दो नयन सम्भाला था जिनको
वो नयनों के विपरीत हुए!
मन मन्दिर बैठा ला जिनको
वो मन के ही न मीत हुए।।
कि बैठे बैठे जिनको हम
प्रेम के गीत सुनाते थे
वो रूठे तो
फ़िर यूँ रूठे
हाय करुणा के
फ़िर गीत हुए।।
दो नयन सम्भाला था जिनको
वो नयनों के विपरीत हुए!
स्वप्न सजाये थे जीवन के
वो एक पल में
कैसे टूट गए
जीवन पथिक बनाया जिनको
वो बीच सफर में छुट गए
अधरों पर मुस्कान लिए हम
फ़िर भी घूमा करते है
अंतरमन से देखो तो हम
अंदर अंदर रूठ गए
दो नयन सम्भाला था जिनको
वो नयनों के विपरीत हुए!
मन मन्दिर बैठा ला जिनको
वो मन के ही न मीत हुए।।
सौरभ दीक्षित SD
नौगाँव जिला छतरपुर
मध्य प्रदेश