लहरों की बांसुरी (कहानी) भाग 2 | सूरज प्रकाश

  • Post author:Udaan Hindi

उपरोक्त कहानी सूरज प्रकाश जी द्वारा रचित है। प्रकाश जी लेखन के क्षेत्र में देर से उतरे लेकिन उनका कहना है कि वे अब तक इतना काम कर चुके है कि अब देरी से लिखने का मलाल नहीं सालता। उन्होने अब तक लगभग चालीस कहानियां लिखी है और पांच कहानी संग्रह हैं। इसके अलावा उनके दो उपन्यास, दो व्यंग्य संग्रह और एक कहानी संग्रह गुजराती में भी है साचासर नामे जो 1996 में छपा था। मूल लेखन के अलावा आपने गुजराती और अंग्रेज़ी से बहुत अनुवाद किये हैं।

पेश है कहानी का दूसरा भाग

मैं चेंज करने के बाद पहले वाले पोर्शन में चला आया हूं ताकि अंजलि तैयार हो सकें।

अंजलि तैयार हो कर आ गयी हैं। मैं देखता हूं अब उन्होंने बेहद ही खूबसूरत डिज़ाइनर टॉप और उतना ही खूबसूरत रैप अप डाला है। बेहद हलका मेकअप। मैं उनकी तरफ तारीफ भरी निगाह से देखता हूं तो उन्होंने मुस्कुरा कर नज़ाकत से अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ा दिया है। हाथ चूमने के लिए। मैंने उनका हाथ चूमा है।

हम दोनों नीचे आ गये हैं। अंजलि ने मेरा हाथ थामा हुआ है। स्टाफ मुस्कुरा कर हमारा स्वागत करते हैं। हम चलते हुए गार्डन से होते हुए बीच की तरफ आ गये हैं। वीक डे होने के कारण बहुत ज्यादा लोग नहीं हैं। समंदर अपनी पूरी मस्ती में है। दो तीन घंटे बाद फिर हाइ टाइड होगी और फिर समंदर पूरे उफान पर होगा।

पूछा है अंजलि ने – क्या ख्याल है, बार में बैठें, गार्डन में या सीधे ही रेत पर?

मैंने हंस कर कहा है- बार और गार्डन बार तुम्हारे शहर में भी होंगे और मेरे शहर में भी हैं। रेत पर बैठ कर ही हम शाम गुजारें तो कैसा रहे। बेशक हवा चल रही है। समंदर के किनारे बितायी गयी शाम हमेशा याद रहेगी।

इतने में रेस्तरा मैनेजर ने आकर सलाम किया है। अंजलि से उससे ही पूछा है- अगर हम रेत पर ही बैठें तो खाने पीने का इंतजाम हो जायेगा क्या?

उसने मुस्कुजरा कर कहा है – श्योर मैडम। हम आपके लिए रेत पर ही आराम कुर्सियां लगा देते हैं। पीने का और खाने का इंतज़ाम हो जायेगा। हम आपके लिए फुट रेस्ट भी ले आयेंगे ताकि जब हाइ टाइड आये तो भी आप वहीं बैठे एन्जाय कर सके। दैट विल दी रीयल फन। बस दो मिनट आप दीजिये, मैं सारा इंतज़ाम कर दूंगा।

वह रुका है – बाय द वे, आज की शाम आप कैसे सेलिब्रेट करना चाहेंगे?

अंजलि ने मेरी तरफ देखा है। मैंने बताया है आप दिन में दो बीयर और हाफ वाइन पी चुकी हैं।

– शट अप। ये शट अप मेरे लिए है।

रेस्तरा मैनेजर से उन्होंने कहा है कि हम आज स्कॉच लेंगे। ग्लेुनलिवेट है ना आपके पास?

– यस मैम। वी हैव दिस ब्रैंड।

– तो फिर आप तैयारी कीजिये, हम पाँच मिनट में टहल कर आते हैं।

मैं हैरान हूं। विश्वास नहीं हो रहा कि अंजलि मेरठ जैसे कस्बे या शहर से आयी हैं। रहा नहीं जाता, पूछ ही लेता हूं – यार, गज़ब है तुम्हारी नॉलेज। तुम्हें ये भी पता है कि होटल के स्टॉक में कौन सी इम्पोर्टेड स्कॉच है। पहले सबसे अच्छा होटल ऑनलाइन बुक कराया, अब उनके बार की भी पूरी खबर….।

-यार, निरे बुद्धू हो तुम। तुम जब सो रहे थे तो मैंने अपना सुइट ध्यान से देखा था। वहां एक मिनी बार भी है। वहीं रखी देखी थी मैंने ये स्कॉच और दूसरी कई वाइन बॉटल्स। फ्रिज भी भरा पड़ा था। जब सामने है तो चख कर देख भी ली जाये। फिर ये शाम कहां और हम तुम कहां?

हम रेत पर नंगे पाँव टहल रहे हैं। कुल मिला कर बीच पर अँधेरा ही है। एक तरफ समंदर है और दूसरी तरफ होटलों की कतार। वहीं से जो रौशनी आ रही है,उसमें पानी पर रौशनी के कतरे अपनी चित्रकारी कर रहे हैं। बेहद रोमांटिक माहौल। मैं माहौल की तारीफ करना चाहता हूं लेकिन चुप हूं। जानता हूं कुछ भी कहूंगा तो अंजलि अभी ग्यारह टन का कोई बम मेरे सिर पर दे मारेंगी। मेरी उंगलियां अभी भी उनके हाथ में हैं।

समंदर के किनारे हम दोनों के लिए महफिल सजा दी गयी है। चारों तरफ के घने अंधेरे का मुकाबला करने के लिए एक चिमनी में मोमबत्ती जला दी गयी है। हजारों मील लम्बे समंदर के आँगन वाला हमारा कैंडिल लाइट बार तैयार है।

