काँटे भरे हैं राह में
फिर भी वो खिलती है
मन मुग्ध कर दे
वो महक सी महकती है
कभी किसी का सम्मान है उससे
कभी वो अपमानित की जाती है
कभी भँवरो से छलि जाती है
कभी माली द्वारा
तोड़ ली जाती है
कभी गले का हार
कभी फूलों की राह बन जाती है
हर रंग में ढ़लती है
पूरी शिद्दत के साथ
अपनाती है अपना हर फर्ज
सुख या दुःख की परवाह नहीं है उसे
वो कर्तव्यनिष्ठ है ,निःस्वार्थ है
हर रोज खिलती है
हर रोज महकती है
क्योंकि गुलाब के फूल सी
होती हैं स्त्रियाँ
इसलिए तो गुलाबी सी रंगत लिए
मुस्कुराती है सदा..
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