ज़र्रे जर्रे मे वो बस रहा है
ऊपर बैठा वो कैसा हँस रहा है।
उसने ही रचाई थी सारी कायनात
अब कैसे वो सबको डस रहा है।
ये जो कहानी लिख रहा है हर कोई अपनी
हर सफे पर वो ही दस्तखत कर रहा है।
जीने और मरनेवालो की तादाद है कितनी
हर रोज वो उंगलियों पर गिन रहा है।
हम तो गिन रहे थे सफे ज़िंदगी के
वो तो हमारी सांसे गिन रहा है।
दास्तां ए हिज़्र जिसने भी सुनी अपनी
वो ही अब खुदा का कलमा पढ़ रहा है।
इस उजड़े हुए गुलशन को देखकर ना मायूस हो
एक फूल उम्मीद का अब भी खिल रहा है।
वो कहता तो इंतज़ार कर लेते ज़िंदगी भर
अब तो साँझ का सूरज ही ढल रहा है।
एक आरज़ू थी इबादत कर लूँ मैं आज
अब तो वह आखिरी कील ही ताबूत मे गड़ रहा है।।
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Written by – Rama Tyagi
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