रेखा और निशा दोनों पड़ोसी ही नहीं बल्कि बहुत अच्छी सहेलियां भी हैं। आर्थिक स्तर समान होने के साथ-साथ दोनों के विचार और शौक भी काफी हद तक एक दूसरे से मिलते हैं। दोनों को ही लिखने-पढ़ने में रूचि है। रेखा की तो कवितायें, कहानियां और लेख अक्सर विभिन्न समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं जिन्हें पढ़ कर निशा के भीतर दबा बरसों पुराना शौक जाग उठा। स्कूल-कॉलेज के दिनों में निशा को भी लिखने का बहुत शौक था मगर अब उस पर वक्त ने धूल की परत जमा दी। डिग्री करते ही निशा की सरकारी नौकरी लग गई और वह अपने काम में व्यस्त हो गई। उसके बाद शादी और फिर बच्चों में ऐसी उलझी कि भूल ही गई कभी लिखती भी थी। हाँ! मगर पढ़ने का शौक अब भी बरकरार था।
लेखन को फिर से शुरू करने को निशा ने एक चुनौती के रूप में लिया और पूरे मनोयोग से जुट गई उस पर विजय प्राप्त करने के प्रयासों में। अब समस्या ये थी कि आखिर लिखे तो क्या लिखे? कोई विचार, कोई कल्पना दिमाग में आ ही नहीं रही थी। बहुत माथा-पच्ची करने के बाद उसने सोचा कि क्यों न शुरुआत मोहल्ले से ही की जाये!
सामने होली का त्यौंहार आ रहा था। उसने अपनी महिला-मंडली की सदस्यों को ध्यान में रखते हुए छोटे-छोटे काव्यांशों से उनके “टाइटल” स्वरुप कुछ पंक्तियाँ लिखी।
होली के स्नेह मिलन समारोह में निशा ने एक-एक महिला को संबोधित कर के बेहद खूबसूरती से सजाये ग्रीटिंग कार्डों में लिखी पंक्तियाँ अत्यंत प्रभावशाली अभिव्यक्ति के साथ सुनाई तो सहसा किसी को विश्वास ही नहीं हुआ कि ये पंक्तियाँ निशा ने लिखी हैं। निशा का ये नया रूप सबके लिए एक अजूबा था। सबने उसकी दिल खोल कर तारीफ की। निशा का मनोबल बढा मगर उसका ये सफल प्रथम प्रयास रेखा को रास नहीं आया। उसे निशा आने वाले कल के लिए अपनी प्रबल प्रतिद्वंदी सी नजर आ रही थी।
निशा अब और भी संजीदगी से लिखने लगी। निरंतर मेहनत से उसके लेखन में निखार आने लगा। एक दिन उसने अपनी एक भावपूर्ण रचना राष्ट्रीय स्तर के समाचार-पत्र के संपादक को भेजी। कुछ दिनों के बाद अपनी उस कविता को समाचार-पत्र में बेहद खूबसूरती के साथ प्रकाशित देखा तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। इसी खुशी में उसने आनन-फानन में अपनी महिला-मंडली को एक छोटी सी पार्टी दे डाली और उस पार्टी में पूरे भावों के साथ जब उसने इस कविता का पाठ किया तो पूरा हॉल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा। अपनी सहेली की ये कामयाबी रेखा को हजम नहीं हुई मगर निशा अपनी खुशी में बावली हुई देख ही नहीं सकी कि रेखा के मन में क्या चल रहा है।
सिलसिला चलता रहा। निशा की कवितायेँ, कहानियां और लेख देश भर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। विभिन्न सम्मानित मंचों पर भी उसे काव्य-पाठ के लिए बुलाया जाने लगा। हर जगह तारीफों और तालियों से उसका स्वागत होता।
एक दिन दोनों सहेलियाँ सर्दी की गुनगुनी धूप में चाय की चुस्कियों का मजा ले रही थी। निशा खुश हो कर रेखा को अपने कवि-सम्मेलनों के अनुभव सुना रही थी। रेखा ने कहा- “निमंत्रण तो मुझे भी खूब आते हैं मगर मैं ही नहीं जाती. मेरी मानो तो तुम भी मना कर दिया करो। पहले तो ये लोग हमें बुलाते हैं, फिर अपनी संस्था की सदस्यता के नाम पर मोटा चंदा मांगते हैं। एकल काव्य-पाठ के नाम पर तुम्हें हजारों रुपये का चूना लगा देते हैं।”
निशा आवाक रह गई। रेखा ने उसका सामान्य ज्ञान बढ़ाते हुए आगे कहना जारी रखा- “क्या हो जायेगा अगर तुम्हारा कोई काव्य या कहानी संग्रह छप भी गया तो? कौन पढता है आजकल इन किताबों को? वैसे भी कवितायेँ तो आजकल कोई भी लिख लेता है। हर कोई चार लाइनें लिख कर अपने आप को महान कवि समझने लगता है।”
निशा समझ नहीं पाई कि रेखा उसे सलाह दे रही है या उसका मनोबल तोड़ रही है।
एक दिन अपनी महिला-मंडली में निशा अपनी कविता सुना रही थी। कविता ख़त्म होते ही रेखा ने सबके सामने कहा- “निशा लिखना अच्छी बात है मगर रचना चुराना अपराध है। तुम्हारी इस कविता के बहुत से शब्द हुबहू अमुक कवि की कविता से मिलते हैं। तुम सरकारी सेवा में हो, अगर किसी ने शिकायत कर दी तो इस अपराध के लिए तुम्हारी नौकरी भी जा सकती है।
निशा स्तब्ध रह गई। “ये क्या कह रही हो? मैनें किसी की रचना नहीं चुराई, ये मेरी मौलिक रचना है और इस कवि को तो मैं जानती भी नहीं।”
“आजकल इन्टरनेट पर सब उपलब्ध है, फिर चाहे तुम उसे जानो या ना जानो।” रेखा अब भी उसे दोषी साबित करने पर आमादा थी। निशा का मूड ख़राब हो गया। उस दिन से दोनों के सम्बन्धों में कडवाहट की शुरुआत हो गई।
एक दिन एक ऑनलाइन कविता प्रतियोगिता का विज्ञापन देख कर निशा ने उसमें भाग लेने का निश्चय किया। प्रतियोगिता का विषय वही था जिस पर लिखी कविता को रेखा ने चुराई हुई रचना कहा था। निशा ने वही कविता प्रतिभागी के रूप में भेज दी। प्रतियोगिता के परिणाम वाले दिन सुबह से ही निशा बार-बार वेब साईट को रिफ्रेश कर के देख रही थी। शाम को लगभग चार बजे जब उसने विजेता के रूप में अपना नाम देखा तो ख़ुशी के मारे उछल पड़ी. भागी-भागी रेखा के पास गई। कंप्यूटर खोल कर उसे अपना नाम दिखाया मगर रेखा ने फीकी सी बधाई देते हुए कहा- “चार जने मिलकर किसी को भी विजेता बना देते हैं। वैसे भी पुरस्कार में क्या देंगे? एक प्रमाण-पत्र?”
