,
अब नहीं दिखती ना दिन में ना रातों में।
क्यों कर दिया उससे मुज़े दूर हे भगवान,
अब एकांत में सहम गया हूँ मैं उसकी यादों में।

प्रेम की राहों में,
मैं हो गया हूँ तंग और उदास।
धुंधली-सी सोच हो गयी है मेरी,
उस की पनपती यादों के साथ।

जीने की वज़ह है वह मेरी,
उसके बिना एकपल भी नहीं कट रहा,
उसका ज़िक्र आ जाता है मेरी हर एक बातों में।
क्यों कर दिया उससे मुज़े दूर हे भगवान,
अब एकांत में सहम गया हूँ मैं उसकी यादों में।

मानता हूँ कि कुछ मेरे कर्म बुरे होंगे,
लेकिन उस के लिए मुज़े जो चाहे सज़ा दे दो।
हाथ जोड़कर विनंती है मेरी,
मेरी हर गलती की मुज़े क्षमा दे दो।

लौटा दो मेरी धड़कन,
मैं दर-दर भटक रहा हूँ।
रोज एक नई उम्मीद के साथ,
भीगी पलकों से उसकी राह तक रहा हूँ।

एक कर दो दिकुप्रेम को,
या ले लो मुज़े अब अपनी पनाहों में।
प्रेम मर मिटेगा, पर उसी का होकर रहेगा,
किसी और का सपना नहीं बसेगा अब उसकी निगाहों में।

प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी”
Surat, Gujarat
9023864367

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