बेहद पर सुकून शाम है ये। पीछे कहीं बजता मध्यम संगीत, सामने पानी में पीछे जलती रौशनियों की झिलमिलाती परछाइयां। अब पानी सरकते सरकते हमारे नज़दीक आने लगा है। अंजलि और मैं जैसे किसी ट्रांस में हैं। सूझ ही नहीं रहा कि इस पूरे माहौल को पूरी तरह से अपने भीतर कैसे उतारें। अंजलि ने अपनी कुर्सी खिसका कर मेरे करीब कर ली है ताकि फुसफुसा कर भी बात की जा सके।

ये शाम मेरी ज़िंदगी की सबसे हसीन शाम है। स्कॉच अपना रंग दिखा रही है और इस रोमांटिक माहौल का नशा उस स्कॉच के नशे में जैसे घुल रहा है। हवा में खुनकी बढ़ गयी है और एक वेटर अंजलि को शॉल ओढ़ा गया है।

मैंने अंजलि का हाथ थाम रखा है। उन्होंने कुछ नहीं कहा है। हम दोनों ही एक दूसरी दुनिया में हैं। हमने बहुत कम बातें की हैं। बस, एक दूसरे की मौजूदगी को महसूस किया है। स्कॉच थोड़ी सी ही बची है और खाना लगा दिया गया है। मैंने बहुत कम खाया है। ऐसे माहौल में खाना खाने की सुध ही किसे है। हम हैं और हमारी तरफ हाथ बढ़ाती अनगिनत लहरें हैं जो हर बार और नज़दीक आकर हमारे पाँव थपथपा रही हैं, मानो कह रही हों, इट्स वंस इन लाइफ एक्सैपीरिंयस। बाट्म्स अप एंड एन्जाय अपटू द लास्ट ड्राप।

रात के साढ़े बारह बज चुके हैं। थोड़ी देर में लहरें अपना सर उठाने लगेंगी और हमें या तो उनके लिए जगह खाली करनी होगी या फिर …।

अचानक अंजलि उठी हैं। ये मैं क्या देख रहा हूं। अंजलि ने कैंडल बुझा दी है। अब तब जो थोड़ी बहुत रौशनी थी, वह भी दम तोड़ गयी है। हम जहां पर बैठे हैं, घुप्पा अंधेरा हो गया है, फिर भी मैं अंदाजा लगा पा रहा हूं कि अंजलि अपने कपड़े उतार रही हैं। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाऊं या पूछ पाऊं, वे पूरी तरह से न्यूड हो कर सामने समंदर में समा गयी हैं।

मैं थरथरा रहा हूं। ये मैं क्या देख रहा हूं। पानी में अंजलि का होना मैं महसूस कर पा रहा हूं। उससे ज्यादा कुछ नहीं। वे जैसे लहरों से मोर्चा ले रही हैं। उठना चाहता हूं, सोचना चाहता हूं लेकिन दोनों ही काम नहीं कर पाता। आंखें बंद कर लेता हूं। जैसे मैं एक लम्बी दौड़ पूरी करके आया हूं और कुर्सी पर निढाल पड़ गया हूं। उठने की हिम्मत ही नहीं रही है। पीछे मुड़ कर देखने की कोशिश करता हूं कि होटल का कोई स्टाफ तो नहीं देख रहा लेकिन नहीं देख पाता।

और कितने रंग दिखायेगी ये मायावी अंजलि। सुबह से ही एक के बाद एक जादू दिखा रही हैं। अभी तो दो दिन बाकी हैं। अभी तो रात बाकी है। मेरे गले में जैसे कांटे उग आये हैं। गिलास की सारी स्कॉच एक ही घूँट में गले से नीचे उतारता हूं। महसूस कर रहा हूं कि वे हर आती और बड़ी होती जाती लहर से टकराती हैं, गिरती हैं और फिर उठ खड़ी होती हैं।

लगता है,अंजलि लौट आयी हैं और अब कपड़े पहन रही हैं। मैंने आंखें बंद कर ली हैं।

मेरा कंधा थपथपाया है अंजलि ने – अब चलें। मैं जैसे सपने से जागा हूं।

उठने की कोशिश करता हूं लेकिन आराम कुर्सी से उठ नहीं पाता।

इतना याद है कि अंजलि ही सहारा दे कर मुझे कमरे तक लायी थीं।

अचानक झटके से मेरी आँख खुली है। सिर भारी है। पता नहीं कितने बजे हैं। खिड़की की तरफ देखता हूं। समंदर शांत है और दूर लंगर डाले या चल रहे जहाजों की पांत नज़र आ रही है। मेरा पूरा शरीर तन रहा है। याद करने की कोशिश करता हूं। सोने से पहले क्या हुआ था और मैं कमरे में कैसे आया। इतना ही याद आता है कि अंजलि मुझे सहारा दे कर कमरे तक लायी थी। अंजलि.. अंजलि.. धीरे धीरे सारी इमेजेज सामने आ रही है। सौ की रफ्तार से नेशनल हाइवे पर चल रही कार में फ्रंट सीट पर बैठ कर टी शर्ट उतार कर ब्रा उतारना और दोबारा टी शर्ट पहनना, हाइवे पर गाड़ी रोक कर मुझे गले लगाना और अंधाधुंध चूमना, नाश्ते में बीयर लेना और फिर सौ की स्पीड से गाड़ी चलाना, और सुनसान बीच पर रात के अंधेरे में पूरी तरह न्यूड हो कर हरहराते समंदर से मिलने जाना। बेहद खूबसूरत हैं अंजलि। लैपटॉप पर तस्वीररें देखते हुए उनका मेरे बेहद नजदीक होना। कपड़े अस्त व्यस्त हो जाने के कारण उनके खूबसूरत और गठी हुई देह की झलक मिलना।

