ये चाहत की दुनिया भी अजीब होती है। जो कभी जजबातों का फूल खिला देती है तो कभी खिले हुए फूलों को मुरझा देती है। कोई अपना पराया बन जाता है और पराया कब अपना बन जाता है पता ही नहीं चलता है कि कैसे कोई आँखों के रास्ते दिल में समा जाता है किन्तु जब ये दिल धड़कता है तो किसी की याद आती है और चाहत का रूप बन जाता है। ये बातें आयशा के मन को बार-बार झकझोर देता है। वह चुपचाप अपने कमरे में कुर्सी पर बैठी ख्यालों के गहरे समनदर में खोई है। उसके पंसदीदा फूलों के बाग, शाम को उड़ते हुए पंक्षियों के दिलकस नजारे, टीबी सिरियल ये सब के सब बेईमान लग रहे। क्योंकि उस बगिया का माली उसे तनहा तड़पता हुआ छोड़कर बहुत दूर चला गया था। जिससे शायद ही जिन्दगी के किसी मोड़ पर मुलाकात हो सके।
आज आयशा को नसीम की बहुत याद आ रही थी। वो मुस्कुराहट, वह हसीन मुलाकात जब वह नसीम जी के साथ बागों का सैर करती थी। वह नसीम के कंधे पर अपना सर रखकर उनके बालों को प्यार से सहलाती, नसीम मुस्कुराते हुए आयशा को अपने बाँहों में भर लेते थे तथा उसके लहराते बालों में फूल खोंस देते थे, तो कभी चाँदनी को चकोर की तरह टुकूर-टुकूर निहारते आयशा शरमा जाती थी उसका मन पंक्षी की तरह मचलने लगता था। वह नसीम के बाँहों में सारी दुनिया को भूलकर सिमट जाना चाहती थी। मगर नसीम मुस्कुराते हुए पीछे हट जाते थे। आयशा पीछे से नसीम को गुदगुदा देती दोनों जोर-जोर से हँसने लगते और नसीम गुलाब के फूल तोड़कर आयशा के हाथों में थमा देते। आयशा फूलों को अपने गुलाबी होठों से सटाकर चुमती तथा मुस्कुराते हुए घर चली जाती थी। नसीम अपने क्वार्टर में चले गए। आयशा नसीम एक दूसरे के करीब आ चुके थे। मन ही मन नसीम आयशा को बहुत चाहते थे। मगर अपनी चाहत दिल में ही छीपा लेते। कभी भी अपनी दिल की बात आयशा को नहीं बताये। नसीम जुदाई के गम झेल चुके थे।
नसीम आयशा को बहुत प्यार करते थे। वे आयशा को दिल में बसाकर जुदा करना नहीं चाहते थे। आयशा अभी नादान थी, वह फूल से भी ज्यादा नाजूक तथा रूई से ज्यादा कोमल थी। उसकी शरीर सुडौल, आँखे बड़ी-बड़ी झील की तरह गहरी, घुँघराले काले बाल सवान की घटना की तरह घनेरी एवं शिल्की, होठ रसीली, चेहरा गोल-मटोल, दाये गाल पर तील, माथे पर कटे का निशान चन्द्रमा की घाटी की तरह चमकता था। रंग सांवला, बदन धरधरा तथा लम्बा था। मानों ईश्वर ने आयशा को बड़ी फुर्सत से बनाया था। वह बिल्कुल परी सी लगती थी। उसकी इसी अदा का नसीम दिवाना था। वह आयशा को दिल से प्यार करता था। पूरी रात आयशा के बारे में सोंचते रहे। सुबह हुआ तो उनका माथा दर्द कर रहा था। पूरा बदन आग की तरह तप रहा था। आयशा फूलों के बाग में घुमने आई मगर नसीम कही नजर नहीं आए तो वह उनके कमरे में गयी नसीम बिस्तर पर लेटे थे। उसने अपने नाजुक हाथों से नसीम को माथा स्पर्श किया तो नसीम का बदन सिहर गया। आयशा का हाथ काँपने लगा क्योंकि पहली बार उसने किसी मर्द का शरीर स्पर्श किया था। उसके शरीर में अजीब सी बेचैनी हुयी उसने हाँथों के सहारा देकर नसीम को उठाया तथा विस्तर का बेडसीट बदली। पूरे कमरे की सफाई की। एक गुलाब का फूल तोड़कर नसीम के हाँथों में थमा दी तथा घर चली गयी। नसीम इन फूलों को सुंघने लगा।
