है बाज़ार बहुत गर्म दरिंदगी का | सलिल सरोज

  • Post author:Web Editor
hai bazar bahut garam darindagi ka

तुम लेके आओ भीड़,मैं मुँह मोड़ लेता हूँ 

इंसानियत से अब हर रिश्ता तोड़ लेता हूँ 
जानवरों के लिए इंसानों की अब बलि दो  
इतिहास के पन्नों में ये क़िस्सा जोड़ लेता हूँ
आतंक का साया बढ़ा दो तुम रोज़ बेइन्तहां 
मैं आँखें बन्द करके अपनी राहें मोड़ लेता हूँ 
तुम अब और ज्यादा जहमत मत उठाया करो 
तुम इशारा करो,मैं अपनी गर्दन मरोड़ लेता हूँ 
माहौल को कुफ्र बनाने का मज़मा तैयार है अब 
तो मैं भी अब मोहब्बत का चश्मा फोड़ लेता हूँ 
कौन कितना वहशत और दहशत फैला सकता है 
है बाज़ार बहुत गर्म दरिंदगी का,मैं भी होड़ लेता हूँ


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