ऊंचे आसमां को छूने को दिल करता है
बचपन के सपने को सच्चा करने को दिल करता है
बचपन में उड़ाते थे जो जहाज
उसपे बैठ के दूर जाने को दिल करता है
ऊंचे आसमां को छूने को दिल करता है।
है सिर पे छत महलों की
है खुशियां सब रंगों की
पर फिर से उस माँ के
आँचल में सोने का दिल करता है
ऊंचे आसमां को छूने को दिल करता है।
है आज पैसों से भरी जेबे
है सब ख्वाबों के आशियाने
पर फिर भी आज ये दिल
बाबूजी के सिक्के पाने को दिल करता है
ऊंचे आसमां को छूने को दिल करता है।
है व्यंजनों से भरी थालियां
है शामों की रंगरलियां
पर बड़े भाई के हिस्से का
मांग कर खाने को दिल करता है
आज फिर से उस बचपन में जाने को दिल करता है
बचपन के सपनों को सच्चा करने को दिल करता है
ऊंचे आसमां को छूने को दिल करता है।
—
दीपक कुमार यादव
दीपक कुमार यादव जी बीटेक कर चुके है और वर्तमान में सिविल सर्विसेस परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और उपरोक्त रचना उन्होने चौदह वर्ष की उम्र में लिखी थी। पंजाब में जन्मे दीपक जी बताते है कि उन्हें कविता लिखने की प्रेरणा बारह वर्ष की उम्र में मिली थी। लेखक से दूरभाष 75000 00877 पर संपर्क किया जा सकता है।
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