निशा का जीत का नशा उतर गया. मायूस सी घर लौट आई।
अगले दिन निशा अपनी मेल देख रही थी। इनबॉक्स में आयोजन समिति की एक मेल देखकर उत्सुकता से उसे खोली। लिखा था- “एक पाठक ने आप की कविता को अमुक कवि की रचना बताते हुए आप पर रचना चोरी का इल्जाम लगाया है। सात दिन में अपना स्पष्टीकरण देवें अन्यथा आप के खिलाफ कार्यवाही हो सकती है।” निशा सकते में आ गई। रेखा ऐसा भी कर सकती है, उसका दिल अब भी इस सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहा था। मगर अब सवाल प्रतिष्ठा का बन चुका था।
मेल में दिए मोबाइल नंबर पर उक्त कवि से निशा ने संपर्क किया और उसे पूरी बात बताते हुए उनसे सहायता करने की प्रार्थना की। कवि बहुत सहृदय थे। उन्होंने कहा- “आप अपनी कविता मुझे मेल कर दीजिये। मैं देखता हूँ।”
निशा ने धडकते दिल से कविता मेल कर दी और जवाब की प्रतीक्षा करने लगी। एक-एक पल निशा को भारी लग रहा था। दूसरे दिन शाम को इनबॉक्स में कवि महोदय की जवाबी मेल देख कर डरते-डरते खोली। लिखा था- “ विजेता बनने के लिए बधाई। रचना सचमुच बहुत सुन्दर है। हालाँकि कुछ शब्द मिलते हैं, मगर आपकी ये रचना मेरी कविता की कॉपी नहीं है। शब्दों का मिलना एक इत्तेफाक हो सकता है। शब्द तो वही होंगे जो प्रचलित हैं, आप नया शब्दकोष तो बनायेंगी नहीं।”
निशा के सिर से मानो भारी बोझ हट गया। उसे अपनी रचना की मौलिकता का प्रमाण-पत्र मिल गया था। उसने कवि की प्रतिक्रिया आयोजन समिति को भेज दी।
अगले दिन आयोजन समिति ने असुविधा के लिए खेद प्रकट करते हुए उसे एक बधाई सन्देश भेजा। निशा झूम उठी।
एक सप्ताह बाद उसे कूरियर से अपना “विजेता प्रमाण-पत्र” मिला। सारे घटनाक्रम से अनजान बनने का नाटक करते हुए उसने सारा किस्सा विस्तार से बताते हुए गर्व से रेखा को वो प्रमाण-पत्र और वो सारे मेल दिखाए जो इस बात का सबूत थे कि निशा कॉपी राइटर नहीं है।
आज निशा सही मायने मं खुद को विजेता महसूस कर रही थी।
—
लेखक : इंजी. आशा शर्मा
लेखिका विद्युत विभाग में सहायक अभियंता के पद पर कार्यरत है। आपके कविता, कहानी, आलेख राष्ट्रीय/अन्तराष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं एवं वेब पोर्टल पर प्रकाशित होते रहते है। हिन्दी साहित्य में योगदान के लिए आजतक आपको ढ़ेरो सम्मानों से नवाजा जा चुका है। जिनमें वर्ष 2016 में इंडिया एक्सीलेंस अवार्ड-2016, नई दिल्ली, शब्द साधक (मानद उपाधि), कर्णधार सम्मान-2016, राज. पत्रिका बीकानेर (राज), सोशल मीडिया मैत्री सम्मान-2016 बीकानेर (राज.), अखिल भारतीय शब्द-प्रवाह सम्मान-2016, उज्जैन (मप्र), विश्व देव सिंह चौहान स्मृति पुरस्कार-2016, मैनपुरी (यूपी) आदि प्रमुख है। आपके आलेख को रक्षा मंत्रालय के प्रकाशन में भी स्थान मिल चुका है। इसके साथ ही आकाशवाणी बीकानेर से नियमित एवं अन्य सम्मानित मंचो पर कविता पाठ करती रहती हैं।