
बस यूं ही आहत मन से भारत धर्मी समाज के प्रमुख डॉ. नंद लाल मेहता वागीश जी से मन की व्यथा कही थी।”” ‘पूजा’ को प्रतिबंधित करतीं कोलकाता में दीदी जी ,चप्पल धोती दीदी जी।”” ताकि मोहर्रम का जुलूस शांति से निकल जाए फिर चाहे जो हो सो हो ….और बस वागीश जी ने पूरा इतिहास उड़ेल दिया ,राष्ट्रीय उद्बोधन के संग -संग कर्तव्यबोध से च्युत दिखती दीदी जी को उनका कर्तव्य भी याद करवा दिया बंगला गौरव भी उनका दुर्गेश रूप भी। इस कविता के माध्यम से जो हुंकार बन के उठी है और करुणा से संसिक्त हो प्रार्थना के स्वरों में ढ़ल गई है :
प्रस्तुति : वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ), पूर्व -व्याख्याता भौतिकी, यूनिवर्सिटी कॉलिज, रोहतक एवं प्राचार्य राजकीय स्नाक्तोत्तर कॉलिज, बादली (झज्जर ), हरियाणा।
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