तू वक़्त की तरह मुझ में गुज़र जाता अगर | सरोज सलिल

  • Post author:Web Editor
Salil

तू वक़्त की तरह मुझ में गुज़र जाता अगर

मैं फिर से जी उठता और संवर जाता अगर
वही अलसाई भोर, सोया दोपहर, थकी रात
मिलती मुझे और मैं भी कहीं खो जाता अगर
बेफिक्री की कुछ साँसें और थमी हुई नब्ज़
तड़प मेरा भी बेचैन हो कर घुट जाता अगर
ख्वाहिशों का बोझ,नाकामयाबियों की चुभन
मेरे सपनों के सामने थोड़ा झुक जाता अगर
मेरा कोफ़्त खुद ही सिसक के रह जाता

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