मुझसे मिलने, मेरे साथ हॉलीडे मनाने इतनी दूर से आयी हैं अंजलि। यू आर… यू आर ग्रेट अंजलि। आइ लव यू अंजलि.. लव यू .. आइ नीड यू अंजलि.. अंजलि आइ नीड यू..। मेरी शिरायें तन रही हैं। उठ बैठता हूं। पानी पीता हूं। अंजलि मैं कमज़ोर नहीं पड़ना चाहता लेकिन इतना मज़बूत भी नहीं हूं कि इतने खुले इन्वीरटेशन को ठुकरा दूं। अंजलि.. मुझे समझने की कोशिश करना। मैं तो आपको समझ नहीं पाया। उठ कर अंजलि वाले पोर्शन में जाता हूं। नाइट लैम्प की हल्की रौशनी है। वे करवट ले कर सोयी हुई हैं। पता नहीं मैं नशे में हूं इसलिए वे ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं या वे खुद नशे में हैं इसलिए ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं या दोनों का नशा। समंदर में उतरती उनकी नग्न काया मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही तो इतने पास से देखी है.. महसूस की है। अब मेरे सामने हैं अंजलि। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता अंजलि। तुम मुझे जिस मोड़ पर ले कर आयी हो, वहां से मैं खाली हाथ नहीं लौट सकता। मैं जल रहा हूं। मैं पिघल रहा हूं। मैं मर जाऊंगा।

एक झटका लगा है। मैं ये क्यां कर रहा हूं। ये गलत है। कमज़ोर नहीं होना। वादा किया है अंजलि से। लेकिन अंजलि तुम खुद ही तो मुझे कमज़ोर करने के लिए एक के बाद एक जादू दिखा रही हो। क्यां करूं मैं .. । जो होता है होने दो। देखा जायेगा।

मैं अंजलि के बेड के पास जमीन पर बैठ गया हूं। उनकी तरफ हाथ बढ़ाता हूं। इससे पहले कि मैं उन्हें छू पाऊं, अंजलि उठी हैं। मुझे सहारा दे कर उठाया है और मेरा हाथ थामे हुए बिना एक भी शब्द बोले मुझे मेरे बिस्तर तक ला कर लिटा दिया है। थोड़ी देर तक मैं अपने माथे पर उनके हाथ का नरम स्पर्श महसूस करता हूं। और धीरे धीरे… नींद के आगोश में..।

सुबह अंजलि ने ही जगाया है। चाय के लिए। मैं अंजलि की तरफ देखता हूं। वे भेद भरी मुस्कुराहट के साथ गुड मार्निंग कहती हैं। मैं वाशरूम हो कर आता हूं। खिड़की के पास वाले सोफे पर बैठी हैं अंजलि।

वे चाय का प्याला मेरी तरफ बढ़ाते हुए पूछती हैं – रात कैसी कटी बाबू?

उनके संबोधन से मुझे रात की हरकत याद आती है। मैंने सिर झुका लिया है। क्या कर बैठा था मैं कल रात नशे की झोंक में।

-कोई बात नहीं, हो जाता है। मैंने कहा था ना कि तुम्हें कमज़ोर नहीं पड़ने दूंगी।

मैं अंजलि से नज़र ही नहीं मिला पा रहा हूं। किसी प्रिय की निगाहों में गिरना और खुद की निगाहों में गिरना – दोनों चीज़ें मेरे साथ एक साथ हो रही हैं। मैं उनकी आंखों में शरारत देख रहा हूं। खुद पर गुस्सा आ रहा है, मैं ऐसा क्यों कर गया।

वे पूछती हैं – और चाय लोगे?

उनके सामने से हटने का यही तरीका है कि अब चाय मैं बनाऊं वरना उनके सामने बैठा रहा तो झुलस जाऊंगा।

मैं चाय बनाने के लिए उठता हूं। अंजलि कह रही हैं – ब्रेकफास्ट के बाद ज़रा घूमने चलेंगे। वैसे भी अरब महासागर महाराज अभी आराम फरमा रहे हैं।

मुझे अच्छा लगा है कि अंजलि ने खुद ही टॉपिक बदल दिया है।

मैं चाय ले कर आया हूं। अब हम एक दूसरे के ठीक सामने बैठे हैं। एक ही तरीका है रात की बात हमेशा के लिए खत्म करने का कि मैं खुद ही रात की बात करूं और मामला रफा दफा करूं।

-रात कुछ ज्यादा ही हो गयी थी मुझे। यही तरीका है कि मैं अपनी हरकत के लिए उनकी शराब और उनके ओपन इन्वीटेशन को ही दोषी ठहरा दूं।

-बहुत ज्यादा तो नहीं जनाब बस इतनी कि हम खुद आपके बराबर ही पीने के बाद आपको सहारा देकर कमरे तक लाये थे, आपको आराम से सुलाया था। लेकिन क्या कहें.. उन्होंने ठंडी सांस भरी है- लेकिन क्या कहें आपके हसीन नशे का। उतरने का नाम ही नहीं लेता था। पहले आधी रात को आपको हमारे पास लाया, हमने दोबारा आपको आपके बिस्तर पर लिटाया, आपके सो जाने के बाद हम वापिस आये तो भी आपके नशे ने आपको सोने कहा दिया। आप रात भर जागते रहे। कभी खिड़की पर खड़े हो रहे हैं तो कभी बाथरूम जा रहे हैं। कभी उठ रहे हैं तो कभी बैठ रहे हैं।

लगता है अंजलि मेरी धुलाई करके ही छोड़ेगी। कहां तो मैंने टॉपिक बंद करने के लिहाज से शुरू किया था और ये तो उसी के बखिये उधेड़ने लगीं।

पूछता हूं -आपको कैसे पता?

-जनाब, हमें नहीं तो किसे पता होगा। आपकी हरकतों ने हमें भी सारी रात जगाये रखा। उन्होंने जान बूझ कर उबासी ली है और अपने मुंह के आगे चुटकी बजायी है- हमें तो अभी भी नींद आ रही हैं।

मैंने कुढ़ कर कहा है – तो रोका किसने है। सो जाइये, वैसे भी हमें कौन सा काम करना है।

वे चहकी हैं- इतना आसान है सोना? कहीं आपके भीतर का शेर फिर जाग गया तो?

