कवित्त – Girendra Singh Bhadouriya

  • Post author:Manisha Tyagi

प्राण का एक कवित्त

सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य,
काव्य में रसत्व का आनन्द नहीं होता तो।।

रूखे सूखे ज्ञान को भी सरस बनाता कौन,
कवि जो स्वतन्त्र स्वच्छन्द नहीं होता तो।‌।

लय में लालित्य नाद, भाव माधुरी में राग,
मिट जाते कविता में, छ्न्द नहीं होता तो।।

कटता न काटे एक पल ऊब जाते “प्राण”
लोगों को कवित्व जो पसन्द नहीं होता तो।‌।

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया “प्राण” इन्दौर

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