माँ…

  • Post author:Web Editor
फर्क करना मुश्किल होता है की तू यादों में या असल में साथ होती है
(सच कहूं तो फर्क करना भी नहीं चाहता)
…हाँ जब कभी भी तेरी जरूरत महसूस होती है तू आस-पास ही होती है
…माँ है मेरी कहाँ जा सकती है मुझसे दूर
यकीनन तू मेरी यादों में अम्मा मुस्कुराती है
तभी तो खुद ब खुद चेहरे पे ये मुस्कान आती है
तो क्या है सब दिगंबर नाम से हैं जानते मुझको
मुझे भाता है जब तू प्यार से छोटू बुलाती है
में घर से जब निकलता हूँ बड़े ही लाड से मुझको
लगे कोई नज़र न आज भी काजल लगाती है
बुरी आदत कभी जब देख लेती है मेरे अन्दर
नहीं तू डांटने से आज भी फिर हिचकिचाती है
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