बँटवारा
दो भाई ; बड़े का नाम उमाशंकर और छोटे का रमाशंकर लेकिन बड़प्पन लेशमात्र भी नहीं ।
किसी एक बीघा खेत के चक्कर में बीते बीस साल से आपस में बातचीत बंद और मुकदमा जारी ।
इन बीस सालों में दोनों भाईयों ने लाखों रुपए बर्बाद कर दिए ।
दोनों के बच्चे बड़े हो गए उनकी पढ़ाई भी ढंग से नहीं हो सकी ।
बच्चों की जैसे तैसे शादी हुई।
हालांकि किसी के भी बच्चों की शादी में दोनों में से कोई नहीं पहुंचा ।
पुलिस और कोर्ट की वजह से दोनों भाई आज भी कर्ज में डूबे हुए हैं ।
मनुष्य की आँखों पर जब तक घमंड और लालच का पर्दा डला होता है तब तक सारे रिश्ते नाते फिजूल के लगते हैं ।
उसे अपनी ताकत सबसे अधिक लगती है और यही वजह बनती है उसके विनाश की ।
ईश्वर सबको सुधरने का मौका देता है फिर भी मनुष्य अपनी हरकतों से बाज नहीं आता और अपने परिवार के समूल विनाश का कारण बन जाता है ।
दोनों भाई कचहरी के चक्कर लगाते लगाते अब बूढ़े हो चुके थे ।
तारीख पर जाना ही उनके लिए सजा बन चुका था ।
एक दिन छोटा भाई रमाशंकर बड़े भाई के पास अचानक पहुँच गया और हाथ जोड़कर कहने लगा कि “भैया मुझे इस खेत से कोई मोह नहीं रहा अब इसे आप ही संभालो कम से कम खुशी खुशी हम दोनों का बुढ़ापा साथ में कट जाए और क्या चाहिए ।”
इतनी बात जैसे ही बड़े भाई ने सुनी वो फबक कर रो पड़ा और बोला कि “नहीं छोटे गलती मुझसे ही हुई है जो मैं इस एक बीघा खेत के लिए इतना जिद्दी हो गया । मैं बडा होकर भी बड़प्पन नहीं दिखा पाया मगर अब मैं कहता हूँ कि इस खेत को तू ही रख ।
दोनों भाई बीस साल बाद गले मिलकर रो रहे थे मगर जो कुछ खोया वो अब लौट कर कहां आ सकता है ।
भाई कभी इतने कठोर नहीं हो सकते मगर कुछ ऐसी पत्नियां पराये घर से आतीं हैं वो ये सब करा देतीं हैं ।
लक्ष्मण सिंह त्यागी रीतेश