मैं मन की कहू या दिल की सूनू… | मिलन कुमारी

  • Post author:Web Editor
akshaya gaurav poem by milan kumari

मन कहे पिया तू आसपास है,

दिल कहे अभी आने की आस है
दिल पे मन का जोर नहीं,  मन हाथों के डोर नहीं
किस डगर चलूँ, किस राह चूनू
मै मन की कहूँ या दिल की सूनू
कजरारे ये नयन मेरे और सपने स्वेत तुम्हारे है
सवालों की झरी लगी और प्रश्न सिर्फ़ तुम्हारे है
कितनी देर लगाए पिया सुध हमारी लेने में
दिल से धड़कन जुदा सी लागे धैर्य रहा ना जीने में
अपने मन की बात करु या तेरे दिल का हाल सूनू
मैं मन की कहूँ या दिल की सूनू
मैं मन की कहूँ या दिल की सूनू
जो आँखों में पिया बसे तो पलकें कभी ना खोलू मैं
मन में छुपा के राज सा रखू लफ्जों में ना बोलू मैं
अब जो आए तो फिर कभी ना जाना पिया
अधूरे ख्वाब मेरे अपने पलकों पे सजाना पिया
जीवन डगर सुख – दुख की बगिया में
पतझड़ – सावन साथ निभाना पिया
तुमसे मिले हर रिश्ते का ह्दय से सम्मान करू मैं
तन मन धन तुझे समर्पित, तेरे यश का मान करु मैं
नववर्ष के नवजीवन में मधुर – मिलन के गीत सूनू
जिस मन में पिया बसे और दिल में उनकी सरगम सजे
मैं उस मन की कहू और उस दिल की सूनू
मैं उसी मन की कहू और उसी दिल की सूनू

Writer is Library Trainee at National Metallurgical Laboratory (CSIR), Jamshedpur and Studied MLISC at Jamshedpur Women’s College, Jamshedpur, Jharkhand.

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