मुझे कोई उत्तर नहीं सूझा है कि इस तीखी बात का क्या जवाब दूं।

कहता हूं – शेर को अपना चौकीदार बनायेंगी तो ये खतरे तो रहेंगे ही।

मेरा जवाब सुन कर वे तपाक से उठी हैं और ताली बजा कर मेरी तरफ बढ़ी हैं -क्या तीर मारा है मेरे शेर ने। खुश कर दित्ता। आ तुझे गले से लगा लूं मेरे शेर और वे सचमुच मेरे गले से लिपट गयी हैं। चलो इस बात पर एक और चाय हो जाये।

मुझे सुकून मिला है कि सारा मामला हैप्पी ऐंडिंग के साथ निपट गया है।

तय करता हूं आज दिन भर नहीं पीऊंगा। रात की रात को देखेंगे।

हम दिन भर खूब घूमे हैं। पैदल। एक एक दुकान में जा कर झांकते रहे। अंजलि ने ढेर सारी चीज़ें खरीदीं और सारी चीज़ें आखिरी दुकान में दे दीं कि होटल पहुंचवा दें।

खाना भी हमने एक सरदार जी के ढाबे में खाया है। सबसे ज्यादा वक्त वहीं गुज़ारा। वहां बिछी चारपाई पर पसरे रहे और अंजलि सरदार जी से घर परिवार की बातें करती रही। पता चला कि सरदार जी की पचास बरस पहले यहीं पर स्पेयर पार्ट्स की दुकान थी। लेकिन जबदेखा कि नार्थ इंडियंस यहां आकर खाने के लिए बहुत परेशान होते हैं तो पंजाब से अपने एक परिचित कुक को बुलवा कर ये ढाबा खोल लिया। अंजलि ने जब पूछा कि अपने घर से इतनी दूर घर वालों की याद नहीं आती तो बुजुर्ग सरदार जी मुस्कुरा कर बोले – ना जी,रब्ब की मेहर है। दमन और सिलवासा के ज्यादातर ढाबे मेरे बच्चों और भाइयों के ही हैं। एक एक करके सबको यहीं बुला लिया है। सुन कर हम खूब हंसे हैं। इसे कहते हैं असली इंटरप्रेनुअरशिप।

हम चार बजे वापिस पहुंचे हैं। कमरे में आते ही अंजलि पलंग पर पसर गयी हैं। उनका खरीदा सारा सामान आ चुका है। मैं फ्रिज खोल कर देखता हूं कि पीने के लिए नॉन एल्होकोलिक क्या रखा है। मैं अपने लिए रेड बुल का कैन निकालता हूं। अंजलि से पूछता हूं -लोगी? वे चिढ़ जाती हैं – क्या लेडीज़ ड्रिंक पी रहे हो। कुछ बीयर शीयर हो तो दो। मैं उन्हें स्ट्रांग बीयर का कैन थमाता हूं।

वे हंसती हैं। क्यां ज़माना आ गया है। मर्द लेडीज़ ड्रिंक पी रहे हैं और लेडीज बेचारी… चचच..। मैं उन्हें आंखें दिखाता हूं – बताऊं क्या?

वे हंसती हैं -क्या खा के और क्या? पी के बताओगे श्रीमन?

हम दोनों समंदर को निहार रहे हैं। हाइ टाइड आ कर जा चुकी। लेकिन महासागर का विस्तार हमेशा बांधता ही है। जितनी देर देखते रहो, कभी ऐसा नहीं लगता कि हम और न देखें। अंजलि गुनगुना रही हैं।

पूछती हैं -कुछ सुनोगे?

मैं कहता हूं – नेकी और पूछ पूछ। हम बहुत अच्छे श्रोता हैं,बस हमें बदले में कोई गाने के लिए न कहे।

अंजलि सचमुच बहुत अच्छा गा रही हैं। बहुत सारे ऐसे पुराने और बीते दिनों के गीत गाये हैं कि मैं हैरान हूं कि ये सारे गीत अंजलि की स्मृति का हिस्सा कब और कैसे बने होंगे। अंजलि तीस बत्तीस बरस की या बहुत हुआ तो चौंतीस बरस की होंगी। लेकिन वे जो गीत गा रही हैं, सब के सब छठे सा सातवें दशक के हैं। उनके गीत सुनते सुनते कब शाम ढल गयी, पता ही नहीं चला।

आज डिनर के लिए अंजलि ने लांग स्कर्ट पहना है। समझ सकता हूं। वे घर से तो गोवा के लिए निकली थीं, वहां के हिसाब से कपड़े रखे होंगे। गोवा तो गोवा में ही रह गया, मंज़िल दमन बन गयी।

हम गार्डन रेस्तरा में ही बैठे हैं। समंदर ज्यादा दूर नहीं है। हाथ बढ़ा कर छू लो। अंजलि ड्रिंक्स के लिए मीनू देख रही हैं। मैं उन्हें देख रहा हूं। वे मीनू देखते हुए भी मेरा देखना ताड़ गयी हैं।

ड्रिंक्स के लिए ऑर्डर देने के बाद उन्होंने मेरी तरफ देखा है- अब क्या है?

-कुछ खास नहीं, बस एक रिक्वेस्ट है।

-कह डालो।

-कल रात की तरह समंदर से सीधे मुलाकात करने आज मत जाना।

-बस यही या और कुछ?

-यही मान लो तो बंदा जनम जन्मांतर के लिए आभार मानेगा।

-तो श्रीमान आप इसके बदले मुझे कुछ कहने की इजाज़त देंगे?

