ख्वाहिश – पवन त्रिपाठी

  • Post author:Manisha Tyagi

न ठीक से देखा तुम्हें और न समझा

फिर भी ख्वाहिश थी मोहब्बत की !

कई दिनों से देख रहा था तुम्हें

पर रात भर यूं ही थमी रही !

इश्क़ के परिंदे दिल में उड़ने लगे

और जुबान पर तुम अभी तक आयी नहीं !

हम भी एक मुसाफिर से बन गए

और तुम अभी तक मंजिल बनी नहीं!

न ठीक से देखा तुम्हें न समझा तुम्हें

फिर भी ख्वाहिश थी बस मोहब्बत की !

पवन त्रिपाठी

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