क्यों इतना सहनशील बनाया तूने
ऐ खुदा दिया तूने हर चीज हमें जज्बात भी है, दिल भी है
फिर भी हर गलती की
जिम्मेदार भी हम ही हैं!!
रहते है चुप हम
रोककर अपने आवेश को
सहज नहीं है सहनशील होना अपने वेग को रोक कर!!
सब ने कहा जो
हमे सुनना है
साथ ही साथ तुम्हें भी संभालना है
पर किसी को भी हमे नहीं समझना है!!
हंसते रहो ,मुस्कुराते रहो
चाहे दिनभर हर जिम्मेदारी निभाते रहो
पर रोज होने वाली हर गलती की
जिम्मेदार हम ही तो है!!
बोलना चाहते हैं हम
पर बोल नहीं पाते
हर चीज हम भी महसूस करते हैं
जितनी व्यथा तुम में है
उतने ही हम में भी!!
छिपा देते है हम अपनी वेदना
बहा देते है आंसुओं को
सबसे छुप -छूप कर !!
कभी-कभी जी चाहता है हम सबका भी
दूर उड़ जाए परिंदों की तरह
चिल्लाये बहुत जोरों से
पहाड़ों पर चढ़कर !!
पर रोक
लेती है अपनों की
परवाह हमें
फिर से ओढ़ लेती हैं हम सहनशीलता की चादर !!
ओढ़ लेती हैं हम
सहनशीलता की चादर!!!
– अनामिका अमिताभ गौरव, रामगढ़िया, आरा (बिहार)
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