-कहो ना।

-इस तरह से मना करने की वजह? वैसे इस बात की कोई गारंटी नहीं दी जा सकती।

-मना करने की कोई खास वजह नहीं। तुम्हें इस तरह से हाइ टाइड की लहरों में घुसते देख कर डर गया था। कहीं कुछ हो न जाये।

-हां वैसे भी तुम इतने नशे में थे कि मुझे बचाने के लिए पानी तक आने की सोच भी नहीं सकते थे। कुर्सी से उठ तक नहीं पाये। भूल गये कि कमरे तक भी मैं ही लायी थी।

मुझे अंजलि ने फिर मेरी ही बातों में फंसा लिया है। कम्बख्त हर बात की काट है इनके पास। क्या जवाब दूं।

अंजलि ने ही बात संभाली है -दरअसल तुम अचानक सोच ही नहीं पाये थे कि मैं कुछ ऐसा भी कर सकती हूं। सुबह से एक के बाद एक झटके दे रही थी और ये झटका तुम्हारे लिए इतना बड़ा था कि तुम्हारे होश ही उड़ गये। एक परायी शादीशुदा औरत और पहली ही मुलाकात में क्या क्या खेल दिखा रही है।

बात तो अंजलि सही ही कह रही है। मैं सुबह से मिल रहे झटकों में ही डूब उतरा रहा था और रात वाला झटका तो मेरी नसों तक में उतर गया था।

मैंने अंजलि को मनाने की कोशिश की है- अब रात गयी बात गयी। अपनी बात पूरी करो ना।

-दरअसल मुझे समझ नहीं आ रहा कि शुरू से शुरू करूं। अपनी बात आज से शुरू करके वहां तक पहुंचाऊं जहां से ये दौड़ शुरू की थी या पीछे से आज तक की यात्रा करूं। बात लम्बी है और पूरी बात करने में समय लगेगा।

-कहीं से भी शुरू करें, शाम अपनी है।

-ओके, दरअसल मैंने तुम्हें अपने बारे में बहुत कम बताया है। तुम्हें क्या, किसी को भी मेरे बारे में कुछ भी नहीं पता। कल से तुम एक चुलबुली, बेलेंस, खिलंद़ी और एक्ट्रा मॉड लड़की से ही मिल रहे हो जो नेशनल हाइवे पर चलती गाड़ी में अपनी ब्रा उतार सकती है, खूब पीती है, बीयर के साथ ब्रेकफास्ट करती है। फाइव स्टार होटल में ठहरते हुए एक पराये मर्द के सामने समंदर में नंगे बदन उतर जाती है और इसी तरह की हरकतें करती रहती हैं और हां, अपने फेसबुक फ्रेंड के साथ अपनी पहली ही मुलाकात में यादगार हॉलीडे मनाने के लिए दमन तक चली आती है और एक ही कमरे में ठहरती है।

-हां जितना देखा और जाना है उससे तो यही इमेज बनती है।

-तुम्हें पता है ना समीर कि मैं गोवा जाने वाली थी। एक दिन हमारी ऑफिशियल मीट रहती और दो दिन हमारे मज़े मारने के लिए इंतज़ाम था। कम से कम 100 लोग होते वहां लेकिन मैं अगली सुबह यानी मीट के अगले दिन ही गायब हो जाने वाली थी और सीधे कलंगूट बीच पर पहुंच जाती। तुम जो जानते ही हो कि कलंगूट बीच पर दुनिया भर से आये लोग दिन रात बीच पर ही नंग धड़ंग पड़े रहते हैं। मन होता है तो पानी में उतर जाते हैं और फिर आ कर बीच पर लेट जाते हैं। मैं भी यही करने वाली थी लेकिन वहां नहीं जा पायी और यहां आ गयी। जितना कर सकी, किया और आज भी करती लेकिन अब तुमने आज के लिए मना कर दिया तो यही सही। आखिर मर्द जात हो ना, कैसे सहन कर पाते।

-कहती चलो।

-दरअसल ये एक तरीका होता है। नेचर से, प्रकृति से सीधे इंटरेक्टर करने का। सीधे साक्षात्कार करने का। प्रकृति को इन्वाइट करो कि वह पूरी शिद्दत के साथ, पूरी खूबसूरती के साथ अपने सारे कीमती उपहार आपको सौंपे। आपके पोर पोर को निहाल कर दे। ये काम मैंने कई बार किये हैं समीर। धूप के साथ, बरसात के साथ, चाँदनी के साथ। मंद मंद बहती ठंडी हवा के साथ। मैंने कई कई रातें झिलमिल तारों की संगत में नंगे बदन गुजारी हैं।

-वाह। वो कैसे भला?

– अपने घर की छत पर। मैंने अपने घर की एक छत ऐसी बनवा रखी है जहां कोई नहीं झांक सकता। चारों तरफ के घरों से सबसे ऊंची छत, जहां मैं होती हूं और खुला आसमान होता है। मेरा रूफ गार्डन है। मेरी पसंद के दुनिया भर के बेहतरीन फूलों का साथ होता है वहां। ये आसमान मेरा अकेलेपन का बेहतरीन दोस्त है। सर्दियों में वह मुझे भरपूर धूप का उपहार देता है, बरसात में पवित्र जल का उपहार मुझे मिलता है और कई बार ऐसा भी हुआ है कि मैंने चांदनी रात में पूरी पूरी रात चाँदनी को अपने नंगे बदन का स्पर्श करने दिया है। तब मैं होती हूं और मेरे ऊपर खुला आसमान होता है। मैं बहुत लकी हूं कि मुझ पर नेचर खुले हाथों अपना खजाना लुटाती है और जब मैं छत से नीचे आती हूं तो पहले से और अमीर हो जाती हूं।

– ग्रेट। लेकिन अंजलि, तुमने ये सब सीखा कहां से? मेरठ जैसे शहर में मैं सोच भी नहीं सकता कि तुम इतनी ऐय्याशी का जीवन जी रही हो।

