न ठीक से देखा तुम्हें और न समझा
फिर भी ख्वाहिश थी मोहब्बत की !
कई दिनों से देख रहा था तुम्हें
पर रात भर यूं ही थमी रही !
इश्क़ के परिंदे दिल में उड़ने लगे
और जुबान पर तुम अभी तक आयी नहीं !
हम भी एक मुसाफिर से बन गए
और तुम अभी तक मंजिल बनी नहीं!
न ठीक से देखा तुम्हें न समझा तुम्हें
फिर भी ख्वाहिश थी बस मोहब्बत की !
पवन त्रिपाठी