एहसास – ज्योति खारी

  • Post author:Manisha Tyagi

एक एहसास जगा है…
पुरानी कुछ बातों का,
पुरानी कुछ यादों का,
उन सभी कसमों का, उन सभी टूटे हुए वादों का।
जो देखा था सपना मिलकर हमने,
वो पल भर में बिखर गया…
ये ज़ख़्म- ए- दिल फिर ठहर गया।
अंदर कौतूहल था…
छाई हुई थी बाहर खामोशी…
दफ़न हो गयी वो सारी खुशी।
संग उसके ये फ़िज़ाएं भी बदल गयी,
न जाने ज़िंदगी की डगर ये किस ओर निकल गयी।
कहीं गुम वो मनमीत है,
मीरा सी अब भी प्रीत है।
सपन वो अब टूट गया,
हमारा अपना ही हमसे रूठ गया।
लगता था वो जीवन साकार था,
वो ही उस जीवन का आधार था।
दाख़िल था जो….
खो गया है वो….
जो कभी इस जीवन का संसार था।
वक़्त दरिया की तरह फ़िसल गया,
वो भी कहीं दूर निकल गया।
वो जीवन कितना सलौना था,
टूटा हुआ है आज ऐसे….
मानो सिर्फ़ एक खिलौना था।
ज़हन में एक ये ही आस है,
आज फिर से उन लम्हों की तलाश है।
यादें ही बची हैं….
जी रहे हैं हम इन यादों के सहारे,
एहसास हुआ अब हमको,
जो मिलते नहीं….
हम तो हैं नदी के वो दो किनारे।
प्रेम बेतहाशा, बेइंतेहा, अनंत हुआ….
आज इस जीवन की एक कहानी का अंत हुआ।।।

-ज्योति खारी

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