
तुम लेके आओ भीड़,मैं मुँह मोड़ लेता हूँ
इंसानियत से अब हर रिश्ता तोड़ लेता हूँ
जानवरों के लिए इंसानों की अब बलि दो
इतिहास के पन्नों में ये क़िस्सा जोड़ लेता हूँ
आतंक का साया बढ़ा दो तुम रोज़ बेइन्तहां
मैं आँखें बन्द करके अपनी राहें मोड़ लेता हूँ
तुम अब और ज्यादा जहमत मत उठाया करो
तुम इशारा करो,मैं अपनी गर्दन मरोड़ लेता हूँ
माहौल को कुफ्र बनाने का मज़मा तैयार है अब
तो मैं भी अब मोहब्बत का चश्मा फोड़ लेता हूँ
कौन कितना वहशत और दहशत फैला सकता है
है बाज़ार बहुत गर्म दरिंदगी का,मैं भी होड़ लेता हूँ
लेखक सलिल सरोज के बारे में संक्षिप्त जानकारी के लिए क्लिक करें।
व्हॉटसएप पर जुड़ें : उड़ान हिन्दी पर प्रकाशित नई पोस्ट की सूचना प्राप्त करने के लिए हमारे ऑफिशियल व्हाट्सएप चैनल की नि:शुल्क सदस्यता लें। व्हॉटसएप चैनल - उड़ान हिन्दी के सदस्य बनें
कॉपीराइट सूचना © उपरोक्त रचना / आलेख से संबंधित सर्वाधिकार रचनाकार / मूल स्रोत के पास सुरक्षित है। उड़ान हिन्दी पर प्रकाशित किसी भी सामग्री को पूर्ण या आंशिक रूप से रचनाकार या उड़ान हिन्दी की लिखित अनुमति के बिना सोशल मीडिया या पत्र-पत्रिका या समाचार वेबसाइट या ब्लॉग में पुनर्प्रकाशित करना वर्जित है।