अपने अपने संस्कार
दो मां जो पक्की सहेली थीं आपस में बैठकर बातें कर रहीं थीं। हरीश की मां बीच बीच में रोने लगती और सुनील की मां उसे बार बार शांत करती ।
जैसे हरीश और सुनील की मां आपस में सहेली थीं ठीक वैसे ही ये दोनों आपस में ना केवल मित्र थे बल्कि दोनों में काफी समानताऐं भी थीं जैसे कि दोनों पढने में होनहार थे लेकिन दोनों के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी ।
हरीश के परिवार ने फिर भी उसे पढाया मगर सुनील अपने बलबूते पर पैसा कमा कर जैसे तैसे पढा ।
अच्छी बात ये थी कि दोनों की लगभग एक साथ नौकरी लग गई और शादी भी ।
शादी में भी हरीश के घरवालों ने खूब दहेज लिया जबकि सुनील ने सादा तरीके से शादी की ।
हरीश अपने आपको माॅडर्न दिखाने के चक्कर में अपने और अपने बीबी बच्चों पर खूब खर्च करता रहा जबकि सुनील आज भी अपने माता पिता भाई बहन सबको साथ लेकर चलता रहा ।
जब हरीश की मां को उसका व्यवहार उनके प्रति पराये जैसा लगने लगा तो अपने आंसू सुनील की मां के सामने बहा लेती जबकि सुनील की मां अपने पुत्र की तरफ से खुश भी थी और गौरवान्वित भी ।
लक्ष्मण सिंह त्यागी रीतेश