उसके आँखों से आँसू गिरने लगे। वह सोंचने लगे आयशा इस दुनिया से बिल्कुल बेखबर है। उसे इस जुल्मी जमाने का दस्तुर पता नहीं इस दुनिया ने कितने पवित्र पाक रिश्तों को भी बदनामी के दलदल में घसीट दिया। इसलिए नसीम नहीं चाहते है कि आयशा के ऊपर इस जमाने का उँगली उठे। तभी आयशा हाथों में नाश्ता का थाली लिए कमरे में आयी। वह नसीम के पास बैठ गयी। ‘‘यह पपीता तथा गाजर’’ का हलवा है अम्मीजान ने आपके लिए भेजा है और अपने हाथों से नसीम को खिलाने लगी। नसीम ने भी आयशा को अपने हाथों से खिलाया। नसीम आयशा को चकोर की तरह देखता और पलके झूका लेता वह सोंचने लगा इतना अपनापन शायद अपनों से भी नहीं मिलता। दोनों एक दूसरे को चन्दा-चकोर की तरह देखने लगे। नसीम के आँखों में आँसू भर आए। नसीम के आँखों में आँसू देखकर आयशा का दिल धड़कने लगा। वह नसीम के हाथ अपने हाथ में पकड़ ली और पूछने लगी -‘नसीम जी आपके आँखों में आँसू क्यों…………………’। नसीम आयशा के गालों पर हाथ रखकर प्यार से थपथपाने लगा और बोला कि ’’यह बात आपको समझ में नहीं आयेगा’’ और आयशा का आँख भर आये। आयशा नसीम को एक टक देखने लगी। ‘‘आप मेरा इनता ख्याल रखते हैं’’। यह कहते हुए आयशा नसीम के गले से लिपट गयी और दोनों एक दूसरे के बाहों में सिमट कर रोने लगे। नसीम आयशा के आँखों का आँसू पोछते हुए अपने से अलग किया। मगर आयशा फिर उसके हाथों को पकड़कर कहने लगी, ‘‘मैं किसी से नहीं डरती, मैं इस दुनिया को नहीं मानती’’ नसीम मुस्कुराते हुए बाद बदल दिया और पूछा ‘‘आप पढ़ लिखकर क्या बनना चाहती हो, मैं मानव की सेवा करना चाहती हूँ। इसलिए मैं डॉक्टर बनूँगी ताकि आप बीमार पड़ीयेगा तो मैं आपकी सेवा करूँगी’’। आयशा पलके झुकाये हुए बोली। नसीम अपने गम को छिपाते हुए जोर से हँसने लगा-अच्छा। तो आप मेरा सेवा पहले ही बहुत कर चकी है। नसीम अपने दोनों हाथ उठाकर दुआ करने लगा- आमीन …………..नसीम चाहत भरी नजर से आयशा को देखते हुए कहा-‘अम्मीजान अपनी’ लाडली एकलौती बेटी का इंतजार कर रही होगी, आयशा मुस्कुराते हुए घर चली गयी।
दूसरे दिन आयशा बहुत खुश थी। अपने मन-पसन्द ड्रेस पहनी थी बिल्कुल परी सी लग रही थी। उसके मन में चाहत के फूल खिले थे। उसके अरमान मचल रहे थे। वह अपने हाँथों से नसीम का फेबरेट नाश्ता पकौड़ा तथा मैगी बनायी थी। नाश्ते की थाली लेकर बागवानी पहुँच उसके होठों पर मुस्कुराहट थी। वह नसीम को सरपराईज देना चाहती थी। जैसे ही दरवाजे पर पहुँची उसके रोंगेटे खड़े हो गए। उसके हाँथ कांपने लगे, उसके दिल का अरमान शीशे की तरह बिखर गए क्योंकि दरवाजा बन्द था। वह घायल हिरनी की तरह पूरे बागवानी घुम गयी मगर नसीम नहीं थे। वह उस फूल के पास गयी जहाँ दोनों बैठकर बात करते थे। वहाँ उसे एक कागज का टुकड़ा मिला जिसे उठाकर पढ़ने लगी-सॉरी आयशा जी मैं आपका साथ नहीं दे सका मगर आपकी यादें अपनी साथ ले जा रहा हूँ। एक अजनबी, अनजानी सी डगर, न कोई मंजिल न कोई आपकी खबर।
खुदा हाफिज…………………..!
