तेरी नज़ाकत किसी काम की नहीं | सलिल सरोज

  • Post author:Web Editor
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ज़ुल्म होता रहे और आँखें बंद रहें 

ऐसी आदत किसी  काम की नहीं 
बेवजह अपनी ही इज़्ज़त उछले तो  
ऐसी शराफत किसी काम की नहीं 
बदवाल का नया पत्ता न खिले तो 
ऐसी बगावत किसी काम की नहीं 
मुस्कान की क्यारी न खिल पाए तो 
फिर शरारत किसी काम की नहीं 
तुम्हें छुए और होश में भी रहें तो 

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