रिश्वत

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हमार देशमा सरकारी कार्यालय मा बैठन वाल अधिकारी बाबू बहुत अच्छे और ईमानदारी पुर्वक कार्य करन वाल है। हम काहे उनकी बुराई करे। हम तो बस उनके गुण बयां कर रहे है।

हां! तो हम कह रहे थे हमार देश का अधिकारी रिश्वत नाही लेते है आप सीधे जाकर अधिकारी बाबू को रिश्वत तो देने के नाही और ना वे आपसे कहेगे। उनकी तरफ से जानकारी देइबो उनका पर्सनल सैक्ट्ररी कम चपरासी। चलिये हम आपको हम एक किस्सा चौधरी साहब का सुनाये देत है।

चौधरी साहिब सरकारी कार्यालवा मे……….

अधिकारी बाबू से- नमस्कार साहब, हमार एक फाईलवा है जरा हमरी समस्या का हल बताइ दो। देखिये हमार पास इतना वक्त तो है नाही जो च्क्करवा काटत रहे।

अधिकारी बाबू- ऐसा करिये आप हमार चपरासी रामदीनवा से मिल लई लो, वो सब समझाई दइगे।

चपरासी- देखिये चौधरी जी, साहब से काम निकलवाना है तो हमका पैईसे देइ दो, तुम्हार काम होई जाइगा। काहे चिन्ता करत हो।

चौधरी साहब- का पैइसे! (अचभे में)।

चपरासी- हाँ चौधरी साहिब, आपका काम भी तो हैइ ना, आपके जैसे कई चौधरी हमार पास आईत रहत है और पैईसा देकर काम करात है।

चौधरी साहब- (मन ही मन मे बुदबुदाते हुए) अरे! ससुरा हम जैइसा लोगन ही इनका मुह लगाई हूँ, दुसरे हमरे पास टाइमव नाही है। मरता ना क्या करता।

(पैईसे देते हुऐ) भई देण तो पणेगे ही चल भईये, तु भी राख ले पर हमार काम तो हो जाईगो।

चपरासी बाबू दिलासा देते हुए- अरे चौधरी साहब तुम्हार काम हो गई समझो। चौधरी साहिब आप जैइसे लोगनवा के कारण ही हमार जिन्दगी ठीक चाल राही है क्यूकि आपके पास टाइमवा की दिक्कत हैइ, इसलिये आप जइसे लोगन अपणा काम पैइसे देकर निकलवाई लेत है।

तभी चौधरी साहब ने एक गरीब आदमी को देखा उसका काम भी इसी कार्यालय मे ही था।

चपरासी उसके पास जाकर बोला- अरे! का काम है।

गरीब आदमी गिड़गिड़ाकर- साहब हम गरीब आदमी हैई, हमार साहब से मिलवाई दो कल भी साहब नाही थे, तुम्ही हमका आज बुलाइ थे।

चपरासी नाक सिकोड़ते हुए टेढ़ा करके बोलते हुए- अरे आज कहां कहे थे, वैइसे भी साहब अभी वयस्त है, कल सुबह आईये रे, चल वक्त कु बरबाद ना कर।

गरीब रोते हुऐ- साहब हमका मिलवाई दओ, हमका चक्कर काटत-काटत साल भर होइ गये।

चपरासी कुढ़ते हुए- अरे तुमका सुनाई देत नही है का, साहब अभी वयस्त है।

गरीब आदमी डरते हुए बोला- हमरे पास जो भी हैइ वो लइलो।

चपरासी की आँखों में चमक आ गई और खुश होते हुए बोला- का लाये हो, दिखाओ तो हमका।

गरीब आदमी कुछ चिल्लर निकालकर बोला- लो साहब।

चिल्लर देखकर चपरासी की सारी खुशियाँ पल में छूमंतर हो गई और लताड़ लगाते हुए बोला- हमका का भिखारी समझे हो। चलो कल आणा वरना यही बैठे रहो, हमार का जात है।

चौधरी साहब अभी तक यह देखण खातिर रूके थे कि गरीब के साथ का होत है। उन्होने मन ही मन सोचा, जो गरीब हैई, उसका एइसा हाल होत है। खैर हमार का मतलब है इन गरीबो से, हमरा काम निकल जाइबो बाकि भाड़ मे जाइबो।

इतने मे अधिकारी बाबू भी बाहर आ गये और चौधरी साहब का रूका देख बोल पड़े- चौधरी साहब, आप किसकी खाततर रूके हऐ है।

चौधरी साहब- अरे कुछ नाहि, हम तो या आदमी को देखण रूके थे।

अधिकारी बाबू- अरे काहे इन गरीब लोगण के चक्करवा मे पड़ते हो, चलिये हमरी ओर से चाय पिलाईते है। दोनो चाय पीने के लिये चले जाते है और गरीब अपनी गरीबी को कोसता हुआ खुद को दिलासा देता हुआ कल का इंतजार करता है। शायद कभी तो कल आयेगा।

(लेखक की ओर से – यह व्यंग्य मेरे द्वारा वर्ष 2011 की शुरूवात में लिखा गया था, जब मैं अपनी एक पत्रिका के पंजीकरण के लिए सूचना विभाग में चक्कर काट रहा था। उन्हीं दिनों के खराब अनुभव ने लिखने के लिए प्रेरित किया।)

लेखक : राजेन्द्र सिंह बिष्ट

(लेखक कई वर्षों तक पत्रकारिता में रहने के बाद अब प्रकाशन व्यवसाय में हैं)

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