आयशा जैसे सन्न हो गयी। उसके हाँथों की थाली गिर गयी। उसका पूरा बदन कांपने लगा। मानो पूरी कायनात उसके दर्द से पीघल गए जोरों से बारिस होने लगी। मगर उसे पता नहीं वह चुपचाप फूलों के बाग में खड़ी थी। उसकी आँखों से बेतहासा आँसू गिर रहे थे। आँधी के एक झोके ने उसकी दुनिया उजाड़ दी। साजिया आयशा से मिलने के लिए बगवानी पहुँची मगर उसकी हालत देखकर दंग/स्तब्ध रह गयी। वह आयशा की स्थिति को समझ गयी। वह आयशा को गले लगाकर उसके आँखों का आँसू पोंछने लगी। ‘इंसान की जिन्दगी में एक से एक मोड़ आते हैं जिसका सामना हमे करना पड़ता है। शायद जिन्दगी के किसी मोड़ पर तुम दोनों की मुलाकात हो सके। आयशा यह कहते हुए साजिया ने आयशा को भरोसा दिलाया। आयशा का चेहरा सूज गया था। दोनों बारिस में भिंगते हुए आयशा के घर पहुँचे। आयशा बीमार पड़ गयी। साजिया एक दिन आयशा के पास रूकी तथा आयशा को बतायी कि उसका मेडिकल का रिजल्ट आ गया है। वह कुछ दिनों में हॉस्पीटल ज्वाईन कर लेगी तो वह आयशा को अपने पास बुला लेगी। अगले दिन साजिया देहरादूर चली गयी। इसप्रकार समय बीतता गया और साजिया एक नामी डॉक्टर बन गयी।
आयशा की पढ़ाई पूरी हुयी वह प्रैक्टीस करने के लिए देहरादूर साजिया के पास गयी। दोनों एक साथ रहने लगे। साजिया आयशा को ग्रामीण पहाड़ी इलाका घुमाने ले गयी। आयशा का मन मचलने लगा। उसे लगा कि यह इलाका उसको अपनी तरफ खिंच रहा है। वह वहाँ रूकना चाहती था मगर साजिय कार की रफ्तार तेज कर वापस लौट आयी। साजिया कई दिनों से हॉस्पीटल से देर से आती थी और बेचैन रहती थी। इसका कारण जानने के लिए आयशा साजिया का हाँथ पकड़कर उसके आँखों की तरफ देखने लगी। साजिया बहुत मायूस थी उसने बताया कि हॉस्पीटल में एक बहुत क्रिटकल केश आया है जिसका वह इलाज कर रही है। वह बहुत मायूस तथा नेक दिल इनंसान है जिसने एक कुंवारी लड़की की आबरू बचाने के लिए उसके सारे इलजाम अपने उपर ले ली और गाँव वालों ने सजा के रूप में उसे पत्थर से मारते हुए उसका बदन लहूलुहान कर दिया। वह मूर्च्छित होकर गिर गया। तब्बसुम नाम की एक लड़की अपने सहेलियों के सहयोग से हॉस्पीटल पहुँचा गयी। उसी के पास बैठकर कुछ पल बीता लेती हूँ। न जाने कब उसकी जिन्दगी की डोर टूट जाये। यह कहते हुए साजिया के आँखों से आँसू छलकने लगे किन्तु वह कहती रही कि आज जब मैं उसको इन्जेक्शन लगाकर चली तो उसने मेरा हाँथ पकड़ लिया और कहने लगा डॉक्टर साहिबा न जाने कलका सूरज और चन्द्रमा उसे नसीब होगा कि नहीं। यह कहकर उसने मेरे हाँथों में यह डायरी थमा दिया। शायद यह उसकी जिन्दगी का आखिरी मकसद हो। उसकी आँखों से चाहत की आँसू टपकने लगा। वह जरूर किसी को दिल से चाहता होगा। जिसका रहस्य यह डायरी है। यह कहते हुए साजिया ने आयशा को गले लगा लिया और बताया ऐसा प्यार शायद ही किसी लड़की को मिलता है। आयशा! यह डायरी तुम पढ़ो जब तक मैं कपड़ा चेन्ज कर कॉफी बनाकर लाती हूँ। साजिया कमरा के अन्दर चली गयी। आयशा डायरी लेकर डायनिंग टेबल के पास रखी कुर्सी पर बैठकर पढ़ने के लिए डायरी के पन्ने पलटे तो उसके होस उड़ गए उसकी आँखों के सामने अंधरा छाने लगा। पूरा बदन पसीना से सराबोर हो गया।
