फूलने, फलने और निर्झर होने के बाद
सरसो के सूखे सफेद डाँठ से रह गए
यह धवल केश विन्यास कहते हैं
लास्य, लिप्सा, लालिमा ने उन्हें
पवित्रता की कंदरा में मुक्त कर दिया है
कभी सघन निशा के अलि-वर्ण की छटा से
सुशोभित रहे ये श्वेत केश-विन्यास
याद दिलाते हैं कि
आपके संबंधियों को सचेत होने की आवश्यकता है,
उन्हें भयभीत हो जाना चाहिए
दुःख का सच्चा चेहरा उसे दिखता है
जिसे दुःख वरण करता है
समय उन्हें कभी भी भयानक घाव
दे सकता है।
हम जगती पर यथा शक्ति न्यौछावर हो चुके हैं,
किन्तु जगती
तब तक संतुष्ट नही होती
जब तक वह आपके सम्पूर्ण सार को
एक सार न कर ले
किन्तु जगती की सामर्थ्य इतनी भी नही कि
हमें सम्पूर्णतः सोख सके।
बिछड़ों से मिलकर यह पुख्ता होता है कि
दुनिया में खोना अलग बात है,
और काल में खोना अलग बात।
फैलाओ अपने हाथ उतना कि
धवल केशों की समूची थाती तुम्हारी हथेली
में समा सके
यही थाती पीढ़ी दर पीढ़ी
पुष्पित और पल्लवित होती रहेगी
ताकि सामाजिक मनोरोगों के आघातों का
घनघोर प्रतिकार होता रहे।
एक विद्यार्थी का प्रश्न है-
वन-गमन में गृह-त्याग का अपराध बोध
घर आने में आत्मोत्सर्ग का परित्याग
क्या यह सच है कि
वन गमन और घर के मध्य जो असम्भावी सुकून है वही बुद्धत्व है
हल कीजिये ना क्योकिं
घर लौटने वाले बुद्ध का पता आपको ज्ञात है।
धवल केश सब जानते हैं।
रचनाकार : नम्रता श्रीवास्तव
(रचनाकार एक शिक्षिका एवं वरिष्ठ साहित्यकार हैं)
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