हमारे ड्रिंक्सन आ गये हैं। आज अंजलि ने वोदका मंगायी है। चीयर्स करते हुए अंजलि कह रही है – अरे मुझे ये सब सीखने के लिए कहीं नहीं जाना पड़ा। बस होता चला गया। बेशक यहां तक की यात्रा बेहद मुश्किल और इतनी तकलीफों से भरी रही कि तुम सुनोगे तो दांतों तले उँगली दबा लोगे।

– यात्रा के बारे में बाद में बताना, जो बता रही हो, ज्यादा रूमानी है। वही बताती चलो।

– तो सुनो एक शब्द होता है सेल्फ एक्चुअलाइजेशन। हिंदी में इसे पता नहीं क्या कहेंगे। लेकिन मैंने अपने जीवन में इसकी सारी अच्छी अच्छी बातों को उतार लिया है। ये ही मेरी जीवन शक्ति है। इस अकेले शब्द ने मेरी ज़िंदगी बदल कर रख दी है। वरना मैं कहां थी, ये सोच के ही मेरी रूह कांप जाती है।

– मैंने इसके बारे में कभी गहराई से जानने की कोशिश नहीं की। बेशक तुम्हारी वॉल पर इस तरह की चीजें अक्सर नज़र आती थीं और हमेशा और ज्यादा जानने की इच्छा रही। कभी हो नहीं पाया। देखो आज कितना अच्छा मौका मिला है, तुम खुद बता रही हो।

– ज्यादा चमचागिरी करने की ज़रूरत नहीं। जो मिला है उससे ज्यादा कुछ मिलने वाला नहीं और जो नहीं मिला है, वह मिलने वाला नहीं। वे इतरायी हैं।

– अरे तुम तो बातों को फालतू में गलत मोड़ दे रही हो। इस अरब महासागर की कसम खाता हूं कि मेरी नीयत बिलकुल साफ है और अगले कई दिन तक साफ ही रहने वाली है।

– बनो मत और बको मत। मेरे सामने जब पहली बार ये शब्द आया तो मैं इसका मतलब नहीं जानती थी। डिक्शनरी में ज्यादा मदद नहीं मिली। तब घर पर कम्प्यूटर या नेट नहीं था। ये शब्द। था कि मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रहा था। कुछ था इस शब्द में जो मुझे इन्वाइट कर रहा था। जानो मुझे। आखिर मैं एक साइबर कैफे में गयी तो गूगल और विकीपीडिया से इसके बारे में विस्तार से पता चला। सब कुछ नोट किया, समझा और उस पर खूब मनन किया। फिर तो जहां से भी इस शब्द के बारे में जो भी मिला, उसे समझने की कोशिश की।

अंजलि बात करते करते जैसे अतीत में चली गयी हैं-इस फिलासफी की एक एक बात को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की और आज मैं जो भी हूं, इस अकेले शब्द की माया की वजह से हूं।

मैं हंसा हूं- थोड़ा सा गुरू ज्ञान इधर भी दें भगवन ताकि हमारा जीवन भी संवर जाये। कब से भटक रहे हैं।

-सेल्फ एक्चुलाइजर वह व्यक्ति होता है जो अपने जीवन को रचनात्मक तरीके से, क्रिएटिवटी के साथ जीता है और अपनी क्षमताओं का भरपूर इस्तेलमाल कर बेहतर तरीके से जीने की कोशिश करता है। वह ऐसी सोच रखता है कि वह जो काम कर सकता है, उसे ज़रूर करे।

– वेरी इंटरेस्टिंग। कहती चलो।

– इस बात की कई परतें हैं जो एक एक करके खुलती हैं। मैं बहुत थोड़े शब्दों में बताऊंगी। अंजलि ने वेटर को अपना गिलास भरने का इशारा किया है। मैं हैरान हूं कि कल मैं जिस अंजलि का रूप देख रहा था, उससे बिल्कुल अलग रूप में अंजलि मेरे सामने बैठी शराब की चुस्कियां लेते हुए जीवन के गूढ़ रहस्यों पर इतने अधिकार के साथ बात कर रही है।

अंजलि ने बात आगे बढ़ायी है -ये मेरे इंटरप्रेटेशंस हैं। शब्दों का हेर फेर भी हो सकता है। मैंने जिस रूप में समझा और अपने जीवन में ढाला, वही बता रही हूं।

-मैं समझ रहा हूं।

– जैसे वास्तविकता को सही नज़रिये से समझना और स्वीककार करना, अपने को, दूसरों को और सबसे बड़ी बात प्रकृति को, नेचर को सहजभाव से स्वीकार करना। जो जैसा है, उसे वैसे ही स्वीकार करना। ये सबसे मुश्किल होता है लेकिन एक बार सध जाये तो क्या कहने।

-वाह, क्या खूब। आगे।

-अपने अनुभव और जजमेंट पर भरोसा करना।

-हम्म।

-जो करो सहज तरीके से करो और बिना आगा पीछा सोचे हुए करो। जिसे स्पांसटेनियस कहते हैं। खुद के प्रति ईमानदार रहो।

-जैसे?

-साफ है कि जब हम किसी को धोखा देते हैं तो दरअसल खुद को धोखा दे रहे होते हैं। हम वही करें जो हमें रुचे। हम ये न देखें कि लोग क्या कहेंगे।

मैं हंसा हूं – मैं समझ रहा हूं। कल से देख ही रहा हूं।

-जो भी करें, पूरे मन से और पूरी तरह से डूब कर करें।

-हर हाल में अपने स्वयं को बचाये रखें, तारीफ में कंजूसी न करें। जो भी संबंध बनायें इतने गहरे हों कि बस। एकांत का मजा लेना सीखें। एकांत बहुत सुकून देता है। आपमें गजब का सेंस ऑफ हयूमर होना चाहिये। उससे किसी को हर्ट न करें। जो भी अनुभव लें, वे खांटी हों, बेहतरीन हों। पूरी तरह डूब कर अनुभव बटोरें। सामाजिक रूप से आप स्वीकार्य हों। एक कहावत है मेक यूअर प्रेजेंस ऑर एबसेंस फैल्ट। आप इन्सान तो हैं ही आपमें इन्सानियत भी हो। और सबसे आखिरी और अहम बात, आपके थोड़े से दोस्त हों। वे आपके इतने करीब हों कि आप उनके साथ हों तो कम्फरटेबल हों। दोस्तों के नाम पर भीड़ जमा करने का कोई मतलब नहीं होता।