‘‘मैं नसीम एक बदकिस्मत इंसान हूँ जिसने सपने तो देखा मगर काँच की तरह बिखर गये। किसी का दामन पकड़ा उसने साथ छोड़ दिया। एक माली की तरह फूलों का बाग सजाया मगर हवा के झोंका ने उजाड़ दिया। मैने आयशा जी से मोहब्बत की मगर जमाने की नजर लग गयी। मोतिहारी शहर में मैं अजनबी था मैं आशियाने के लिए भटक रहा था। अन्ततः आयशा मंजिल नामक बिल्डिंग के पास पहुँचा जिसकी मालकिन ने मुझे अपने फूलों के बाग में रहने की इजाजत दी और रहने लगा। वह फूलों की बहुत शौकिन आयशा की अम्मीजान थी। मैं उनकी बहुत इज्जत करता था। पहली बार आयशा अम्मीजान के साथ फूलों के बाग घुमने आयी तो अम्मीजान ने आयशा से मेरा परिचय कराया उसने पलके झूका कर तीरछी नजर से मुझे देखी और मुस्कुरा दी। मैने भी मुस्कुरा कर आयशा का अभिवादन स्वीकार किया। इसप्रकार आयशा रोज-रोज बगिचा आने लगी। हमदोनों बहुत करीब आ गए। वह मेरे रोम-रोम में बस गयी। मैं अक्सर रात भर उसके बारे में सोचता रहता था।
मैंने उसे भूलने की बहुत कोशिश की मगर मेरा दिल नहीं मानता था। जब तक मैं उसे एक नजर नहीं देख लेता मेरा मन बेचैन रहता था। मैं यह नहीं जानता था कि आयशा मुझे पंसद करती है या नफरत। मेरा प्यार एक तरफा था। वह हमारी चाहत की दुनिया से बेखबर थी। मुझे ऐसा लगा आयशा किसी और को चाहती है। मैं उसकी रास्ते में दिवार खड़ा नहीं करना चाहता था। जिससे इश्क किया जाता है उसकी इबादत की जाती है। मैं अपने दिल के अरमानों को दिल में ही दफन कर दिया। मैंने कभी भी अपनी चाहत के बारे में आयशा को नहीं बताया मगर हमारी इश्क को कादिरा आन्टी की नजर लग गयी। वह आयशा को बदनाम करना चाहती थी मगर मैं आयशा का खलील था। मैने आपको सपना दिखाकर तोड़ दिया जिन्दगी के मझदार में आपका साथ छोड़ दिया। मैं आपकी जुदाई सह सकता था मगर आपकी बदनामी नहीं। मैंने तो सोचा था कि आखिरी पल भी आपके बाँहों में बिताऊँ मगर किस्मत ने साथ नहीं दिया। मैं शहर में अपना सबकुछ छोड़ दिया सिर्फ आपकी यादें लेकर जा रहा हूँ। जो मेरे तन्हाई का हमसफर है। मैं अपने दिल की अरमानों को इस डायरी में लिखकर आपके पास पहुँचना चाहता था। मगर यह सपना भी टूट गया। मुझे आपके खुले घूँघराले बाल बहुत अच्छे लगते थे आज मेरी जिन्दगी की सांसे टूट रही है। मगर आपकी वो मुस्कुराता चेहरा एवं तीरछी नजरें आज भी याद है। हो सके तो मुझे मुआफ कर दिजियेगा आयशा जी।’’
खुदा हाफिज…………………..
