आज-कल कुछ तो है हांसिए पर…..

  • Post author:Web Editor

आज-कल कुछ तो है हांसिए पर।
वह जीवंत प्रश्न, जो मानव निहित।
मौन धारण किए हुए है वह प्रश्न।
बिक रहा है अब तो विश्वास टोकरी में।
अभी जो चला था नाट्य, होगा पटाक्षेप?
प्रश्न गंभीर है, परन्तु भाव तो विचार का है।।

आज-कल तो प्रबुद्धता के भाव भारी है।
टोकरियों में भर-भर कर बिकता बाजार में।
खरीद दार है अंजान अब तक मोल-भाव से।
जानकार तो कब से लगे है लंबी कतार में।
अभी तो खेल-खेल में बचा रहेगा क्या शेष?
प्रश्न गंभीर है, परन्तु भाव तो विचार का है।।

आज -कल उम्मीद बात-बे बात हर जिह्वा पर है।
खासियत है कि” उम्मीद ही खुद हैरान है।
मिन्नतें सुन-सुन कर अजीब सा परेशान है।
एहसास की तारीफ सुन-सुन कर बेजान है।
जीवन के पगडंडियों किसका छद्म वेष?
प्रश्न गंभीर है, परन्तु भाव तो विचार का है।।

आज-कल हांसिए पर जो है, अंतिम पंक्ति में।
अलसाया हुआ सा, उदास आँखें लिए बैठा हुआ।
खुद के विचार से विह्वल, स्वमान में रम कर।
स्वभाव के बसी भूत हो कुछ तो विचित्र ऐंठा हुआ।
आतुरता लिए हुए भावों में जैसे हो अंजान देश।
प्रश्न गंभीर है, परन्तु भाव तो विचार का है।।

आज-कल की बात है और चिंतन भी उसी का है।
जिसको हांसिए पर धकेला गया है विवश कर के।
वह मौन है, विकल भी है, क्योंकि हांसिए पर है।
वह कुछ तो है विचार, जा कर हांसिए पर शून्य है।
निस्तेज सा देखता है, मिटेगा कब यह क्लेश?
प्रश्न गंभीर है, परन्तु भाव तो विचार का है।।

मदन मोहन ‘मैत्रेय’

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