-तो बंधु ये ही वे बातें हैं जिन्हें मैंने अपने जीवन में ढालने की कोशिश की है और अपने आपको कई कई बार मरने से बचाया है।

-बहुत खूब। मैं अपनी जगह से उठा हूं और अंजलि के पास जा कर उसे उठने का इशारा किया है। मैंने अपनी तरफ से उन्हें फिर से गले लगाया है।

– अंजलि थोड़ी देर पहले तक मैं तुम्हें जिस रूप में देख रहा था, दस मिनट की इस बातचीत ने तुम्हारा एक नया ही चेहरा मेरे सामने पेश किया है। मैं बेशक तुम्हें पिछले एक बरस से तो जानता ही रहा होऊंगा लेकिन फेसबुक पर तुम्हारा ये रूप कभी सामने नहीं आया था।

– फेसबुक चैट की एक सीमा होती है समीर। वहां आप थोड़ी देर के लिए, मन बहलाव के लिए, रोज़ाना की तकलीफ़ों से निजात पाने के लिए या रूटीन से बदलाव के लिए आते हैं। जीवन के गूढ़ रहस्यों की बात करेंगे तो आप इतने शानदार सोशल मीडिया प्लेेट फार्म पर भी अकेले रह जायेंगे।

– सही है। शायद इसी वजह से हमारी से मुलाकात इतनी शानदार और यादगार रहने वाली है। एक बात बताओ अंजलि, थोड़ी देर पहले तुमने कहा था कि बेशक यहां तक की तुम्हारी यात्रा बेहद मुश्किल और इतनी तकलीफों से भरी रही कि मैं सुनूंगा तो दांतों तले उँगली दबा लूंगा। तो मोहतरमा, ये दांतों तली उँगली दबाने का मौका आज मिलेगा या कल के लिए रिज़र्व रखें इसे?

– समीर सच कहूं तो मैंने अपनी ज़िंदगी की किताब कभी भी किसी के सामने नहीं खोली है। कोई ऐसा मिला ही नहीं जिसे ये सब बताती। जिसे भी बताती वह मुझ पर तरस ही खाता जो मुझे मंजूर नहीं है। अब शायद तुम्हारे सामने ही ये किताब खुलेगी लेकिन अभी नहीं। ड्रिंक्स और डिनर के बाद हम कल की तरह रेत पर कुर्सियां डाल कर बैठेंगे। नो कैंडिल लाइट। तब हम तुम्हें अपनी कहानी सुनायेंगे। अँधेरा मेरी मदद करेगा। और उन्होंने अपना ड्रिंक रिपीट करने का इशारा किया है।

जिस वक्त रेत पर हमारी कुर्सियां लगायी गयी हैं बारह बज रहे हैं। अचानक अंजलि ने वेटर को बुलवाया है और एक पैकेट सिगरेट और लाइटर लाने के लिए कहा है। हमम। मैं मुस्कुराता हूं – इसी की बस कमी थी।

अंधेरे में अंजलि सामने विशाल समंदर की बार बार पास आती और सिर पटक कर लौट जाती लहरों की तरफ देख रही हैं। जैसे खुद को अपनी कहानी सुनाने के लिए तैयार कर रही हैं। सिगरेट मंगवाना भी उसी तैयारी का हिस्सा है। उन्हों ने सिगरेट सुलगायी है और पहला कश लगाया है -17 बरस की थी जब देसराज के घर से मेरे लिए रिश्ता आया था। देसराज मेरे पति का नाम है। इस नाम ने और इस नाम के शख्स ने कभी मेरे कानों में घंटियां नहीं बजायीं। तुमने तालस्ताय का उपन्यास अन्ना केरेनिन्ना पढ़ा होगा। उस महान उपन्या्स में अन्नार पहले ही पेज पर कहती है कि लोग अपने पार्टनर को उसकी सारी खराबियों के बावजूद प्यार करते हैं लेकिन मेरी तकलीफ ये है कि मैं अपने पति को उसकी सारी अच्छाइयों के बावजूद प्यार नहीं कर पाती।

-समीर मेरी भी यही तकलीफ है। मैं कभी देसराज को प्यार नहीं कर पायी और न ही मुझे ही उस शख्स का प्यार मिला। तो मैं अपनी शादी का किस्सा बता रही थी। मैं नाबालिग थी लेकिन इतनी समझ ज़रूर थी कि इतनी कम उम्र में शादी नहीं करनी चाहिये लेकिन मेरे माता पिता के सामने कुछ ऐसी मज़बूरी आन पड़ी थी कि वे चाहकर भी इस रिश्ते को ठुकरा नहीं सकते थे। मेरे पापा कस्बे के हाईस्कूल के हेडमास्टर थे। हमारा घर भी कस्बे और गांव के बीच सी किसी जगह में था।

-कुछ दिन ही पहले हमारे घर में एक बहुत बड़ा हादसा हो गया था जिसकी वजह से देसराज जी के घर से आए शादी के प्रस्ताव को किसी भी कीमत पर ठुकराया नहीं जा सकता था। मेरे इकलौते मामा की हत्या कर दी गई थी और मेरी मामी अपने दो बच्चों के साथ हमारे ही घर पर आने को मज़बूर हो गयी थी।