डायरी आयशा के हाँथों से छूट गयी। वह चुपचाप शून्य की तरह खड़ी रही उसका बदन कांप रहा था। उसकी आँखे लाल हो चुकी थी। वह सिर्फ सूबक रही थी। उसने दोनों हाँथों से अपना चेहरा ढ़क लिया तभी साजिया हाँथों में कॉफी लेकर बाहर आयी। आयशा की हालत देखकर अचम्भा हो गयी। उसके हाँथों की कॉफी गिर गयी। आयशा सिढ़ियों से नीचे भागने लगी। साजिया समझ गयी वह मरीज नसीम है। वह सोचती है विधाता का क्या करिश्मा है। आयशा अपनी गमो को भूलाने के लिए यहाँ आयी थी। मगर विधाता ने उसे किस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। साजिया भी फूट-फूट कर रोने लगी। वह दोड़कर आयशा को अपने सीने से लगा लिया वह आयशा के दर्द को समझती थी। उस वक्त रात के दो बज रहे थे। उसने तुरन्त अपनी गाड़ी निकाली और आयशा को लेकर हॉस्पीटल पहुँची। पूरी कायनात सो रही थी।
मगर आयशा के आँखों की नीन्द उड़ चुकी थी। वह जिन्दगी की आखिरी दो पल नसीम के बाँहों में बिताना चाहती थी। गाड़ी रूकी गार्ड डा0 साजिया को इस वक्त देखकर हैरान हो गया और दरवाजा खोल दिया। साजिया आयशा को संभालती हुयी आईसीओ के पास ले गयी। वह वार्डेन को जाने का इसारा करती है। साजिया नसीम के नस की रफ्तार देखती है। मगर नस बैठा चुका था। आयशा नसीम के बदन पर झूक कर नसीम का माथा चुमती है उसके आँखों में आँसू भर आते हैं। वह अपनी हाँथ को उठाना चाहता है। मगर हाँथ झूल जाता है। आयशा उसकी भावना समझती है और उसकी हाँथ पकड़कर अपने गालों पर सटा लेती है। दो प्रेमी एक पल के लिए एक दूसरे में खो जाते हैं यह देखकर साजिया के गालों पर आँसूओं का सैलाब तैरना लगा। आयशा डा0 साजिया के तरफ हसरत भरी नजर से देखती है कि तुम नसीम को बचा लो। साजिया आयशा की पीठ पर हाँथ रखकर सर हिलाती है। आयशा नसीम के सर को अपनी गोद में रख लेती है। नसीम के आँखों के आंसुओं की धार तेज हो जाती है वह सोचता है कि अब वह सकुन से मर सकेगा। आयशा नसीम के हाँथों को अपने हाँथ में ले लेती है। वह उसे चुमने लगती है। इंसान की किस्मत भी अजीब होती है। जो जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर खड़ा कर देती है कि वह न मर सकता है और न ही जी सकता है दो प्रेमी एक दूसरे के लिए तड़पते थे।
आज इसप्रकार एक दूसरे के बाँहों में सिमट गए हैं कि फरिश्ता के आँखों में भी आँसू आ गए । आयशा नसीम की बाँहों में ऐसे चिपकी है कि आखरी दो पल में जिन्दगी की सारे अरमानों की प्यास बुझ जाये। मगर इस पगली को जिन्दगी का हकीकत नहीं पता की मरने वाला को कोई नहीं बचा सकता। अचानक नसीम को हिचकी आती है और वह हमेशा-हमेशा के लिए आयशा के बाँहों में चैन की निन्द सो जाता है। उसकी आँखे आयशा की तरफ खूली रह जाती है। मानो वह जिन्दगी के आखिरी पल में भी आयशा को देखना चाहता हो। आयशा पागलों की तरह चिखने लगती है। मगर डा0 साजिया आयशा को संभालती हुयी अपने सीने से लगाई। आई.सी.ओ. से बाहर निकलती है। हॉस्पीटल के सारा स्टाफ तथा मरीज इस नजारा को देखते है। सबकी आँखों में आँसू है। आयशा के कदम रूक जाता है। वह पीछे मुड़-मुड़ कर देखती है। मानो नसीम की यादें उसे अपनी तरफ खिंचता है। वह वही रूक जाती है। मगर साजिया उसे हॉस्पीटल से बाहर लाती है। दूसरे दिन साजिया और आयशा गुलाब के फूल नसीम के कब्र पर रख ईश्वर से दुआ करती है और अपने शहर मोतिहारी लौट जाती है।
लेखक – मो0 यासीन
मुजीब गर्ल्स इंटर कॉलेज, मोतिहारी।
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