मुझे मैकदों की खबर दे,अभी प्यालों को खबर न दे
मैं खुद को खोना चाहता हूँ ,उजालों की खबर न दे
उलझ के रह गया गया हूँ ज़माने की रहबरी में ही
सुलझाने में कुछ वक़्त लगेगा,ख्यालों की खबर न दे
सो गयी है सारी दुनियादारी,मैं भी सोना चाहता हूँ
मेरी नींद,मेरे ख़्वाबों को तो नालों* की खबर न दे
जो मिला है वही बहुत मिला, इसका बहुत शुकून है
मेरे मिज़ाज़ को दो वक़्त सही,मलालों की खबर न दे
जो जवाब मिले मुझे तुझसे,बहुत चुभते है आज भी
मैं अपनी बात तो कह लूँ,नए सवालों की खबर न दे
लेखक सलिल सरोज के बारे में संक्षिप्त जानकारी के लिए क्लिक करें।
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