-इतने अच्छे घर बार से आया रिश्ता देखकरमम्मी पापा ने अपने सिर जोड़े थे और तय किया था कि बिना दूल्हे को देखे होने वाली शादी को स्वीकार कर लिया जाए। इस गणित से बहुत सारे समीकरण हल होते थे। अच्छा खासा घर बार था। दहेज की कोई मांग भी नहीं थी और शादी का सारा खर्चा लड़के वाले करने वाले थे। हंसी आती है समीर कि हमारे यहां दूल्हा हमेशा लड़का ही रहता है। ये बात मुझसे छुपा ली गयी थी कि ये लड़का देसराज, जिससे मैं ब्याही जा रही थी, 31 बरस का था और मुझसे 14 बरस बड़ा था। मैं सत्रह बरस की भी नहीं थी और ग्यारहवीं में पढ़ रही थी। मेरी एक भी नहीं सुनी गयी थी और मेरी शादी कर दी गयी थी। मेरी ससुराल वालों ने मेरे बहुत जोर देने पर इतना वादा जरूर किया था कि मुझे पढ़ाई जारी रखने देंगे।

-और हम ब्याह दिये गये थे। इस विवाह से दो अपराध एक साथ हुए थे। एक तो बाल विवाह और दूसरे मेरे नाबालिग होने के कारण देसराज का मुझसे शारीरिक सबंध। नाबालिग लड़की से शारीरिक संबंध, चाहे वह आपकी पत्नी जो न हो बलात्कार ही तो कहलायेगा। सुहागरात के समय ही मैंने देसराज को देखा था। न तो इस शादी में ऐसा कुछ था जो मुझे पसंद आता और न ही देसराज में ही ऐसा कुछ था जो मुझे बांधता।

-मेरा भरा पूरा ससुराल था। सास ससुर, दो जेठ जेठानियां, ननदें। बड़ी जेठानी की घर में चलती थी क्योंकि उनका एक बेटा था। मुझसे बड़ी जेठानी की दो लड़कियां थी। संयुक्त घर और संयुक्त खानदानी कारोबार। मेरा बहुत अच्छे से स्वागत हुआ था। बेहद सुंदर जो थी मैं। पता चला था कि मुझसे पहले देसराज कम से कम 50 लड़कियां रिजेक्ट कर चुका था। मेरा बस चलता तो हर बार मैं ही उसे 50 बार रिजेक्ट करती। घर में सबसे छोटी होने के कारण सबकी सेवा करने का अनकहा भार मुझ पर आ पड़ा था। अपने घर में काम करने की आदत थी तो निभ जाता था।

-तभी मेरे साथ दूसरा हादसा हुआ था। अपने अठारहवें जन्मदिन से एक दिन पहले मेरा मिसकैरिज हुआ था। पूरे परिवार को लकवा मार गया था। सबसे बड़ी जेठानी का इकलौता बेटा आवारा था और मुझसे बड़ी जेठानी की दो लड़कियां थीं और अब दोनों ही और बच्चे पैदा करने की उम्र लगभग पार कर चुकी थीं। परिवार की सारी उम्मीदें मुझ पर थीं और…।

तभी अंजलि ने पीछे मुड़ कर देखा है। थोड़ी दूर अंधेरे में एक वेटर एक ट्रे हाथ में लिये खड़ा है – पता नहीं किस चीज की जरूरत पड़ जाये।

अंजलि ने बेहद स्नेह से मुझसे कहा है -यार उससे कहो कि हमें कुछ नहीं चाहिये। यहां इस तरह से ड्यूटी बजाने की ज़रूरत नहीं है। बेशक जाने से पहले एक शॉल दे जाये। एक काम और करना समीर। उसे या किसी और को लाने के लिए मत कहना। खुद जा कर मेरे लिए व्हिस्की का एक एक्ट्रा लार्ज पैग नाइंटी एमएल विद सोडा लेते आओ प्लीज। और सुनो, अपने लिए मत लाना। तुम्हारी लिमिट मेरी लिमिट से कम है। डोंट टार्चर यूअर सेल्फ। बहुत प्यास लगी है डीयर। करोगे ना मेरा इतना सा काम।

मैं उठा हूं। इस समय अंजलि मुझे बेहद खूबसूरत, मासूम और निरीह बच्ची लग रही है जिसे आँचल में छुपा लिया जाना चाहिये। मैं उसका कंधा थपथपाता हूं। इट्स ओके। अभी लाता हूं।

मैंने अंजलि को अच्छी तरह से शॉल ओढ़ा दी है। उन्होंने व्हिस्की का गिलास थामते हुए मुझे अपनी कुर्सी उनकी कुर्सी के नज़दीक करने का इशारा किया है। अपना हाथ बढ़ाया है। मेरा हाथ थामने के लिए। मेरा हाथ उन्होंने अपनी गोद में रखकर अपने हाथ में थाम लिया है।

एक लम्बा घूँट ले कर अंजलि ने कहना शुरू किया है- ऐसे कठिन समय में मुझे अपने पति की तरफ से हर तरह के मानसिक और भावनात्मक संबल की ज़रूरत थी और वही मुझसे दूर जा कर खड़ा हो गया था। यहां तक कि उसने मुझसे बात तक करनी बंद कर दी थी जैसे मिसकैरिज करके मैंने उसके खानदान के प्रति कोई अपराध कर दिया हो। वह जानबूझ कर काम के सिलसिले में टूर पर जाने लगा था। पागल था। दूसरा बच्चा होने के लिए तो उसे मेरे पास आना और सोना ही था। वह कई दिन ये दोनों काम टालता रहा। मेरे लिए भी अच्छा रहा कि मेरी सेहत इस बीच ठीक हो गयी थी। बेशक सब का मेरे प्रति व्यतवहार चुभने की हद तक खराब हो चुका था।

-अब मेरा एक ही काम रह गया था। मैं दिन भर घर में दिनभर अकेली छटपटाती रोती रहती और सास के ताने सुनती रहती। वहां कोई मेरे आंसू पोंछने वाला नहीं था। कुल मिलाकर 18 बरस की उम्र और ग्यारहवीं पास अकेली लड़की कर ही क्या सकती थी।

लेखक : सूरज प्रकाश

क्रमश: ….

Leave a Reply